रेलवे ने पहले किया 'जीरो मौत' का दावा, नीति आयोग ने सवाल उठाए तो कहा- 3 साल में हुईं 30 हजार मौतें

भारतीय रेलवे के इस साल जीरो मौत होने वाले दावे पर नीति आयोग के सवाल उठाए जाने के बाद रेलवे ने नई जानकारी पेश की है. रेलवे का कहना है कि पिछले तीन सालों में आकस्मिक घटनाओं या अनहोनी की वजह से लगभग 29,000-30,000 मौतें हैं.

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- Press Trust of India (@PTI_News) August 20, 2020
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव का कहना है कि पिछले और इस फाइनेंशियल ईयर में रेलवे एक्सीडेंट्स में ज़ीरो डेथ रही हैं. 2018-19 में 16 डेथ हुई थीं. पिछले तीन सालों में 29000-30000 मौतें (ट्रेन से झांकते हुए और रेलवे ट्रैक पर गिरने से) हुई हैं. इन्हें कम करने के लिए हम पूरी तरह से प्रयासरत हैं.
उन्होंने कहा, रेलवे में होने वाले एक्सीडेंट्स की वजह से 2010-11 में 235 मौतें, 2011-12 में 100, 2014-15 में 118, 2016-17 में 195 मौतें हुई थीं. सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों की वजह से 2019-20 में घटकर ज़ीरो हुई हैं.
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव का ये स्पष्टीकरण नीती अयोग के CEO अमिताभ कांत के रेलवे के दावे पर सवाल उठाए जाने के कुछ दिनों बाद आया है, जिसमें बताया गया है कि मुंबई सबअर्बन रेल नेटवर्क में हर साल हजार से अधिक मौतें होती हैं.
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'जीरो मौत' वाले दावे पर नीति आयोग ने उठाए सवाल
दरअसल रेलवे के 'जीरो मौत' वाले दावे पर सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने सवाल खड़े किए थे. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने पूछा है कि ये आंकड़े क्या वाकई सच्चे हैं? क्योंकि मुंबई के सबअर्बन रेल नेटवर्क में हर साल लगभग 2000 मौतें होती हैं.
थिंक टैंक नीती अयोग के CEO ने वीके यादव को लिखे पत्र में कहा था, "मैं इस तथ्य पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा कि इनमें से कई मौतें लोगों को प्लेटफ़ॉर्म पर या प्लेटफ़ॉर्म से पटरियों पर गिरने से होती हैं. इसलिए, इसे आरआरएसके (राष्ट्रीय रेल रक्षा कोष) के दायरे से बाहर नहीं किया जाना चाहिए. इसे आधिकारिक रूप से दर्ज किया जाना चाहिए."
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