- सियाराम पांडेय 'शांत'
नरेंद्र मोदी सरकार सुधार और परिष्कार की राह पर निरंतर आगे बढ़ रही है। एक देश-एक टैक्स, एक देश-एक संविधान, एक-देश एक राशनकार्ड जैसी योजनाओं को अंजाम देने के बाद उसने देश की नई शिक्षा नीति बनाई है। पाठ्यक्रमों में सकारात्मक बदलाव की कोशिशें जारी हैं। प्रयास इस बात का है कि छात्रों पर अनावश्यक दबाव न बढ़े। अब सरकार की नजर प्रतियोगी परीक्षाओं पर गई है और उसने सरकारी नौकरियों के लिए एक एजेंसी-एक परीक्षा को मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल से राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई है। रेलवे, कर्मचारी चयन आयोग, बैंकों के समूह ख और समूह ग के पदों के लिए समान पात्रता परीक्षा अब यही एजेंसी कराएगी। साझा पात्रता परीक्षा की मेरिट लिस्ट 3 साल तक मान्य रहेगी। इससे सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक अभ्यर्थियों को कई परीक्षाएं देने से निजात मिलेगी और उनके श्रम, समय और धन की बचत होगी। साझा पात्रता परीक्षा साल में दो बार होगी। इसमें अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी शामिल किया जाएगा। देश में इस तरह की मांग उठती भी रही है कि सभी प्रतियोगी परीक्षाएं और साक्षात्कार अभ्यर्थियों की मातृभाषा में कराए जाएं।
संप्रति देश में तकरीबन 20 भर्ती एजेंसियां अपने-अपने स्तर पर परीक्षाएं कराती हैं। इससे युवाओं को कई फार्म भरने पड़ते हैं और परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। इस क्रम में उन्हें कई राज्यों की यात्राएं करनी पड़ती हैं। राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन के बाद वे अपने जिले में ही परीक्षा देकर अपनी काबिलियत सिद्ध कर सकेंगे। सभी विश्वविद्यालयों के एक पाठ्यक्रम को हरी झंडी सरकार पहले ही दे चुकी है। कई भाषाओं में परीक्षा आयोजित कराकर वह जन सुविधा विस्तार के धरातल पर एक कदम और आगे बढ़ गई है। राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी समूह के और समूह ख के लिए साझा पात्रता परीक्षा के जरिए पात्र अभ्यर्थियों की छंटनी करेगी। राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से युक्त एक विशेषज्ञ निकाय होगा। यह एक सोसायटी होगी, जिसके अध्यक्ष होंगे। सरकार ने राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन के लिए 1517.57 करोड़ रुपए मंजूर भी कर दिए हैं। सरकार की योजना देश के एक हजार जिलों में साझा पात्रता परीक्षा केंद्र स्थापित कराने की है।
इसमें संदेह नहीं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रतियोगी परीक्षा में सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। सरकारी नौकरी के लिए अब अभ्यर्थियों को एक ही परीक्षा देनी होगी। इससे पहले से ही बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं के श्रम और समय दोनों की बचत होगी। देश में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। इन सभी से हर साल एक करोड़ से अधिक स्नातक निकल रहे हैं जबकि भर्ती के लिए सरकारी नौकरियों की संख्या बहुत कम है। हर साल हाईस्कूल और इंटर पास करने वालों की संख्या भी कुछ कम नहीं होती। इतने लोगों को सरकारी नौकरी दे पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। जितनी नियुक्तियों की जगह निकलती है, उससे कई गुना अधिक अभ्यर्थी होते हैं। सरकारी विभाग में ढेरों पद खाली हैं। नियमित नियुक्तियों की बजाय संविदा पर काम चलाया जा रहा है। इस प्रवृत्ति पर अविलंब रोक लगाए जाने की जरूरत है।
2016 में उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर 47.1 प्रतिशत थी। वहीं, 2017 में यह 42 प्रतिशत और 2018 में 55.1 प्रतिशत थी। 2019 और 2020 में यह आंकड़ा बढ़ा ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से युवाओं को रोजगार देने की घोषणा की थी। उसे पूरा करने का समय आ गया है। साझा पात्रता परीक्षा या एक देश एक भर्ती एजेंसी के विचार को इसी रूप में देखा-समझा जा सकता है।
जाहिर तौर पर यह विचार युवाओं के लिए फायदेमंद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों के विचारों से यही संदेश गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी यूपी में इसी तर्ज पर परीक्षा कराने की बात कही है। अन्य राज्य भी ऐसा करेंगे। प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन हर राज्य के लिए चुनौती भरा कदम है। इसे नकारा नहीं जा सकता लेकिन इस व्यवस्था के अपने खतरे भी हैं। सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयास के साल में केवल दो अवसर ही उन्हें मिलेंगे और इस अवसर में सफलता से वंचित लोगों को अगले 6 माह और इंतजार करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह भी सोचना होगा कि कुछ राज्य अपने नागरिकों को ही सरकारी नौकरी देने के वादे कर रहे हैं, यह विचार वसुधैव कुटुम्बकम और देश की एकता और अखंडता की भावना को कमजोर करने वाला है। ऐसे राज्यों को इस तरह की घोषणा करने से पूर्व उन्हें यह भी सोचना होगा कि क्या वे हर साल इतनी सरकारी नौकरियां निकालते हैं कि वे अपने राज्य के युवाओं का पूरी तरह समायोजन कर सकें। इस तरह के विचारों को अविलंब हतोत्साहित करने की जरूरत है।
अच्छा होता कि देश में जो भी योजनाएं बनाई जा रही हैं, उनका ईमानदारी से क्रियान्वयन हो पाता। युवाओं को रोजगार चाहिए।कोरोना ने उन्हें पहले ही मानसिक तौर पर तोड़ रखा है। स्थानीयता को सम्मान मिलना चाहिए लेकिन मुख्यमंत्रियों के दिमाग में यह बात भी होनी चाहिए कि हम पहले भारतीय हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि साझा प्रतियोगी परीक्षा इस देश को न केवल मजबूती देगी बल्कि अपनी पारदर्शिता और ईमानदारी की मिसाल भी बनेगी।'
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)