नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी किसी के लिए भी पूर्ण नहीं होती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिवक्ता प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी पाया गया है।यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की सजा पर सुनवाई के दौरान की गई। भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले उनके ट्वीट के कारण अदालत की अवमानना का दोषी पाया गया है। उनके द्वारा किए गए ट्वीट बाद में ट्विटर ने निष्क्रिय कर दिए थे।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि अदालत भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई का हवाला देते हुए भूषण द्वारा दी गई सूची से प्रभावित है और यह बात उनके पक्ष में भी होगी। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि संविधान के निमार्ताओं द्वारा बोलने की स्वतंत्रता को कुछ अनुवृद्धि या संशोधन के साथ जोड़ा गया था और यह पूर्ण सिद्धांत नहीं है।
पीठ ने भूषण से उनके बयान पर पुनर्विचार करने के लिए कहा और कहा कि वह उन्हें समय देना चाहते हैं, क्योंकि वह नहीं चाहते कि भविष्य में वह आरोप लगाए कि उनके बयान पर विचार करने के लिए उन्हें कभी समय ही नहीं दिया गया।
वहीं अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि अदालत उन्हें कुछ समय दे सकती है। उन्होंने कहा, उन्हें इतने सालों से जानते हुए, मैं कह सकता हूं कि उन्होंने कुछ जबरदस्त अच्छे काम किए हैं।
भूषण ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनका बयान अच्छी तरह से सोच-समझकर दिया गया है और वह अपने वकीलों से सलाह ले सकते हैं, लेकिन इसमें कोई पर्याप्त बदलाव नहीं होंगे।
इस पर न्यायमूर्ति मिश्रा ने जवाब दिया, अगर आपको लगता है कि आपका बयान ठीक है तो हम आगे बढ़ेंगे, लेकिन यदि आप इसे संशोधित करना चाहते हैं, तो अदालत आपको इस पर सोचने के लिए दो या तीन दिन का समय दे सकती है।
भूषण ने एक बयान में कहा, मैं इस अदालत के फैसले से गुजरा हूं। मुझे दुख है कि मुझे अदालत की अवमानना करने का दोषी ठहराया गया है, जिसकी महिमा को मैंने बरकरार रखने की कोशिश की ह - एक दरबारी या जयजयकार करने के रूप में नहीं, बल्कि एक विनम्र गार्ड के रूप में - तीन दशकों से, कुछ व्यक्तिगत और व्यावसायिक। मुझे दुख हो रहा है, इसलिए नहीं कि मुझे दंडित किया जा सकता है, बल्कि इसलिए कि मुझे बहुत गलत समझा गया है।
-आईएएनएस
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