जानिये हरितालिका तीज की व्रत की कथा

कोलकाता डेस्कः हरतालिका तीज का पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और दिल्ली समेत सभी राज्यों में पूरे भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। ये पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। हरतालिका तीज के पर्व पर सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। वहीं अविवाहित युवतियां मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं। इस साल हरितालिका तीज का व्रत 21 अगस्त को मनाया जायेगा।

इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस दिन स्त्रियां बिना अन्न और जल ग्रहण किए इस व्रत को पूर्ण करती हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस कठिन व्रत को पूरे भक्तिभाव और विधि पूर्वक करने से मनचाहे फल प्राप्त होते हैं। वहीं घर में भी सुख समृद्धि और शांति आती है। वैवाहिक जीवन में यह हरितालिका व्रत खुशियां भरने वाला माना गया है। मान्यता है कि हरतालिका तीज के दिन ही भगवान शिव जी ने माता पार्वती को हरतालिका तीज व्रत के बारे में बताया था।
धार्मिक पौराणिक कथा के अनुसार मां गौरा ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। माता पार्वती बचपन से ही भोलेनाथ को वर के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या आरंभ की। माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 12 साल तक कठोर तपस्या की। माता पार्वती ने इस तपस्या को बिना अन्न और जल ग्रहण किए पूरी की। एक दिन नारद जी ने माता पार्वती के पिता से कहा कि भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस बात से हिमालय राज बहुत प्रसन्न हुए।
नारद ने जाकर भगवान विष्णु से कहा कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। नारद की बात सुनकर भगवान विष्णु ने पार्वती जी से विवाह करने के लिये हामी भर दी। इसके बाद नारद माता पार्वती के पास गये और कहा उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया गया है। इस बात से पार्वती माता को बहुत निराश हुई और वे एक गुप्त स्थान पर चलीं गईं।
इस एकांत स्थान पर माता पार्वती ने पुन: तपस्या आरंभ की, क्योंकि वे सिर्फ शिवजी से विवाह करना चाहती थीं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती ने मिट्टी के शिवलिंग बनाए। कहा जाता है कि उस दिन संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था। इस दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण किया और भगवान की स्तुति की। तब भगवान शिव प्रसन्न हुए और मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया।
इसलिये अविवाहित युवतियां भगवान शिव के जैसा वर पाने के लिये इस व्रत को रखती है और सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिये इस व्रत को रखती है।

अन्य समाचार