आइए जानिए, सोरायसिस स्कीन संबंधी रोग के बारे मे

सोरायसिस स्कीन संबंधी ऐसी रोग है जिसमें स्कीन की कोशिकाओं में तेजी से वृद्धि होने लगती है. आयुर्वेद के मुताबिक यह समस्या वात-पित्त के असंतुलन से होती है. इसकी वजह से

शरीर में विषैले तत्त्व इकट्ठे हो जाते हैं जो रक्त और मांसपेशियों के अतिरिक्त इनके अंदर के ऊत्तकों को संक्रमित करने लगते हैं. जिससे आदमी इस रोग से ग्रसित हो जाता है. यह समस्या ज्यादातर कोहनी, घुटने और सिर की स्कीन को प्रभावित करती है.
ये भी हैं कारण : आनुवांशिकता को भी इसका मुख्य कारण माना जाता है. यदि माता-पिता में से किसी एक को यह समस्या है तो बच्चे में इसका खतरा 15 फीसदी बढ़ जाता है. माता-पिता दोनों को ऐसी कठिनाई है तो बच्चे में इसकी संभावना ६० फीसदी तक होती है. इसके अतिरिक्त दो अलग किस्म का भोजन जैसे दूध के साथ खट्टी और नमकीन चीजें खाने, स्कीन कटने, चोट लगकर घाव होने या जलने, एलर्जी वाली दवाओं के नियमित इस्तेमाल, धूम्रपान और शराब की लत व अधिक तनाव से भी यह समस्या हो सकती है.
लक्षण: स्कीन पर सफेद परत, खुजली, जलन, फोड़े-फुंसी, फफोले, स्कीन में दर्द व सूजन, रूखे धब्बे और धब्बों से खून आना आदि.
आयुर्वेदिक उपचार: केले के ताजे पत्ते को प्रभावित जगह पर आधे घंटे के लिए रखें. आधा चम्मच तिल के दाने लेकर एक गिलास पानी में रातभर भिगों दें. प्रातः काल खाली पेट छानकर पानी पिएं. सुबह खाली पेट करेले का 1-2 कप रस पिएं. यदि इसे पचाने में कोई कठिनाई हो तो इसमें एक बड़ी चम्मच बराबर नींबू रस भी मिला सकते हैं. कड़वापन भी कम होगा.
ध्यान रहे : दो अलग प्रकृति का भोजन एकसाथ करने से बचें. लंबी यात्रा, व्यायाम या कोई शारीरिक गतिविधि के बाद तुरंत ठंडे पानी से स्नान न करें. उल्टी, यूरिन आदि को ज्यादा देर न रोकें. खट्टी, तली-भुनी और अपच पैदा करने वाली चीजें न खाएं.

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