जन्माष्टमी 2020: ये हैं भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाएं, जानें इनके बारे में

भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे. उन्हें पूर्णावतार कहा गया है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक श्रीकृष्ण 16 कलाओं से संपन्न थे. विष्णु के सभी अवतारों में केवल श्रीकृष्ण में ही 16 कलाएं मानी गई हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये 16 कलाएं क्या थीं और उनके क्या अर्थ हैं. हम आपको बताते हैं.

1-श्री-धन संपदा: यह पहली कला है और धन संपदा का अर्थ यहां सिर्फ पैसों से ही नहीं है. धनी उसे कहा गया है कि जो कि मन, वचन, और कर्म से धनी हो. श्रीकृष्ण न सिर्फ भौतिक रूप से बल्कि आत्मिक रूप से भी धनवान थे.
2-भू-अचल संपत्ति: इसका अर्थ है कि व्यक्ति के पास एक बड़ा भूभाग हो, जिस पर वह शासन करने की क्षमता रखता हो. भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी को बसाया था.
3-कीर्ति- यश प्रसिद्धि: इसका अर्थ है कि जिसके मान-सम्मान और यश की कीर्ति से चारों दिशाओं में गूंजती हो जिसके प्रति लोग श्रद्धा भाव रखते हों.
4-वाणी की सम्मोहकता: भगवान श्री कृष्ण में यह कला भी मौजद है। पुराणों में श्री उल्लेख मिलता है कि श्री कृष्ण की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता था.
5-लीला- आनंद उत्सव: यह कला जिसमें होती उस व्यक्ति का दर्शन कर आनंद का अनुभव होता है. इनकी लीला कथाओं को सुनकर भौतिकवादी व्यक्ति भी विरक्त होने लगता है.
6- कांति- सौदर्य और आभा: वह व्यक्ति जिसके रूप को देखकर मन स्वतः ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है। कृष्ण की इस कला के कारण पूरा व्रज मंडल कृष्ण को मोहिनी छवि को देखकर हर्षित होता था.
7- विद्या- मेधा बुद्धि: भगवान श्री कृष्ण में यह कला भी थी वह कृष्ण वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ और संगीत कला में पारंगत थे। राजनीति एवं कूटनीति में भी माहिर होता है.
8-विमला: वह व्यक्ति जिसके मन में छल-कपट नहीं हो. जो सभी व्यक्तियों के प्रति एक सा व्यवहार करे जिसके दिल में कोई द्वेष न हो.
9-उत्कर्षिणि-प्रेरणा और नियोजन: वह व्यक्ति जिसमें दूसरे को प्रेरित करने की क्षमता हो. जो लोगों को अपनी मंजिल पाने के लिए प्रेरित कर सके.
10-ज्ञान-नीर क्षीर विवेक: सा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायोचित फैसले लेता हो. भगवान श्री कृष्ण ने जीवन में कई बार विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान की जो दसवीं कला का उदाहरण है.
11-क्रिया-कर्मण्यता: भगवान श्री कृष्ण इस कला से भी संपन्न थे। जिनकी इच्छा मात्र से दुनिया का हर काम हो सकता है वह कृष्ण सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करते हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देते हैं.
12-योग-चित्तलय: ऐसा व्यक्ति जिसने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है.
13-विनय: इसका अर्थ है विनयशीलता यानि जिसे अहं का भाव छूता भी न हो. जिसके पास चाहे कितना ही ज्ञान हो, चाहे वह कितना भी धनवान हो, बलवान हो मगर अहंकार उसके पास न फटके.
14-सत्य-यथार्य: श्री कृष्ण कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखते और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जानते हैं यह कला सिर्फ श्री कृष्ण में है.
15-इसना -आधिपत्य: इस कला का अर्थ है कि व्यक्ति में उस गुण का मौजूद होना जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है। जरूरत पड़ने पर लोगों को अपने प्रभाव को एहसास दिलाता है.
16:अनुग्रह-उपकार: इसका अर्थ है कि बिना प्रत्युकार की भावना से लोगों का उपकार करना.
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