सार
विस्तार
आईआईटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे छात्र अब प्रकृति से तकनीक सीखेंगे। देश में पहली बार बीटेक, एमटेक और पीएचडी प्रोग्राम के छात्रों के लिए एक सेमेस्टर (नौ क्रेटिड)का इंटरडिसप्लनेरी कोर्स शुरू हो रहा है। फिजिक्स, कैमिस्ट्री व मैथ्स के साथ इंजीनियरिंग के छात्र बॉयोलोजी से प्रकृति की तकनीक समझेंगे। खास बात यह है कि प्रकृति की तकनीक समझाने में कमल के पत्ते, चींटी का घर और किंगफिशर पक्षी को शामिल किया गया है।
आईआईटी मद्रास के गोपालकृष्णन देशपांडे सेंटर फॉर इनोवेशन एंड आन्ट्रप्रनर्शिप इस कोर्स को शुरू कर रहा है। सेंटर के चीफ इनोवेशन ऑफिसर प्रो. शिवा सुब्रह्मण्यम के मुताबिक, प्रकृति करीब 3.8 बिलियन वर्ष पुरानी है। प्रकृति में भी तकनीक छुपी हुई है।इसी तकनीक को आज की इंजीनियरिंग में शामिल करना है, ताकि प्रकृति, पक्षियों के साथ-साथ पर्यावरण में भी तालमेल कायम रहे। इसी प्रकृति की तकनीक से आज की दिक्कतों का समाधान होगा। फिलहाल शुरुआत आईआईटी मद्रास से हो रही है। जल्द ही अन्य आईआईटी भी जुड़ेंगे। इसके बाद कॉलेजों और स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने पर फोकस किया जाएगा।
किंगफिशर से वैज्ञानिक ने सीखी बुलेट ट्रेन की तकनीकप्रो. सुबब्रह्मण्यम के मुताबिक, जापान के बुलेट ट्रेन बनाने वाले वैज्ञानिक प्रकृति प्रेमी थे। भूमिगत बुलेट ट्रेन बनाने के बाद तकनीक में बदलाव के बाद भी कंपन दूर नहीं हुई। इसी वैज्ञानिक ने देखा कि किंगफिशर पक्षी पानी के अंदर जब जाता है तो उसमें कोई हलचल नहीं होती है। अध्ययन के बाद पता चला कि उसका कारण उसकी लंबी और नुकली चोंच है। इसी चोंच का डिजाइन बाद में बुलेट ट्रेन में लगा। अब दुनिया की सुपरफॉस्ट ट्रेन कंपन नहीं करती है।चींटी के घर का डिजाइन एसी की जरूरत करेगा कमचींटी का घर, डिब्बे की तरह होता है। हालांकि इसमें दिनभर हवा शुद्ध होकर अंदर आती है। जबकि एक तरह से हवा बाहर निकलती है। इस डिजाइन से घर अंदर से ठंडा रहता है। यदि इन डिजाइन को बिल्डिंग बनाने में प्रयोग हो तो एसी की जरूरत नहीं पड़ेगी।कमल के पत्ते कभी गंदे नहीं होतेप्रकृति की तकनीक है कि कीचड़ में खिलने वाला कमल का पत्ता कभी गंदा नहीं होता। इसी तकनीक से यदि कपड़े बनाने वाला मेटिरियल तैयार हो तो बार-बार कपड़े गंदे होने से छुटकारा मिल जाएगा।