अंतिम संस्कार में नहीं जला था भगवान श्री कृष्णा का ये अंग

क्या भगवान के शरीर का दाह संस्कार हुआ? उनका कौन सा अंग नहीं जला और क्यों?

एक बार ब्रह्मा जी अपने पुत्रों और देवताओं के साथ द्वारका नगरी पधारे और भगवान से प्रार्थना की कि यदि अब वे चाहें तो अपने धाम पधार सकते हैं तब श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं निश्चय कर चुका हूँ कि यदुवंशियों का नाश होते ही मैं परमधाम के लिए प्रस्थान करूँगा। तब सभी ने भगवान को प्रणाम किया और अपने धाम की ओर चले गए। उन सबके जाने के पश्चात द्वारका में कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं, उत्पात और अपशगुन होने लगे।
यह देख भगवान ने बच्चों, स्त्रियों और वृद्धों को शंखधार क्षेत्र और अन्य सभी को प्रभास क्षेत्र में जाने का आदेश दिया जहाँ से सरस्वती नदी बहकर समुद्र में मिलती है. प्रभास क्षेत्र पहुंचकर सभी ने भगवान के आदेशानुसार पूजा, अर्चना एवं भक्ति पूरी श्रद्धा से किये परन्तु वे मैरेयक नामक मदिरा का पान करने लगे. इस मद का स्वाद तो मीठा होता है परन्तु यह बुद्धि भ्रष्ट करने वाला है. इसका सेवन करते ही सभी यदुवंशियों की बुद्धि भ्रष्ट होने लगी और सभी आपस में ही झगड़ने लगे. इस लड़ाई ने इतना भयंकर रूप ले लिया कि सभी यदुवंशी मृत्यु को प्राप्त हुए.
इस प्रकार भगवान् कृष्ण का उद्देश्य पूर्ण हुआ. इस घटना के पश्चात बलरामजी नदी के तट पर चिंतन में लीन हो गए और ध्यान में रहकर ही भौतिक शरीर को त्याग दिया. कुछ समय पश्चात ही भगवान कृष्ण एक पीपल के नीचे बैठे और सभी दिशाओं से अन्धकार को नष्ट कर प्रकाशमान कर रहे थे. उस समय भगवान के बैठने की अवस्था कुछ ऐसी थी कि वे अपनी दायीं जांघ पर बांया चरण रखे हुए थे. उनके चरण कमलों की आभा रक्त के समान प्रतीत हो रही थी. एक बहेलिये ने भगवान के चरणों को दूर से देखा जो उसे हिरन के मुख के समान नज़र आये. यह वही बहेलिया था जिसने मछली के पेट से निकले लोहे को अपने बाण में लगाया था. उसने हिरन समझकर भगवान की देह को बाण से भेद दिया.
इसके पश्चात भगवान अपने शरीर समेत ही भगवद्धाम के लिए प्रस्थान कर गए. इस प्रकार ऋषियों द्वारा दिए गए श्राप के कारण यदुवंश का नाश हुआ और गांधारी के द्वारा दिया गया श्राप भी पूरा हुआ क्यूंकि महाभारत के पश्चात भगवान कृष्ण के ३६ वर्ष इस धरती पर पूर्ण हो चुके थे. कई बार ऐसा कहा जाता है कि भगवान की देह का दाहसंस्कार किया गया परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं हुआ. उनकी देह दिव्य थी न कि पंचतत्वों से निर्मित.
अनेक मान्यताओं कि अनुसार पांडवों द्वारा उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया गया. जब उनकी पूरी देह जल गयी परन्तु दिल जलकर नष्ट नहीं हुआ और अंत तक जलता रहा तब उनके दिल को जल में प्रवाहित किया गया. उनकी देह का यह हिस्सा राजा इन्द्रियम को प्राप्त हुआ. राजा इन्द्रियम भगवान जगन्नाथ के भक्त थे, उन्होंने यह ह्रदय भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा में स्थापित कर दिया.

अन्य समाचार