चिंताजनक: मलेरिया की एक और दवा 'आर्टिमिसिनिन' होने लगी बेअसर

रवांडा में मलेरिया का एक ऐसा परजीवी मिला है, जिस पर 'आर्टिमिसिनिन' बेअसर साबित हो रही है। 'आर्टिमिसिनिन' मलेरिया के खिलाफ जंग में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवा है। अफ्रीका में पहली बार इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने का मामला सामने आया है। विशेषज्ञों को आशंका है कि इससे क्षेत्र में रह रहे लोगों पर मलेरिया का प्रकोप बढ़ सकता है।

'नेचर जर्नल' में प्रकाशित शोधपत्र के मुताबिक इंस्टीट्यूट पैश्चर के शोधकर्ताओं ने रवांडा राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), कोचिन हॉस्पिटल और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के साथ मिलकर 257 मलेरिया रोगियों के खून के नमूने की जांच की।
इस दौरान 7.4 फीसदी यानी 19 मरीजों में मलेरिया के परजीवी की जेनेटिक संरचना में कुछ बदलाव देखने को मिले। ये बदलाव परजीवी को 'आर्टिमिसिनिन' से पैदा होने वाले एंटीबॉडी के हमले से निपटने की क्षमता प्रदान करने के लिए जिम्मेदार थे।
खतरे की घंटी- -शोधकर्ताओं की मानें तो 'आर्टिमिसिनिन' के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होना कोई नई बात नहीं है। दक्षिण-पूर्वी एशिया के कुछ हिस्सों में यह दवा पिछले कई वर्षों से बेअसर साबित हो रही है। कई देशों में तो 80 फीसदी मरीजों को इससे कोई फायदा नहीं हो रहा है। हालांकि, अफ्रीका में 'आर्टिमिसिनिन' का बेअसर होना ज्यादा चिंताजनक है। दरअसल, मलेरिया के हर दस में से नौ मरीज अफ्रीका में ही सामने आते हैं।
सबसे बड़ा झटका- -विशेषज्ञों ने कहा कि 1950 के दशक में जब मलेरिया की पहली दवा 'क्लोरोक्वीन' विकसित हुई थी तो शोधकर्ताओं को लगा था कि यह मच्छरजनित बीमारी अगले कुछ ही वर्षों में खत्म हो जाएगी। लेकिन तब से लेकर अब तक मलेरिया के परजीवियों ने तमाम दवाइयों को बेअसर करने की क्षमता हासिल कर ली है। अफ्रीका में 'आर्टिमिसिनिन' के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा होना इस बीमारी के उन्मूलन की दिशा में सबसे बड़ा झटका है।

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