कोरोना वायरस के इलाज के लिए निकला गया ये नया तरीका, पढ़े

अमेरिका में भारतीय मूल के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि जब एक इंटरल्यूकिन-6 (आईएल 6 आरआई) अवरोधक, सरीलूमैब या टोसिलिजुमब को असर में लाया जाता है,

तो गंभीर कोविड-19 लक्षणों का अनुभव करने वाले रोगियों में सुधार देखने को मिला है. इसका उपयोग गठिया रोग व अन्य कई सूजन संबंधी बीमारियों के लिए किया जाता है. यह इलाज तब अधिक प्रभावी देखा गया है, जब इसे बीमारी के शुरुआती चरण में ही अपनाया जाता है.
अंतर्राष्ट्रीय संक्रामक रोगों की पत्रिका (इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजिज) में प्रकाशित परिणामों से पता चला कि इंटरल्यूकिन-6 अवरोधक रेमेडेसवीर व डेक्सामेथासोन सहित अन्य विकल्पों की तुलना में अधिक प्रभावी इलाज पद्धति प्रतीत होती है, जो वर्तमान में महामारी की जाँच के लिए अनुशंसित है व इसमें इसका उपयोग किया जा रहा है.
अमेरिका में बोस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मनीष सागर ने कहा, ऐसे समय में जब कोविड-19 महामारी के बीच इलाज के लिए तत्काल परीक्षण किया जा रहा है, हमारे अध्ययन के परिणाम इस बीमारी से संक्रमित रोगियों के बेहतर इलाज के लिए निवारण खोजने की दिशा में कुछ आशा प्रदान करते हैं.
अध्ययन के अनुसार, आईएल-6 स्तर गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम या कोविड-19 संक्रमण वाले रोगियों के लिए लाभकारी होने कि सम्भावना है. यह अध्ययन 255 कोविड-19 रोगियों पर किया गया, जिनमें दूसरे चरण के 149 रोगियों व तीसरे चरण के 106 रोगियों का आईएल 6 आरआई के साथ उपचार किया गया. एक बार एक उपयुक्त रोगी की पहचान हो जाने के बाद उन्हें आईएल 6 आरआई (सरीलूमैब या टोसिलिजुमब) दिया गया. यह प्रक्रिया पुनरावृत्त दिशानिर्देशों के आधार पर की गई. आईएल 6 आरआई प्रारम्भ में गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए रिजर्व था, लेकिन समीक्षा के बाद इलाज को कम ऑक्सीजन आवश्यकताओं वाले रोगियों के लिए भी प्रारम्भ किया गया.
अध्ययन के सैंपलिंग-विथ-रिप्लेसमेंट विश्लेषण में पाया गया कि आईएल 6 आरआई पाने वाले रोगियों में रेमेडेसवीर व डेक्सामेथासोन परीक्षणों की तुलना में मौत दर कम रही. बोस्टन मेडिकल सेंटर के 105 रोगियों में 22.9 फीसदी मौत दर देखने को मिली, जिन्हें आईसीयू देखभाल की आवश्यकता है. यह आईसीयू अध्ययनों में पहले से प्रकाशित 45-50 फीसदी मौत दर से बहुत ज्यादा कम है.
अध्ययनकर्ता प्रणय सिन्हा ने बोला कि आईएल 6 आरआई के उपयोग का सबसे बड़ा फायदा उन रोगियों को देखा गया, जिन्होंने पहले चरण (फस्र्ट स्टेज) में ही उपचार कराया. सिन्हा ने कहा, हमें उम्मीद है कि ये निष्कर्ष चिकित्सकों को मार्गदर्शन करने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि हम मौत दर को कम करने, अस्पताल में भर्ती होने की अवधि कम करने व अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को जीवित रखने के लिए निवारण तलाश रहे हैं.

अन्य समाचार