नवजात शिशुओं में पीलिया की जाँच अब उन्हें छुए बगैर व बिना ब्लड टेस्ट के हो सकेगी. एक ऐसा उपकरण एजेओ-नियो विकसित किया गया है जो शिशु के नाखून पर प्रकाश की किरणें डालकर रक्त में बिलीरुबिन का स्तर महज तीन सेंकेंड में बता देता है.
कोलकाता स्थित एसएन बोस नेशनल सेंटर फार बेसिक साइंसेज (एसएनबीएनसीबीएस) के शोधकर्ता प्रोफेसर समीर। के। पाल की टीम ने इसे विकसित किया है. यह स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीक पर आधारित है. उपकरण से निकलने वाली एक लाइट बच्चे के नाखूनों से होकर वापस लौटती है व वह महज तीन सेकेंड में बिलीरुबिन का स्तर बता देती है.
इस प्रोजेक्ट में प्रोफेसर पाल के साथ कार्य कर रहे एनआरएस मेडिकल कालेज, कोलकाता के शिशु रोग विशेषज्ञ असीम कुमार मल्लिक ने बताया कि इसके नतीजे सटीक हैं. इस उपकरण के नतीजों के आधार पर हम बच्चों में पीलिया की जाँच के बाद उनका आगे इलाज कर रहे हैं.
दर्दरहित होगी जांच- अभी पीलिया की जाँच के लिए टोटल सीरम बिलीरुबिन टेस्ट होता है. इसमें रक्त का नमूना लेने के बाद कम से कम चार घंटे रिपोर्ट आने में लगते हैं. नवजात शिशुओं में हर 16 घंटे के बाद वह टेस्ट रिपीट किया जाता है ताकि इलाज के फायदे को देखा जा सके. बार-बार ब्लड टेस्ट करना पड़ता है, लेकिन इस उपकरण से शिशुओं की दर्दरहित जाँच हो सकेगी. समय की भी बचत होती है. सबसे बड़ी बात होती है कि शिशु को छूने की आवश्यकता नहीं पड़ती. इससे संक्रमण का खतरा भी नहीं रहेगा.
उपकरण जल्द मार्केट में उपलब्ध होगा- राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास निगम (एनआरडीसी) ने हाल में इस तकनीक को विजयवाड़ा की एक कंपनी मैसर्स जयना मेडटेक प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित किया है. जल्द यह उपकरण मार्केट में होगा.
अधिकतर नवजात को रहता है पीलिया का खतरा- आजकल 60 प्रतिशत नवजात शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद पीलिया होने का खतरा रहता है. कई बार यह गंभीर रूप धारण कर लेता है जिससे मस्तिष्क को क्षति पहुचने की संभावना रहती है. समय पूर्व जन्म लेने वालों में पीलिया होने का खतरा 70 प्रतिशत से भी ज्यादा होता है.
इस तकनीक के मार्केट में आने से सबसे बड़ा लाभ क्लिनिकों एवं डिस्पेंसरियों में शिशुओं की पीलिया जाँच करने में होगा, जहां पर आमतौर पर रक्त की जाँच की सुविधाएं नहीं होतीं. अनावश्यक ब्लड टेस्ट से भी छुटकारा मिलेगा.