सिगरेट की आदत आपको बना देगी इस जानलेवा बीमारी से ग्रसित

आज की बदलती हुई लाइफस्टाइल में लोग कई चीजों के लती हो जाते हैं। कभी कभी हम किसी चीज़ का सेवन बिना कुछ सोचे समझे ही करते जाते हैं पर धीरे धीरे वह चीज़ हमारे शरीर को बीमार बनाने लगती है। ऐसी ही एक लत होती है सिगरेट की। सिगरेट हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है। ये बात हर कोई जानता है पर फिर भी सिगरेट का सेवन करता जाता है।

पुरुषों व महिलाओं दोनों में ब्लैडर का कैंसर पाया जाता है। सिगरेट पीने वालों में (एक्टिव व पैसिव) ब्लैडर के कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। सिगरेट से ब्लैडर की कोशिकाएं खराब होने लगती है जिसके कारण उसमें संक्रमण फैलने लगता है। संक्रमण फैलने पर व्यक्ति को यूरिन से सम्बंधित परेशानियाँ होने लगती है।
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जाने क्या होता है ब्लैडर कैंसर
ब्लैडर में ट्यूमर बनने कि वजह से ब्लैडर की यूरो थीलियम लेयर पर मांस चढ़ जाता है। जिसके कारण यूरिन में खून आने लगता है। कभी कभी कुछ गंभीर मामलों में यूरिन में खून का थक्का भी जम जाता है जिसे हिमेचूरिया कहा जाता हैं। खून आने या खून का थक्का बनने के कारण यह यूरिन व किडनी की नली में फैलने के साथ पेशाब की थैली के बाहर फैलने लगता है जिसे मेडिकली इनवेसिव ब्लैडर ट्यूमर कहा जाता है। अगर इस फैलते हुए ट्यूमर का समय से इलाज नहीं किया जाए तो यह शरीर के दूसरे अंगों पर भी अपना बुरा असर डालता है।
लक्षण ब्लैडर कैंसर हो जाने पर यूरिन में खून या खून का थक्का बनने लगता है, यूरिन में जलन की शिकायत होने लगती है, यूरिन करते समय बहुत ज्यादा दर्द होता है, पीठ और पेल्विक में असहनीय दर्द होने लगता है।
जांच यूरिन में खून आने की समस्या के बाद रोगी की सबसे पहले अल्ट्रासाउंड जांच की जाती है जिससे ब्लैडर के आकार का पता लगाया जा सके। सीटी स्कैन कर ब्लैडर पर फैले ट्यूमर का आकार देख ट्रीटमेंट तय किया जाता है।
इलाज
ट्रांसयूरेथ्रल रिसेक्शन ऑफ ब्लैडर (टीयूआरबीटी) तकनीक से सिस्टोस्कोप के माध्यम से ब्लैडर ट्यूमर को काटकर निकाल दिया जाता है। इसके बाद रोगी की कीमोथैरेपी व रेडियोथैरेपी करते हैं। कैंसर स्टेज का पता लगाने के लिए ट्यूमर की बायोप्सी भी की जाती है। जिन मरीजों में ट्यूमर ने ब्लैडर को बुरी तरह से जकड़ा हुआ होता है उस मामले में पेशाब की थैली को ओपन रेडिकल सिस्टेक्टमी तकनीक से बाहर निकाल दिया जाता है। इसके बाद आंतों की सहायता से पेशाब की नई थैली बनाई जाती है ताकि रोगी आसानी से यूरिन पास कर सके।
फिर से लौट सकता है ये रोग
ब्लैडर ट्यूमर को ऑपरेट कर निकाला जाए तो जरूरी नहीं कि यह पूरी तरह से सही हो जाएगा। 25 प्रतिशत रोगियों में यह दोबारा हो सकता है। बचाव के लिए रोगी के पेशाब की थैली में दवा (इम्युनोथैरेपी) डाली जाती है।
केमिकल से होता है खतरा
केमिकल फैक्ट्रियों में काम करने वालों को भी ब्लैडर कैंसर का खतरा बना रहता है। रबर, लेदर, डाई, पेंट और प्रिंटिंग से जुड़े लोगों में इस रोग की रहती है। क्योंकि सांस के माध्यम से केमिकल फेफड़े से होते हुए ब्लैडर की ऊपरी सतह तक पहुंचकर बहुत आघात पहुंचाते हैं।
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