स्तन कैंसर की पहचान प्राथमिक स्तर पर करना कठिन होता है. वर्तमान में उपस्थित तकनीक छोटे व सूक्षम ट्यूमर की पहचान नहीं कर पाती. अब वैज्ञानिकों ने रेडियो वेब आधारित एक उपकरण तैयार किया है
जो स्तन में उपस्थित छोटे से छोटे ट्यूमर की पहचान कर सकता है. प्राथमिक स्तर पर कैंसर की पहचान हो जाने से हजारों स्त्रियों को ऑपरेशन कराने से मुक्ति मिल सकती है.
छोटे ट्यूमर की पहचान मुश्किल- स्तन कैंसर की सर्जरी के दौरान सर्जन सिर्फ बड़े टयूमरों की पहचान कर पाते हैं. ऐसे में छोटे ट्यूमर छूट जाते हैं व मरीजों को दोबारा ऑपरेशन कराना पड़ता है. अमेरिका में बनाए गए नए हाथ में पकड़े जाने वाले उपकरण सावी स्कॉउट रडार सिग्नल की मदद से एक मिलीमीटर से भी छोटे ट्यूमर का पता लगा लेता है व स्क्रीन पर डॉक्टरों की इमेज दिख जाती है.
सर्जरी की आवश्यकता कम हुई- पत्रिका एंटीकैंसर रिसर्च में प्रकाशित शोध में 11 अध्ययनों की समीक्षा की गई है जिसमें 842 सावी स्कॉउट प्रक्रियाओं को देखा गया है. इस शोधों से पता चलता है कि स्तन कैंसर की पहचान में इस उपकरण का इस्तेमाल करने से सर्जरी की आवश्यकता में 50 प्रतिशत की कमी आ सकती है. प्रिसेंज ग्रेस हॉस्पिटल लंदन के शोधकर्ता प्रोफेसर केफाह मोकबेल ने इस उपकरण का प्रयोग कर अब तक 20 स्त्रियों को उपचार किया है. इनमें से सिर्फ एक महिला को सर्जरी की आवश्यकता पड़ी.
पुरानी तकनीक से ज्यादा आसान- छोटे ट्यूमरों की पहचान करने के लिए वर्तमान में वायर तकनीक का प्रयोग किया जाता है. यह बहुत ज्यादा पीड़ादायक होता है व इसमें स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने का भय भी बना रहता है. नये उपकरण को सर्जरी के एक दिन पहले सर्जरी की स्थान पर लगाया जाता है. सुई की मदद से इसे लगाया जाता है. प्रोफेसर मोकबेल ने कहा, इस तकनीक के प्रयोग से मरीजों को पीड़ा नहीं होती व इसके करने में सिर्फ चंद सेकेंड का समय लगता है.