घर का पका शुद्ध, सुपाच्य व सादा-स्वादिष्ट खाना छोड़कर सड़क पर लगे ठेलों, ढाबों, रेस्तरां या फास्टफूड सेंटर्स में ऑर्डर देकर खाना मंगाने या सैर सपाटा के दौरान यहां-वहां भोजन करने की आदत ने इन दिनों पाचन संबंधी रोगों के मुद्दे बढ़ा दिए हैं.
कई हैल्थ एक्सपट्र्स के अनुसार बाजार की अशुद्ध और बासी, डिब्बा बंद, प्रोसेस्ड और केमिकल युक्त चीजों से लोगों में फूड एलर्जी, सेंसिटिविटी व इंटॉलरेंस की समस्या लगातार बढ़ रही है. जो पेट, सांस और स्कीन रोगों का कारण बनती हैं. फूड इंटॉलरेंस के ज्यादातर मुद्दे डेयरी प्रोडक्ट्स या ग्लूटेन से जुड़े हैं. लेकिन कुछ मामलों में यह विभिन्न फूड्स से भी होने कि सम्भावना है.
ये हैं लक्षण- पेट में दर्द, पेट फूलना, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम, डायरिया, थकान, माइग्रेन, एकाग्रता में कमी या जोड़ों में दर्द आदि समस्याएं होती हैं. इससे ऑटोइम्यून डिजीज भी होती हैं. इसके दुष्प्रभाव से इंफर्टिलिटी भी हो सकती है. लक्षणों की अनदेखी न करें.
एलर्जी से अलग है फूड इंटॉलरेंस और फूड एलर्जी में अंतर है. दोनों में किसी फूड से शरीर की इम्युनिटी प्रभावित होती है. फूड एलर्जी सेंसिटिविटी से जुड़ी है जिसका प्रभाव तुरंत होता है. इससे अस्थमा जैसा दौरा, होठ सूजना और शरीर पर लाल चकत्ते उभरते हैं. वहीं फूड इंटॉलरेंस धीमी रिएक्शन है जिससे कम/ज्यादा बुरा प्रभाव होता है.
जांच और इलाज- ब्लड टैस्ट से 210 तरह के फूड ग्रुप (रेड, येलो व ग्रीन) का पता चलता है. प्रयोगशाला टैस्ट के साथ रोगी की मेडिकल हिस्ट्री देखते हैं. उपचार के लिए जिस फूड से कठिनाई है उससे परहेज करें. लक्षणों के आधार पर मरीज को दवाएं और अच्छी डाइट देते हैं.