भारत में यौन हिंसा को लेकर मज़बूत क़ानून हैं, लेकिन क्या क़ानून की किताब में जो लिखा है, वो ज़मीनी हक़ीक़त है?
एक रेप सर्वाइवर को क़ानून व्यवस्था, समाज और प्रशासन कितना भरोसा दिला पाते हैं कि ये न्याय की लड़ाई उसकी अकेली की लड़ाई नहीं है. थाना, कचहरी और समाज में उसका अनुभव कैसा होता है?
बिहार के अररिया में एक रेप सर्वाइवर और उसकी दो दोस्तों को सरकारी काम काज में बाधा डालने के आरोप में जेल भेज दिया गया. ये तब हुआ जब कचहरी में जज के सामने बयान दर्ज किया जा रहा था.
इस सनसनीख़ेज़ मामले में रेप सर्वाइवर को तो 10 दिनों के बाद बेल मिल गई, लेकिन दो लोग, जो इस लड़की की मदद कर रहे थे, जिनके घर रेप सर्वाइवर काम करती है, तन्मय और कल्याणी- वे अब भी जेल में ही हैं.
बीबीसी से बातचीत में जेल से रिहा होने के बाद पहली बार रेप सर्वाइवर ने न्याय पाने की अपनी इस लड़ाई की कहानी साझा की.
ये कहानी पड़ताल करती है और बताती भी है कि आख़िर क्यों बलात्कार की हिंसा झेलने के बावजूद औरतें न्याय की गुहार लगाने से डरती हैं.
गैंग रेप के बाद....
मेरा नाम ख़ुशी (बदला हुआ नाम) है. छह जुलाई की रात गैंग रेप के बाद बाहर की दुनिया के लिए यही मेरा नाम है. अभी 10 दिन जेल में काटकर लौटे हैं.
हाँ ठीक सुने आप. बलात्कार मेरा हुआ और जेल भी हम ही को जाना पड़ा. मेरे साथ मेरे दो दोस्तों को भी जेल जाना पड़ा. कल्याणी दीदी और तन्मय भैया. जो मेरे साथ हर समय खड़े थे.
आगे की लड़ाई में भी वो दोनों मेरे साथ है हमको पता है. उन दोनों को अभी भी जेल में ही रखा है. 10 जुलाई को दोपहर का समय होगा. हमको अररिया महिला थाना जाना था.
फिर उसके बाद जज साहब के पास अपना 164 का बयान लिखवाना था. पुलिस वाला बोला धारा 164 के तहत सबको लिखवाना होता है.
हम पैदल ही कल्याणी दीदी, तन्मय भैया और कुछ लोगों के साथ अररिया ज़िला कोर्ट पहुँचे. हम स्कूल में पढ़े लिखे नहीं है. लेकिन 22 साल की उम्र में हम बहुत कुछ देखे हैं और उससे सीखे हैं.
हम तन्मय भैया और कल्याणी दीदी के घर काम करते हैं. उनके साथ एक संगठन से भी जुड़े हैं.
इन लोगों के साथ काम करके हमको इतना समझ आ गया है कि क़ानून की नज़र में हम सब बराबर हैं और न्याय मिलता है.
उस दिन हम बहुत घबराए हुए थे, जज साहब के सामने बयान देना था.
हम कोर्ट में खड़े थे...
जब कोर्ट पहुँचे, तो हमको नहीं पता था कि वहाँ वो लड़का भी होगा जो हमको उस रात मोटरसाइकिल सिखाने के नाम पर दूसरे लड़कों के पास छोड़ कर भाग गया था.
हम बुलाते रहे मदद के लिए लेकिन वो नहीं रुका. मेरा दोस्त है, प्रेमी नहीं, केवल दोस्त. हमको साइकिल चलाना आता है - बहुत अच्छा लगता है साइकिल चलाना.
वो लड़का हमको मोटरसाइकिल सिखाने का वादा किया था. हम सीखना चाहते हैं मोटरसाइकिल. कितना अच्छा लगता है अपनी मनमर्ज़ी से कहीं जा सकते हैं.
कुछ दिन तो अच्छे से सीखे उसके साथ, फिर 6 जुलाई की रात उसी बहाने हमको कहीं और लेकर वो चला गया. उसके बाद तो जो हुआ मेरे साथ उसी कारण हम कोर्ट में खड़े थे.
कोर्ट में उसको जब वहाँ खड़े देखे, उसकी माँ भी वहीं थी, तो हम और घबरा गए. मेरे सामने उस रात की सारी बात फिर चलने लगीं.
क्या ऐसा कुछ नहीं हो सकता था कि हमको उसका सामना नहीं करना पड़ता अदालत में? क्या मेरा बयान अलग जगह पर नहीं लिया जा सकता था? मेरा मन बैचेन हो गया.
मन किया जल्दी से बयान हो और हम उस जगह से निकल जाएं.
क्या मेरा बयान जल्दी हो सकता था?
मेरा सर चकरा रहा था, लेकिन हमको तीन-चार घंटा वही गर्मी में खड़े रहकर इंतज़ार करना पड़ा. क्या किसी जगह कुर्सी मिल सकती थी ताकि बैठ कर हम अपनी बैचेनी पर क़ाबू पा सकते?
हमको याद आ रहा था कि हम उस रात के बाद कितना परेशान हो गए थे. हम तो किसी को बताना नहीं चाहते थे कि मेरे साथ क्या हुआ.
हमको पता था कि रेप के साथ कितनी बदनामी जुड़ी हुई है.
सब परिवार, सारा समाज क्या कहेगा. क्या हमको ही दोष देगा, क्या मेरा साइकिल चलाना, उस शाम उस लड़के के साथ मोटरसाइकिल सीखना, आज़ादी से घूमना-फिरना, संगठन की दीदी लोगों का साथ देना, प्रदर्शन में जाना- क्या इस सब में मेरे रेप की वजह ढूंढेंगे?
यही सब मेरे दिमाग़ में चल रहा था. और बहुत कुछ ऐसा हुआ भी.
मोहल्ले में लोग बोलने लगे कि ये लड़की पढ़ी लिखी नही है फिर भी साइकिल चलाती है, स्मार्टफ़ोन रखती है. मेरे में ही खोट निकालने लगे.
लेकिन मेरी बुआ बोली कि अगर अभी नहीं बोलोगी तो ये लड़के फिर तुमको परेशान करेंगे.
हम हिम्मत किए...
हमको भी लगा कि मेरे साथ ये हो गया, किसी और के साथ नही होना चाहिए. कल्याणी दीदी और तन्मय भैया, जिनके घर हम काम करते हैं वो भी बोले कि हमको पुलिस केस करना चाहिए.
हम हिम्मत किए. इतना झेल लिए तो और भी झेल लेंगे. लेकिन कोर्ट में उस दिन घंटों इंतज़ार करते हुए और उस लड़के को सामने देख कर हम बहुत घबरा गए.
आप होते तो आपको कैसा लगता. इन चार दिन में हम कितनी बार तो रेप की रात की कहानी पुलिस को बताए होंगे. कई बार तो हमको ही इस घटना का ज़िम्मेदार बताया गया.
एक पुलिस वाला मेरा पूरा मामला सबके सामने पढ़ दिया इसके बाद जिसके ख़िलाफ़ हम शिकायत लिखाए थे, उसके परिवार वाले हमसे बात करने की कोशिश करने लगे.
यहाँ तक बोले कि शादी कर लो. हम पर इतना दबाव आने लगा कि हमको लगा, हम बीमार पड़ जाएँगे. अख़बार में मेरा नाम, मेरा पता सबकुछ छाप दिया गया.
क्या कोई नियम है जो इस सब से हमको बचा सकता था? क्यों बार-बार रेप की बात बतानी पड़ी? क्यों सब कुछ मेरे बारे में सबके सामने बताया जा रहा था?
ऐसा लग रहा था कि पूरा मोहल्ला समाज, सब जो हमको जानते हैं और जो नहीं भी जानते हैं, सब कुछ मेरे बारे मे जान गए. जिस बदनामी का डर था वह हो रहा है.
जज साहब आग बबूला हो गए...
अदालत में उस दिन भी हमको पेशकार बोले चेहरा से कपड़ा हटाओ.
मेरा चेहरा देखते के साथ बोले, "अरे हम तुमको पहचान गए. तुम साइकिल चलाती थी ना. हम बहुत बार तुमसे बोलना चाहते थे, तुम्हे टोकना चाहते थे पर नही बोले."
हमको नहीं पता पेशकार हमको क्या बोलना चाहते थे. कोर्ट में लंबे इंतज़ार के बाद हमको जज साहब अंदर बुलाए. अब कमरे में केवल हम और वो थे. हम कभी ऐसे माहौल मे नही रहे हैं.
क्या होगा? क्या करना होगा? क्यों यहाँ कल्याणी दीदी और तन्मय भैया नहीं हैं? मेरे दिमाग़ में ये सब चल रहा था. जज साहब पूरी बात सुने और साथ में लिखे भी.
फिर वो जो लिखे थे, हमको पढ़ कर सुनाने लगे. उनके मुँह पर रुमाल था. जो वो मेरा बयान सुना रहे थे हमको कुछ समझ मे नही आया. हम सोच रहे थे क्या जो हम बोले वही लिखा है?
हम बोले, "सर हमको समझ में नही आ रहा है आप रुमाल हटा कर बताइए." जज साहब रुमाल नहीं हटाए, लेकिन फिर मेरा बयान सुनाए, मेरा दिमाग़ सुन्न हो गया था.
फिर हमको जज साहब उस बयान पर साइन करने के लिए बोले.
हम भले ही स्कूल नहीं गए, लेकिन इतना तो जानते ही हैं कि जब तक बात समझ में नहीं आए किसी क़ाग़ज़ पर साइन नहीं करो. हम मना किए. हम फिर बोले, हमको समझ में नही आया.
कल्याणी दीदी को बुला दीजिए. वो पढ़ कर सुना देंगी हम समझ जाएँगे और साइन कर देंगे.
जज साहब आग बबूला हो गए. कहे- "क्यों तुमको हम पर भरोसा नहीं है. बदतमीज़ लड़की तुमको कोई तमीज़ नही सिखाया है."
हमारी बात कोई नही सुन रहा था...
मेरा दिमाग़ एकदम सुन्न था हम कुछ ग़लत बोले क्या? हम बोले, "नहीं, आप पर भरोसा है, लेकिन आप जो पढ़ रहे हैं. वो हमको समझ में नहीं आ रहा है."
क्या कोई नियम नहीं, जिसकी मदद से हमको जितनी देर तक बयान समझ में नहीं आ रहा है वो हमको समझाया जाए?
हम इतना डर गए. हम साइन कर दिए और बाहर भाग गए कल्याणी दीदी के पास. जज साहब अब तक अपने दूसरे कर्मचारी और पुलिस को कमरे में बुला लिए थे.
फिर वो कल्याणी दीदी को बुलाए. कल्याणी दीदी और हम अंदर आए. जज साहब अब भी ग़ुस्से में थे. हम और कल्याणी दीदी उनसे माफ़ी मांगे. फिर भी हमारी बात कोई नही सुन रहा था.
हमको बार-बार बदतमीज़ लड़की बुलाया जा रहा था और जज साहब कल्याणी दीदी से कह रहे थे कि तुम लोग इसको तमीज़ नहीं सिखाए हो.
हमको लगा कि काश जज साहब हमारी बात सुनते. कल्याणी दीदी और तन्मय भैया ने भी जज साहब को अपनी बात कहने की कोशिश की.
वो दोनों बोले कि अगर ख़ुशी को बयान समझ में नहीं आ रहा है तो उसको फिर से पढ़ कर बयान सुनाया जाना चाहिए.
जज साब ने कहा- "इतना काम है यहाँ दिखता नहीं है."
हम ये लड़ाई छोड़ेगे नहीं
हम अगर ग़रीब नहीं होते तो मेरी बात सुनी जाती ना? हमारी आवाज़ तेज़ है, शायद हम ऊँचा बोलते हैं. क्या मेरा ऊँचा बोलना ग़लत था?
हम जज साहब को बोले कि जब तक बयान समझ में नही आएगा, हम साइन नहीं करेंगे. क्या क़ानून में ये मेरा कहना ग़लत है?
उस कमरे में इतना शोर था कि पता चल गया कि अब हमारी बात नहीं सुनी जाएगी. वही हुआ. हम, तन्मय भैया और कल्याणी दीदी वहीं खड़े थे.
हमलोगो का वीडियो बनाया जाने लगा और बताया गया कि हम सरकारी काम काज में बाधा पहुँचा रहे थे, इसीलिए हम लोगों को अब जेल जाना होगा.
हम सोचे कि जब इतना झेले है तो ये भी सही. जेल जाएँगे. हमको 10 दिन बाद बेल मिल गई, लेकिन जो मेरे साथ खड़े थे उनको अब तक जेल में रखा है.
हमारे ख़िलाफ़ जो केस दर्ज हुआ है, उसमें लिखा है कि हम लोग गाली दिए, बयान का क़ाग़ज़ फाड़ने की कोशिश किए. जज साब क्या हमारी बात सुन सकते थे?
हम केवल न्याय चाहते हैं. हम ये लड़ाई छोड़ेगे नहीं.
(बीबीसी से बातचीत पर आधारित)
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source: bbc.com/hindi