मानव शरीर में कोरोना से लड़ने की ताकत कम से कम इतने वर्ष टिकने की जगी उम्मीद : अध्ययन

मानव शरीर में कोरोना से लड़ने की ताकत कम से कम 17 वर्ष टिकने की उम्मीद जगी है. दरअसल, सिंगापुर में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सार्स से उबरने वाले मरीजों में अब भी वायरस से लड़ने वाली टी-कोशिकाओं की मौजूदगी दर्ज की है.

चूंकि, सार्स वायरस की जेनेटिक संरचना कोविड-19 संक्रमण के लिए जिम्मेदार सार्स-कोव-2 विषाणु से बहुत ज्यादा मिलती-जुलती है, इसलिए माना जा रहा है कि कोरोना के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता भी लंबे समय तक बनी रह सकती है.
2003 में हुई थी सार्स की दस्तक- -सार्स एक श्वास संक्रमण है, जिसने वर्ष 2003 में एशिया में दस्तक दी थी. हालांकि, बीते 15 वर्ष में इसका एक भी मुद्दा सामने नहीं आया है. मगर, ‘जर्नल नेचर’ में प्रकाशित शोध में देखा गया कि उस दौरान संक्रमित कुछ मरीजों में टी-कोशिकाएं अब भी उपस्थित हैं. इससे स्पष्ट है कि ये लोग दोबारा सार्स संक्रमण की जद में नहीं आएंगे. कैरोलिंस्का यूनिवर्सिटी के शोध में भी बिना लक्षण वाले कोरोना मरीजों में टी-कोशिकाएं बनती दिखी थीं. माना गया था कि इन कोशिकाओं के चलते ही मरीजों में लक्षण नहीं पनप सके.
सभी 23 प्रतिभागियों में मिलीं टी-कोशिकाएं- -अध्ययन के दौरान ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने सार्स का शिकार हो चुके 23 वयस्कों के खून के नमूने इकट्ठे किए. इसके बाद यह जांचा कि प्रतिभागियों में सार्स के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता उपस्थित है या नहीं. सभी प्रतिभागियों में सार्स से लड़ने वाली टी-कोशिकाएं उपस्थित मिलीं. दूसरे चरण में शोधकर्ताओं ने सार्स-कोव-2 वायरस के अंश को प्रतिभागियों के खून के नमूने के सम्पर्क में लाकर देखा. इस दौरान टी-कोशिकाएं वायरस पर तेजी से हमला करती नजर आईं.
कोविड-19 पर प्रभाव आंकना बाकी- -विशेषज्ञों कोरोना संक्रमण के विरूद्ध पैदा होने वाली प्रतिरोधक क्षमता को लेकर स्पष्ट नहीं हैं. उनके मुताबिक संक्रमितों के शरीर में पैदा होने वाले एंटीबॉडी ज्यादा समय तक सुरक्षा कवच नहीं प्रदान करते. लेकिन ये दावे एंटीबॉडी टेस्ट पर आधारित हैं, जो टी-कोशिकाओं की मौजूदगी आंकने में असमर्थ हैं. सार्स से उबर चुके मरीजों में इतने लंबे समय तक प्रतिरोधक कोशिकाओं की मौजूदगी देख विशेषज्ञों में भरोसा जगा है कि कोरोना को मात देने की ताकत भी कई वर्ष टिकी रहेगी.
क्या होती हैं टी-कोशिकाएं- -टी-कोशिकाएं एक तरह की श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं. रोगों से लड़ने की क्षमता निर्धारित करने में ये बेहद अहम किरदार निभाती हैं.
दो तरह से करतीं सुरक्षा- -टी-कोशिकाएं दो तरह की होती हैं. पहली, ‘किलर टी-कोशिकाएं’ जो रोगाणुओं का खात्मा करती हैं. दूसरी, ‘हेल्पर टी-कोशिकाएं’ जो बाहरी तत्वों की पहचान कर प्रतिरोधक तंत्र के अन्य हिस्सों को सक्रिय बनाती हैं.

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