बच्चों एवं किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को बाधित कर सकता है कोरोना, सतर्कता जरुरी

विगत चार महीनों से लोगों के मन में कोरोना के कारण असुरक्षा की भावना में बढ़ोतरी हुई है। ऐसा नहीं है कि पहले कोई महामारी नहीं थी, प्लेग, हैजा, स्पेनिश फ्लू, एशियाई फ्लू, सार्स, मर्स एवं इ-बोला जैसी महामारी ने पूर्व में भी वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रभावित किया है। लेकिन कोविड-19 ने पूरी दुनिया में दहशत पैदा कर दी है। वैश्विक स्तर पर सटीक उपचार उपलब्ध नहीं होने से लोगों के मन में निरंतर बढ़ रही डर की भावना मानसिक स्वास्थ्य बाधित कर रही है। आत्महत्या करने वालों की बढ़ती संख्या इसका प्रत्यक्ष उदाहरण माना जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य पर कार्य करने वाली निमहांस (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज) ने कोरोना काल में बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शिका जारी की है।

किशोरों की मानसिक स्थिति समझने की जरूरत
मार्गदर्शिका में बताया गया है कि किशोरावस्था के दौरान होने वाले मानक विकासात्मक परिवर्तनों के बारे में माता-पिता को जागरूक होना चाहिए। किशोरों को बच्चों की तुलना में कोविड-19 संबंधित मुद्दों की बेहतर समझ होती है। कोरोना के कारण किशोरों एवं युवाओं में अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितिता में बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण युवाओं में मानसिक अवसाद, निरंतर चिंता एवं गंभीर हालातों में आत्महत्या तक की नौबत आ रही है। इसके लिए यह जरुरी है कि माता-पिता किशोरों की मानसिक स्थिति को समझें। लंबे समय से स्कूल एवं कॉलेज बंद होना, दोस्तों से संपर्क खोना, परीक्षाओं के बारे में अनिश्चितता और करियर विकल्पों पर प्रभाव, नौकरी बचाने के दबाब से अकेलापन, उदासी, आक्रामकता और चिड़चिड़ापन की भावनाएं पैदा हो सकती है। ऐसी हालातों में किशोर बोरियत, अकेलेपन और भावनात्मक परिवर्तनों को संभालने के लिए तम्बाकू एवं शराब आदि मादक पदार्थों का उपयोग करना शुरू कर सकते हैं।
किशोरों एवं युवाओं को अवसाद से बचाएं
माता-पिता को अपने किशोर बच्चों में किसी भी भावनात्मक या व्यवहार परिवर्तन के लिए निरीक्षण करना चाहिए। कभी-कभी यह परिवर्तन सूक्ष्म हो सकते हैं तथा माता-पिता यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। माता-पिता को किशोरों एवं युवाओं की बातों को सुनकर, कठिनाइयों को स्वीकार कर, शंकाओं को दूर कर समस्याओं को हल करने में भावनात्मक सहायता करना चाहिए। ऐसे दौर में कोरोना को लेकर कई भ्रामक जानकारियां भी फैलाई जा रही है, इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर, सीडीसी जैसे विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि उन्हें सही जानकारी प्राप्त हो सके।
बच्चों का भी रखें ख्याल
कोरोना काल में बच्चे मानसिक अवसाद का आसानी से शिकार हो सकते हैं। परिवार के किसी सदस्य में कोरोना की पुष्टि होना, किसी सदस्य का क्वारेन्टाइन सेंटर जाना, कोरोना काल में परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने एवं उनकी जरूरत की चीजें आसानी से उपलब्ध नहीं होने की दशा में बच्चे मानसिक तौर पर अधिक परेशान हो सकते हैं। इसलिए माता-पिता यह सुनिश्चित करें कि बच्चे महामारी से संबंधित जानकारी के संपर्क में नहीं हों। मीडिया एक्सपोजर को सीमित करें, खासकर डर, विरोध या संक्रमण को लेकर कोई खतरनाक जानकारी हो तो बच्चों के सामने चर्चा करने से बचें।
दिनचर्या पर माता-पिता करें कार्य
माता-पिता बच्चों के लिए एक नई दिनचर्या का चित्र बनाएं। इस दिनचर्या में शैक्षणिक कार्य, खेल, साथियों के साथ फोन पर बातचीत या प्रौद्योगिकी के अन्य रूपों के साथ परिवार के समय का उपयोग करना शामिल होना चाहिए। बच्चों का भोजन और सोने का समय निर्धारित करें। इस दिनचर्या के हिस्से के रूप में योग, स्ट्रेच, स्किपिंग जैसा कुछ इनडोर अभ्यास भी करना बेहतर पहल होगी। हालांकि, इस दिनचर्या को अधिक सख्त बनाने की जरुरत नहीं है, समय के साथ इसमें बदलाव करते रहना चाहिए।

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