अगर आप भी अपने दांपत्य जीवन को बनाना चाहते है सुखद और खुशहाल तो शिव और पार्वती से जानिए इसका आधार

नई दिल्ली : विवाह के बाद हर पति पत्नी को नए जीवन की शुरुआत के दौरान कई तरह की हिदायतें दी जाती हैं। जब भी आदर्श दांपत्य जीवन का जिक्र किया जाता है तो भगवान राम और माता सीता तथा भोलेनाथ और माता पार्वती का जिक्र होता है। अगर आप अपने दांपत्य जीवन को सुखद और खुशहाल बनाना चाहते हैं तो आपको भगवान शिव और पार्वती माता का अनुसरण करना चाहिए।

भगवान शिव और माता पार्वती के बीच प्रेम की गहरायी को नहीं मापा जा सकता है। एक राजा की पुत्री (पार्वती) होने के बावजूद उन्हें एक बैरागी (शिव) से प्रेम हो गया और उन्होंने उनसे विवाह भी किया। पिता द्वारा पति का अपमान उनसे सहन नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ की जलती अग्नि में कूदकर स्वयं को भस्म कर लिया। भगवान शिव को इस घटना से बहुत दुःख हुआ और उनका क्रोध राजा दक्ष को झेलना पड़ा था।
भगवान शिव सृष्टि के कर्ता-धर्ता हैं इसके बाद भी उन्होंने माता पार्वती से गंधर्व विवाह नहीं किया। विवाह के लिए समाज में जो रीति प्रचलित थी उन दोनों ने उसका पूर्ण रूप से पालन किया। चाहे माता सती हो या देवी पार्वती का रूप, दोनों ही मौकों पर सभी की सहमति मिलने के बाद ही पूरे विधि-विधान से विवाह की रस्में पूरी की गयी थीं। पूरे परिवार को साथ लेकर चलना आदर्श दंपत्ति का कर्त्तव्य होता है।
सती के रूप में जब भगवान शिव के साथ दाम्पत्य जीवन की शुरुआत न हो सकी तब उन्होंने अगला जन्म पार्वती के रूप में लिया और भोलेनाथ को अपने जीवनसाथी के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। भगवान शिव को अपने जीवन में केवल मां पार्वती का इंतजार था और उधर माता पार्वती ने उन्हें पाने के लिए हर तरह की कठिन परीक्षा दी। माता पार्वती ने हर जन्म में केवल भगवान शिव को ही अपने पति के रूप में पाने के लिए तप किया।
वहीं कैलाशपति ने भी केवल मां पार्वती को जीवनसंगिनी के तौर पर स्वीकार किया। दाम्पत्य जीवन में एक दूसरे के प्रति विश्वास और समर्पण का भाव होना बहुत जरुरी हैं। भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शाया की एक आदर्श परिवार कैसा होना चाहिए। पति पत्नी के बीच प्रेम और घनिष्ठता है तो वहीं उन्होंने अपनी संतानों का पालन पोषण भी पूर्ण जिम्मेदारी के साथ किया।
भगवान शिव और माता पार्वती का वैवाहिक जीवन एक दूसरे के प्रेम में डूबकर सार्थक बना और इसी वजह से उन्हें अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया। दोनों के पास ही अलौकिक शक्तियां थीं मगर इसके बावजूद वो एक दूसरे से अपने हर बात का वर्णन करते थे। एक दूसरे के प्रश्नों का उत्तर देते थे और किसी न किसी कथा के साथ अपना रहस्य बताते थे। वैवाहिक जीवन में एक दूसरे के लिए प्रेम होना जरुरी है, मगर इसके साथ रिश्ते में सम्मान भी अवश्य होना चाहिए।
जिन कपल्स के रिश्ते में सम्मान नहीं होता है वहां कलह बनी रहती है। भगवान शिव ने हमेशा माता पार्वती के लिए मन में सम्मान रखा तो वहीं पार्वती शिव के मान-सम्मान के लिए अपना जीवन त्याग करने से भी पीछे नहीं हटी। भगवान शिव एक योगी और सन्यासी थे जो सदैव समाधि और ध्यान में लीन रहते थे। मगर मां पार्वती के प्रेम ने उन्हें गृहस्थ जीवन से जोड़ा और इस दम्पति ने सफल वैवाहिक जीवन का उदाहरण लोगों के सामने रखा।

अन्य समाचार