मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायकों की खरीद-फरोख्त की इतनी नौटंकी क्यों की?

जयपुर

राजस्थान में 19 जून 2020 को वे राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2 सीटों पर भाजपा 1 सीट पर जीतने में सफल रही थी। यह बात राज्यसभा चुनाव की तारीख तय होने के साथ ही पक्की हो गई थी, क्योंकि राज्यसभा चुनाव ऐसा चुनाव है, जिसमें वोट विधायकों को डालना होता है, जिस दल के पास जितनी संख्या में विधायक होते हैं, उससे यह तय हो जाता है कि कौन सी पार्टी जीतेगी।
राजस्थान में यही हुआ, 125 विधायकों के कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी और उसके खाते में 1 सीटें आनी तय थी, लेकिन इस राज्यसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से स्क्रिप्ट तैयार की गई, उस स्क्रिप्ट के हिसाब से पूरे चुनाव को इस तरह से बनाया गया जैसे राजस्थान में कांग्रेस की सरकार तुरंत ही गिरने वाली है।
ऐसा कुछ हुआ भी नहीं हुआ। बड़ी शांति के साथ कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी सांसद बन गए। अब सवाल तो यह है कि आखिरकार इतनी बड़ी हलचल पैदा करने के पीछे उद्देश्य क्या थे?
दरअसल राजस्थान में हलचल होने के पीछे कारण यह रहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे सहित सरकारी मुख्य सचेतक मीडिया के सामने यह बयान दिए कि कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भाजपा की ओर से निर्दलीय सदस्यों को लेकर आने की कोशिश में हो रही है।
बात सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रही, बल्कि बाकायदा कांग्रेस खेमे में अपने सभी विधायकों को 10 दिन तक फाइव स्टार रिजॉर्ट में बाड़ेबंदी की गई।
इतना ही नहीं, ऐसा माहौल बना दिया गया कि कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान के प्रभारी महासचिव वर्तमान और पूर्व प्रभारी सचिव सहित राष्ट्रीय मीडिया से राज्य के सांसद सहित सचिवों सहित अन्य राज्यों के सचिवों को भी राजस्थान में भेज दिया।
माहौल तो ऐसा बनाया गया कि 24 से ज्यादा विधायक हरियाणा जा सकते हैं। इसके लिए दिन भी दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे राजेश पायलट की पुण्यतिथि का बताया गया। 11 जून को 24 से ज्यादा विधायक पुण्यतिथि पर एकत्र हुए भर जरूर, लेकिन जैसी आशंकाएं जताई गई थी, सभी निर्मूल साबित हुईं।
कांग्रेस का आधार सिर्फ यह था कि 1 सीट जीतने के लिए संख्या बल कम होने के बावजूद भाजपा की तरफ से दूसरा उम्मीदवार खड़ा क्यों किया गया? दूसरी ओर इतना होने के साथ सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी ने पहले ऐसी भी और बाद में एसओजी के महानिदेशक को पत्र लिखकर विधायकों को प्रलोभन देने के मामले की जांच का आग्रह किया गया।
साथ ही कहा गया कि 19 जून तक सारी बातें सामने आ जाएंगी। अब जब राजस्थान में राज्यसभा का चुनाव हुए 3 सप्ताह का समय हो चुका है तो भी राजस्थान की दो जांच एजेंसियों एसीबी और एसओजी इस बात का कोई प्रमाण नहीं खोज पाई है कि राजस्थान में किसी विधायक को प्रलोभन देने या फिर तोड़ने की कोशिश की गई।
इतना ही नहीं सूत्रों के अनुसार एसीबी और एसओजी में शिकायत करने वाले सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी ने अभी तक ना तो दोनों एजेंसियों के सामने कोई बयान दिया है कि एजेंसियों को कोई फोन नंबर उपलब्ध करवाएं, जिनसे विधायकों के पास प्रलोभन के संबंध में कोई बात सामने आए।
ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि यदि ऐसा हुआ ही नहीं है तो फिर 10 दिनों तक राजस्थान में पूरी सरकार की बाड़ेबंदी करना और ऐसा माहौल बनाया जाना कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को वाकई में बहुत बड़ा खतरा है।
जबकि दूसरी ओर उसी सरकार में दूसरे नेता उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सरकार के मुखिया और अन्य नेताओं के बयानों के पहले दिन से ही एक बात कही कि कांग्रेस के पास संख्या बल कितना है कि दोनों सीटें बहुमत से जीतेंगे।
इसके साथ ही सचिन पायलट ने यह भी कहा कि उनके पास ऐसी कोई जानकारी है कि विधायकों को देने की कोशिश हो रही हो और न ही किसी विधायक ने उन्हें इस बारे में बताया है।
यानी कि जहां सरकार के मुखिया सरकार गिराने की कोशिश और प्रलोभन देने की बातें करते रहे, वहीं संगठन के मुखिया और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट लगातार इन बातों से अनभिज्ञता जताते रहे।
ऐसे में अब भी सवाल अनुत्तरित है कि आखिरकार क्या यही स्क्रिप्ट किसी विशेष उद्देश्य के साथ लिखी गई या वास्तव में ऐसा कुछ होने वाला था? यदि होने वाला था तो आज तक यह बात निकलकर सामने क्यों नहीं आई कि कौन भाजपा नेता या अन्य कोई इस तरह का प्रयास कर रहा था?
हालांकि राज्यसभा चुनाव हो जाने के बाद आम लोगों के बीच चर्चा आम बात की तरह धीरे-धीरे खत्म हो सकती, लेकिन सवाल राजनीतिक गलियारों में फिर से खड़े हैं कि आखिरकार इस पूरे प्रकरण का सच क्या है?

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