टीके की सफलता दर सिर्फ दस प्रतिशत, पढ़े पूरी खबर

पूरी संसार में कोरोना वायरस का पहला टीका बनाने की होड़ चल रही है. लगभग सभी बड़े देश दावा कर रहे हैं कि वे पहली वैक्सीन इस वर्ष के अंत तक ले आएंगे,

जिससे कोरोना पर काबू पाया जा सकेगा. इस बारे में संसार के प्रतिष्ठित वायरस विशेषज्ञ प्रो। पीटर पाउट का बोलना है कि अकेले कोरोना का टीका इस महामारी से निजात नहीं दिला पाएगा. उन्होंने कारण बताया कि सामान्यत: टीका बनने में एक से डेढ़ वर्ष लगता है व उसकी सफलता दर बहुत कम होती है.
प्रो। पीटर लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एवं ट्रॉपिकल मेडिसिन के डीन हैं व वह शुक्रवार को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिंगापुर योंग लोओ लिन स्कूल ऑफ मेडिसिन द्वारा आयोजित एक वेबिनार श्रृंखला में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे. उन्होंने बोला कि ऐसा नहीं लगता कि आने वाले कुछ महीनों में यह वैक्सीन तैयार होकर संसार के करोड़ो लोगों में बांटी जा सकती है. साथ ही उन्होंने चेताया कि कोविड की वैक्सीन बनाने में कोई शॉर्टकट नहीं लिया जा सकता, किसी तरह की जल्दबाजी टीके के प्रभाव को व कम कर सकती है.
टीके की सफलता दर सिर्फ दस प्रतिशत- प्रो। पीटर ने बोलना है कि सामान्यत: टीके की सफलता दर बहुत कम मात्र दस फीसदी होती है पर वे मानते हैं कि अगर कोरोना का संभावित टीका 70 फीसदी असरदार हुआ तो यह बड़ी सफलता होगी.
लंबे समय तक बचाव ढंग अपनाने होंगे- वैज्ञानिक का बोलना है कि लोगों को टीका आने का इंतजार करने की स्थान मास्क पहनने व शारीरिक दूरी का पालन करने के उपायों को लंबे वक्त तक अपनाना होगा. यह अच्छा उसी तरह है जैसे एचआईवी के उपचार में लोकल स्तर पर रोकथाम व आवश्यकता मुताबिक हस्तक्षेप का उपाय अपनाया जाता है.
इबोला खोजने वाले वैज्ञानिक- प्रो। पीटर इबोला वायरस खोजने वाली टीम में प्रमुख वैज्ञानिक थे. साथ ही एचआईवी के विरूद्ध वैश्विक लड़ाई में वह अग्रणी रहे हैं.
खुद संक्रमित हो गए- वह अपने अध्ययन के दौरान कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए व तीन महीने बाद अच्छा हो सके. वह कहते हैं कि कोरोना बहुत खतरनाक वायरस है, यह दिल ही नहीं सारे शरीर पर प्रभाव डालता है.

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