गाय का कच्चा दूध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने कि सम्भावना है. डेविस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिर्फोनिया में किए गए एक शोध में यह खुलासा हुआ है. शोध के अनुसार दुकानों से खरीदा गए कच्चे दूध को ज्यादा देर तक कमरे के सामान्य तापमान पर रखने से उनमें
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी जीन की मात्रा बढ़ने लगती. अध्ययन में ऐसे बैक्टीरिया भी पाए गए जो एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी जीन को संग्रहित करते हैं व उन्हें अन्य बैक्टीरिया में स्थानांतरित कर सकते हैं. ऐसे दूध का सेवन करने से शरीर में एंटी बैक्टीरियल दवाओं के प्रति प्रतिरोध बढ़ सकता है. यह अध्ययन माइक्रोबायोम पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.
प्रमुख शोधकर्ता जिंक्सिन लियू ने कहा, हम लोगों को डराना नहीं चाहते हैं, हम उन्हें शिक्षित करना चाहते हैं. यदि आप कच्चा दूध पीते रहना चाहते हैं, तो इसे अपने फ्रिज में रखें ताकि उसमें एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन के साथ बैक्टीरिया विकसित होने का खतरा कम हो.
प्रोबायोटिक की होती है कमी- कच्चे दूध को ग्राहकों को यह कहकर बेचा जाता है कि इसमें पाश्च्युकृत दूध की तुलना में बड़ी मात्रा में प्रोबायोटिक यानि स्वास्थ्य वर्धक बैक्टीरिया उपस्थित होते हैं. शोधकर्ताओं ने बोला कि यह बात हकीकत नहीं है. लियू ने कहा, दो चीजों ने हमें चौंकाया. हमें कच्चे दूध के नमूनों में बड़ी मात्रा में फायदेमंद बैक्टीरिया नहीं मिले, व यदि आप कमरे के तापमान पर कच्चा दूध छोड़ते हैं, तो यह पाश्च्युकृत दूध की तुलना में नाटकीय रूप से अधिक एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी जीन बनाता है. कच्चा दूध जितनी देर कमरे में खुला रखा रहता है उसकी गुणवत्ता उतनी बेकार होती जाती है.
सुपरबग बनने का खतरा- शोधकर्ताओं ने बोला कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधी जीन वाले बैक्टीरिया अगर इस जीन को किसी रोगाणु में स्थानांतरित कर देंगे तो इसके सुपरबग बनने का खतरा बढ़ जाएगा. ऐसे में इस सुपरबग पर किसी भी प्रकार की दवा कार्य नहीं करेगी. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार हर वर्ष लगभग 30 लाख लोगों को एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमण होता है व इनमें से तकरीबन 35,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है.
ऐसा किया अध्ययन- शोधकर्ताओं ने पांच राज्यों के 2,000 से अधिक खुदरा दूध के नमूनों का विश्लेषण किया, जिसमें कच्चे दूध व भिन्न-भिन्न उपायों से पाश्च्युकृत किए गए दूध थे. अध्ययन में पाया गया कि कमरे के तापमान पर कच्चे दूध में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगाणुओं की व्यापकता ज्यादा थी. शोधकर्ता मिशेल जे-रसेल ने कहा, हमारे अध्ययन से पता चलता है कि कच्चे दूध में किसी भी तरह के कमरे के तापमान में यह रोगाणुरोधी प्रतिरोधी जीन के साथ बैक्टीरिया विकसित होने कि सम्भावना है. इस तरह का दूध पीने से शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता कम होती है व एंटीबायोटिक दवाओं का प्रभाव होना भी बंद हो जाता है.