अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती है। कबीर दास जी भी कह गए हैं, 'अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।' ऐसा ही कुछ कोरोना संक्रमण के कारण भारी डिमांड में आए आयुर्वेदिक काढ़े के साथ भी है। आयुर्वेद में मानव शरीर का इलाज वात, पित्त और कफ में बांटा गया है। भोजन से लेकर चिकित्सा तक इसी आधार पर होती है। इसके साथ ही खान-पान को भी मौसम के अनुसार बांटा गया है।
लोगों ने काढ़े को रामबाण समझ लिया है और हर कुछ घंटे के बाद वे कोरोना से बचाव के लिए काढ़ा पी लेते हैं। इस संबंध में आयुर्वेद के विशेषज्ञ भी चेतावनी देते हैं। उनका कहना है कि जरूरत से ज्यादा काढ़ा शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकता है। यदि आपको लगातार पीने के बाद कोई परेशानी महसूस हो तो अपने डॉक्टर या फिर आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें। आइये जानते हैं कि काढ़े से होने वाले संभावित नुकसान और उसके कारणों के बारे में।
पांच लक्षण दिखें तो सावधान हो जाएंनाक से खून आ सकता है। खासकर बीपी के मरीजों और नाक से जुड़ी समस्याओं के मरीजों में ऐसा हो सकता है। नाक से खून आने पर गंभीर हो जाएं।
मुंह में छाले पड़ सकते हैं। काढ़े के कारण मुंह के अंदर दाने हो सकते हैं, जो बाद में छाले का रूप ले सकते हैं। इससे खाना खाने में परेशानी हो सकती है।
एसिडिटी की परेशानी हो सकती है। पाचन क्रिया तक गड़बड़ा सकती है। खट्टी डकारें आने पर सावधान हो जाएं।
यदि आप भारी खाना नहीं खा रहे हैं तो इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।
पेशाब करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। पेशाब करते समय जलन महसूस हो सकती है। यदि ऐसी कोई समस्या आपको हो रही है तो सावधान हो जाएं।आयुर्वेद के विशेषज्ञ बताते हैं कि काढ़े की मात्रा और उसे कितना पतला या गाढ़ा होना चाहिए, यह हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है।
इसका निर्धारण व्यक्ति की उम्र, मौसम और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है।
काढ़े में काली मिर्च, हल्दी, गिलोय, अश्वगंधा, दालचीनी, इलायची और सोंठ जैसे मसाले डाले जाते हैं। इन सभी की तासीर गर्म होती है।
ये सभी शरीर में गर्मी पैदा करते हैं। इस गर्मी के कारण ही नाक से खून आने और एसिडिटी जैसी समस्याएं होती है।
काढ़ा गर्म होता है और इसे पीने के कारण मुंह का स्वाद थोड़ा खराब हो जाता है। लोग ज्यादा फायदे के लिए काढ़ा पीने के बाद लंबे समय पानी भी नहीं पीते।
हैं। शरीर में गर्मी बढे के कारण हमारी कोशिकाओं में पानी की मांग बढ़ जाती है, जबकि हम पानी की मात्रा नहीं बढ़ाते हैं।
यदि आप किसी भी वजह से आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह नहीं ले पा रहे हैं तो काढ़ा बनाते समय सतर्क रहें। न सिर्फ सामान की क्वालिटी, बल्कि मात्रा को लेकर भी। विशेषज्ञों की राय है कि जब भी आप काढ़ा पिओएं तो शरीर में होने वाले बदलावों पर ध्यान दें। यदि खट्टी डकार, एसिडिटी, पेशाब करने में दिक्कत हो तो तुरंत सामग्री की मात्रा को कम कर दें। काढ़े में ज्यादा पानी डालें और इसकी मात्रा भी कम लें। काली मिर्च, इलायची, अश्वगंधा, सोंठ और दालचीनी की मात्रा को कम ही रखना चाहिए।
कफ प्रकृति वालों को काढ़े का सीधा और ज्यादा फायदा मिलता है। उनका कफ दोष काढ़े से कम होता है। पित्त और वात दोष वालों को सावधान रहना चाहिए। विशेषज्ञ कहते हैं कि पित्त दोष वालों को काली मिर्च, दालचीनी और सोंठ का बहुत कम इस्तेमाल करना चाहिए। इसी तरह वात वालों को एसिडिटी से सावधान रहना चाहिए।
चैते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।
सावन साग, भादो मही, कुवार करेला, कार्तक दही।
अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना।
जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।।।
कब क्या खाना चाहिए चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल।
कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल।
माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।।
कहावतों से लें सीख
हमारे बुजुर्गों ने खान-पान को लेकर हमें बहुत-सी कहावतें बताई हैं, उनका मकसद है सतर्कता। कोरोना काल में सतर्क रहने में ही ज्यादा भलाई है। हमें इन कहावतों से सीख लेकर अपने खान-पान की आदतों में सुधार लाना चाहिए।
बिना चिकित्सीय परामर्श बार-बार काढ़ा पीना हृदय, रक्तचाप और हाइपर एसिडिटी वाले मरीजों के लिए नई कठिनाई पैदा कर सकता है। दिन में अधिकतम दो बार काढ़ा पीना चाहिए, सुबह खाली पेट और शाम को जब पेट खाली महसूस हो। इसकी मात्रा 20-40 मिली रखनी चाहिए। अधिक काढ़ा पीने से रक्तचाप और एसिडिटी में बढोत्तरी के अलावा सीने में जलन की समस्या हो सकती है।