वर्क फ्रॉम के दौरान लोगों में वजन बढऩा, तनाव, थकान, फैट की चर्बी व अनिद्रा की बड़ी कठिनाई, ऐसे पाए निजात

कोरोना महामारी के संक्रमण के अतिरिक्त भी जीवनशैली पर अन्य कई बातों का भी प्रभाव पड़ा है. सबसे ज्यादा फर्क लॉकडाउन की वजह से वर्कफ्रॉम होम ने डाला है.

घर से कार्य करने की सुविधा ने जहां लोगों को आराम पसंद बनाया है वहीं खान-पान की बिगड़ी हुई आदतों ने बढ़ा हुआ पेट व वजन भी हमारे हिस्से में जोड़ दिया है. हाल ही हुए बहुत से शोध इस बात की तस्दीक करते हैं कि वर्क फ्रॉम के दौरान लोगों में वजन बढऩा, तनाव, थकान, फैट की चर्बी व अनिद्रा की कठिनाई आम समस्या बनकर उभरी हैं.
खाने की बेकार आदत बनी वजह शोधकर्ताओं का बोलना है कि वर्क फ्रॉम होम कल्चर से अब तक कुछ ही क्षेत्र वाकिफ थे जहां प्राकृतिक आपदा व अन्य कारणों से अक्सर लोग वर्क फ्रॉम होम कल्चर को अनुसरण करते हैं. मुम्बईमें बारिश के मौसम में जब ट्रेनें व लोकल ट्रांसपोर्ट ठप हो जाता है तो कार्यालय का कार्य घर से करने का ट्रेंड बीते कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है. अब घर पर कार्य करने के दौरान खाने-पीने की आदतों पर किसका कंट्रोल रहता है. एक सर्वे में सामने आया कि लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम हो मके दौरान फास्ट फूड, चॉकलेट, चिप्स व बेकरी उत्पादों के अतिरिक्त घर का बना तला-बुना खाना वजन बढऩे व मोटापे के लिए जिम्मेदार हैं. एक-तिहाई लोगों ने यह भी बोला कि वे इस दौरान सामान्य दिनों से ज्यादा चाय, कॉफी, कोल्डड्रिंक व जूस पीने लगे हैं. ज्यादातर ने माना कि इसका एक बड़ा कारण वर्क फ्रॉम होम कल्चर में शारीरिक सक्रियता घटने व देर तक बैठकर कार्य करना है. व्यायाम से दूरी ने भी इसमें इजाफा किया है.
3 गुना बढ़ गया है तनाव ब्रिटेन में हुए एक शोध में बोला गया है कि लॉकडाउन के बाद बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है. बाथ यूनिवर्सिटी में बच्चों व नौजवानों की मानसिक स्वास्थ्य पर अकेलेपन के प्रभाव के बारे में एक अध्ययन किया गया जिसका निष्कर्ष था कि आने वाले सालों में लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की ज़्यादा ज़रूरत पड़ सकती है. शोधकर्ताओं ने बोला है कि बच्चों व किशोरों में इस दौरान डिप्रेशन व चिंता जैसी समस्याएं उभर सकती हैं. शोध के अनुसार युवाओं में डिप्रेशन का खतरा पहले की तुलना में तीन गुना बढ़ गया है व अकेलेपन का असर व डिप्रेशन का प्रभाव कम-से-कम नौ वर्ष तक रह सकता है. वहीं घर से कार्य कर रहे लोगों ने लॉकडाउन के दौरान मन में खुद की निगेटिव छवि बनने की बात कही. 50 प्रतिशत से अधिक स्त्रियों ने बेचैनी की शिकायत की. वहीिं एक तिहिाई की नींद इस दौरान हुए अकेलेपन के एहसास के चलते उड़ गई है.

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