नई दिल्ली: हाल ही में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि मानसिक तनाव ना केवल भ्रूण और बच्चे के विकास को प्रभावित करता है बल्कि जन्म के परिणामों पर भी प्रभाव डालता है। यह अध्ययन ऑनलाइन जनरल - पीएनएएस, द प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है। कैथरीन मोंक पीएचडी, कोलंबिया विश्वविद्यालय वैगेलोस कॉलेज ऑफ फिजीशियन और सर्जन में चिकित्सा मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर और न्यूयॉर्क - प्रेस्बिटेरियन/ कोलंबिया विश्वविद्यालय इरविंग मेडिकल सेंटर में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में महिला मानसिक स्वास्थ्य के निदेशक हैं। उन्होंने बताया कि "गर्भ भी बच्चे के लिए उतना ही प्रेरक होता है जितना कि वह घर जिसमें जन्म के बाद बच्चा रहता है।" तनाव कई प्रकार से दिखाई दे सकता है, दोनों तरीके से, चाहे वह व्यक्तिपरक अनुभव हो और शारीरिक और जीवन शैली के माप में, मोंक तथा उनके सहयोगियों ने 18 से 45 आयु की 187 स्वस्थ रूप से गर्भवती महिलाओं की 27 मानकों पर जांच की।
ये मानक मानसिक, शारीरिक और जीवनशैली से संबंधित तनाव थे जिन्हें प्रश्नावली, डायरी और उनके दैनिक शारीरिक आंकलन से एकत्र किया गया था। अध्ययन से पता चलता है कि शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तनाव का सामना करने वाली गर्भवती महिलाओं को लड़का होने की संभावना बहुत कम होती है। मोंक ने बताया कि "सामाजिक उथल पुथल जैसे न्यूयॉर्क शहर में हुए 9/11 आतंकवादी हमले के बाद ऐसा पैटर्न देखने में आया है कि लड़कों की जन्म दर घट गयी है।" मोंक ने यह भी बताया कि "यह तनाव महिलाओं में लंबे समय तक रहने की संभावना है, अध्ययनों से पता चला है कि पुरुष प्रतिकूल प्रसवपूर्व वातावरण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। पूर्व में गर्भपात हो जाने पर तथा उस गर्भपात में लड़के की हानि होने के बाद, अकसर जब उन्हें पता भी नहीं होता कि वे गर्भवती हैं, बहुत अधिक तनाव से गुजरने वाली महिलाओं द्वारा लड़के को जन्म देने की संभावना बहुत कम होती है।"
इसके अलावा तनाव रहित माताओं की तुलना में शारीरिक रूप से तनावग्रस्त माताएं जिनका ब्लडप्रेशर और कैलोरी इनटेक अधिक होता है उनके द्वारा जन्म के समय से पहले बच्चे को जन्म देने की संभावना अधिक होती है। तनाव रहित माताओं की तुलना में शारीरिक रूप से तनावग्रस्त माताओं में भ्रूण की हृदयगति कम हो जाती है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के धीमे विकास का संकेतक है। मानसिक रूप से तनावग्रस्त माताओं में जन्म संबंधित समस्याएं आने की संभावना अधिक होती है। शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि तीन समूहों में सबसे अलग जो था वह था दोस्तों और परिवार से मिलने वाला सामाजिक सहयोग। उदाहरण के लिए जिस मां को सामाजिक सहयोग जितना अधिक मिलता है उसे लड़का होने की संभावना उतनी अधिक होती है। जब सामाजिक सहयोग को समूहों में सांख्यकीय रूप से समान रूप से बांटा गया तो समय से पूर्व जन्म पर तनाव के प्रभाव कम हो गए। मोंक ने बताया कि "जन्मपूर्व अवसाद और चिंता की स्क्रीनिंग जन्मपूर्व किये जाने वाला एक निश्चित अभ्यास बनता जा रहा है।
परन्तु हमारा अध्ययन छोटा था, परिणाम बताते हैं कि सामाजिक समर्थन बढ़ाना संभवत: रोगविषयक हस्तक्षेप के लिए एक प्रभावी लक्ष्य है।" शोधकर्ताओं के अनुसार लगभग 30% गर्भवती महिलाओं को नौकरी की थकान या अवसाद के कारण तनाव होता है। इस प्रकार के तनाव के कारण समय से पूर्व जन्म होने की संभावना बढ़ जाती है जिस कारण नवजात शिशु मृत्यु दर भी बढ़ती है या बच्चों में मानसिक और शारीरिक विकार जैसे ध्यान की कमी, अतिसक्रियता और बच्चों में चिंता आदि आने की संभावना होती है।