कोरोना से इलाज में जल्द मिलेगी राहत. ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सीटी का दावा- खोज ली गई है दवा

Coronavirus: ब्रिटेन की एक रिसर्च टीम ने दावा किया है कि कोरोना से छुटकारा के लिए एक दवा 'डेक्सामीथाज़ोन' की खोज कर ली गई है. रिसर्च टीम का दावा है कि कोरोना के जो मरीज़ वेंटीलेटर पर हैं उनमें एक तिहाई मौत की दर में कमी आएगी और ऑक्जीज़न के सहारे जीवन जी रहे 20 फीसद मरीज़ को जीवन दान दिया जा सकता है. ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सीटी की इस टीम ने नौ दिन के रिकॉर्ड समय में इस ट्रायल को पूरा किया है.

मिल गया कोरोना का राम वाण कोरोना से रिकवरी ट्रायल में ब्रिटेन के 175 अस्पतालों के अलावा 11500 मरीज़ों ने भाग लिया. ट्रायल में पाया गया कि 'डेक्सामीथाज़ोन' के इस्तेमाल से कोरोनो से मौत को आंकड़े में कमी आई है. रिसर्च टीम का कहना है कि आमतौर पर वेंटीलेटर में रहने वाले 100 मरीज़ों में से 40 की मौत हो जाती है लेकिन 'डेक्सामीथाज़ोन' के इस्तेमाल से ये संख्या घटकर 28 हो गई. वहीं जो मरीज़ ऑक्सीज़न पर थे उनमें मौत का दर 25 से कम होकर 20 हो गया. ये दवा फेफड़ों को जल्द ठीक करने में मददगार साबित हो रही है. रिसर्च में अभी तक ये देखा गया कि 'डेक्सामीथाज़ोन' उन मरीज़ों में कारगर है जो वेंटीलेटर पर हैं या जिनहें ऑक्सीज़न पर रखा गया है. विश्व स्वास्थय संगठन ने इस ट्रायल को जीवन बचाने वाला वैज्ञानिक कदम बताया है. रिसर्च के इस स्टडी को 'रिकवरी' नाम दिया गया है.
रिसर्च टीम का दावा ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सीटी के रिसर्च टीम के मुखिया प्रोफेसर पीटर होरबी और उनके साथी मार्टिन लेंडरे ने रिकॉर्ड समय में इस रिकवरी ट्रायल को पूरा किया. आमतौर पर इस तरह के रिज़ल्ट में सालों लग जाते हैं. टीम का दावा है कि आने वाले कुछ हफ्तों में विस्तृत जानकारी दी जाएगी. रिकवरी ट्रायल टीम एक और एंटी वायरस के साथ-साथ एक एंटी बायोटिक और ठीक होने वाले मरीज़ो के प्लाज़मा पर रिसर्च की तैयारी में है. ब्रिटेन में हुए इस रिसर्च में ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सीटी के 20 लोगों के अलावा कुल 3500 लोगों ने भाग लिया जिनमें मरीज़ो के साथ-साथ डॉक्टर, नर्स, रिसर्चर और एडमिन स्टाफ भी शामिल हैं. इस रिसर्च के लिए मरीज़ो के परिवार वालों से इजाज़त ली गई थी. इस ट्रायल में कोरोना के अधिकतर वो मरीज़ शामिल थे जो कैंसर जैसे बीमारी से जूझ रहे थे. कोरोना से निजात पाने के लिए पहले भी दवा का प्रयोग हो चुका है लेकिन ठोस नतीजे नहीं मिलने से WHO ने उस पर रोक लगा दी थी.

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