आइए जानिए, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा इस बीमारी के बारे में

कोरोना वायरस (Corona Pandemic) ने बीते चार महीनों में ही लोगों की शारीरिक गतिविधियों, दिनचर्या व सामाजिक व्यवहार को बदल कर रख दिया है.

ब्रिटेन की बाथ यूनिवर्सिटी (Bath University) में बच्चों व नौजवानों की मानसिक स्वास्थ्य पर अकेलेपन के प्रभाव के बारे में एक अध्ययन किया गया जिसका निष्कर्ष था कि लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान युवाओं में डिप्रेशन का खतरा पहले की तुलना में तीन गुना बढ़ गया है व अकेलेकपन का यह असर व डिप्रेशन का प्रभाव कम-से-कम नौ वर्ष तक रह सकता है. लॉकडाउन में डिप्रेशन (Depression) बेहद आम मानसिक कठिनाई हैं लेकिन अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो यह जानलेवा भी साबित होने कि सम्भावना है.
मेंटल हैल्थ को गंभीरता से लें विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) का बोलना है कि डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी बनती जा रही है. आज दुनियाभर के विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न आयु वर्ग के 26 करोड़ से ज़्यादा लोग डिप्रेशन का शिकार हैं. डब्ल्यूएचओ का बोलना है कि यह तो सिर्फ सीमित दायरे में किए गए शोध के नतीजे हैं जबकि वास्तविकता इससे कहीं भयावह हो सकती है. अक्सर लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं होती कि वे किसी तरह के डिप्रेशन (अवसाद) से गुजर रहे हैं. हाल के कुछ सालों में डिप्रेशन के चलते किशोरवय आयु से लेकर युवाओं की आत्महत्या में उछाल आया है. वार्निक (Värnik) संस्था का दावा है कि हिंदुस्तान की समायोजित वार्षिक आत्महत्या दर प्रति 1लाख पर 10.5 है, जबकि सारे दुनिया में आत्महत्या की दर प्रति 1 लाख पर 11.6 है. लेकिन अक्सर लोग उदासी व एंग्जायटी को डिप्रेशन समझ लेते हैं जबकि इनमें बहुत ज्यादा अंतर होता है. वहीं डिप्रेशन शब्द को हल्के में लेने की गलती तो हम सभी करते हैं.
डिप्रेशन को समझना है जरूरी जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब हम वांक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाते, ऐसा होने पर हम उदास व हताश हो जाते हैं. लोग इसी हताशा व उदासी को डिप्रेशन समझ लेते हैं. लेकिन चिकित्सकों का बोलना है कि यह डिप्रेशन नहीं है बल्कि किसी अनजाने डर, बुरे हालातों या रिश्तों ओर नौकरी में आ रही परेशानियों से उपजी उदासी या चिंता भी हो सकती है. डब्ल्यूएचओ की हैल्थ विंग का बोलना है कि डिप्रेशन या अवसाद एक आम लेकिन तेजी से फैलती मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारी है. चिकित्सकों का बोलना है कि आसान शब्दों में डिप्रेशन आमतौर पर हमारे मूड में आने वाले उतार-चढ़ाव व अस्थायी समय के लिए मस्तिष्क में होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग होती है. डिप्रेशन के लक्षणों में लगातार उदास रहना, लोगों से दूरी बना लेना, सामाजिक गतिविधियों से खुद को अलग कर लेना, निराशाजनक बातें करना व ज़िंदगी में रुचि कम होना अवसाद केआम लक्षण हैं.
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है डिप्रेशन डब्लूचओ के अनुसार एंग्जायटी डिसऑर्डर (Anxiety Disorder) आमतौर पर भय व घबराहट के लक्षण वाली एक मानसिक बीमारी है. इसके भिन्न-भिन्न स्तर व स्वरूप हो सकते हैं. डिप्रेशन के शिकार कई लोगों में एंग्ज़ाइटी के लक्षण भी होते हैं. अक्सर किसी नजदीकी सगे-संबंधी, दोस्त या पसंदीदा सोशल पर्सनैलिटी की मृत्यु की समाचार सुनकर कुछ लोग उदास हो जाते हैं, यह उदासी कुछ घंटो दिनों तक भी बनी रह सकती है लेकिन फिर सभी सामान्य जिंदगी में लौट आते हैं. लेकिन इसे डिप्रेशन नहीं कह सकते. घबराहट, निर्बल महसूस करना व बेचारगी का भाव एंग्जायटी होने कि सम्भावना है. लेकिन जब यह भावना एक सीमा से गुजर जाती है व हम ज़िंदगी में कुछ भी अच्छा होने की उम्मीद खो देते हैं तो यह स्थिति डिप्रेशन कहलाती है. लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं कि जिसे एंग्जायटी हो उसे डिप्रेशन भी हो या डिप्रेशन के शिकार आदमी को एंग्ज़ाइटी भी हो.
ऐसे सुधारें अपनी बिगड़ी मनोदशा अवसाद के शिकार लोगों को सैशन-दर-सैशन मनोचिकित्सक काउंसिल करते हैं. उन्हें ऐसे कामों को करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिसे करने में उन्हें आनंद की अनुभूति होती हो. अपनी मर्जी का कार्य करने व शौक को पूरा करने से मानसिक स्वास्थ्य में गजब का सुधार देखने को मिला है. ऐसे लोगों को अपना ध्यान दूसरी गतिविधियों पर लगाना चाहिए. सबसे ज्यादा क्रिएटिव एक्टिविटी ही सुधार लाने में मदद करती हैं. ऐसी गतिविधियों का मकसद सिर्फ परेशान करने वाली बातों से ध्यान बंटाना होता है. सकारात्मक असर डालने वाली गतिविधियां आदमी को नैराश्य से उभरने में मदद करती हें. लेकिन पॉजिटिविटी को सिर्फ जीवंत स्वरूप में ही नहीं देखना चाहिए.
अपनी सीमाओं के आगे निकलकर वो कार्य करने की हौसला जुटाना जो अब तक हमारे लिए असंभव था वह भी एक सकारात्मक कदम है. लेकिन सबसे ज्यादा जयरी है कि हमें मालूम हो कि हम डिप्रेशन के दौर से गुजर रहे हैं. इसलिए ऐसे लोगों के बीच रहें जो आपका खयाल रखते हों जिन्हें आपकी फिक्र हों व जो लगातार आपको हौसला बढ़ाने का कार्य करते हैं. ऐसे लोगों को अवसाद से उबरने में ज्यादा सरलता होती है व जिंदगी के पटरी पर लौटने के लिए ऐसे लोगों की मदद बेहद महत्वपूर्ण है.

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