अगर अनलॉक-01 की छूट का आप भी मजा ले रहे हें तो जरा सावधान हो जाएं. दरअसल, कोरोना संक्रमण से हिंदुस्तान का पीछा आगामी अक्टूबर तक नहीं छूटने वाला.
यह दावा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अपने एक ताजा अध्ययन के निष्कर्षों को देखने के बाद कही है. आइसीएमआर ने चेतावनी देते हुए बोला है कि देश में कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्या अक्टूबर तक बढऩा जारी रख सकती है. इस शोध में आइसीएमआर के साथ शामिल पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एल्युकेशन एंड रिसर्च व राष्ट्रीय कोविड-19 कार्यबल संचालन अनुसंधान समूह एंव अन्य अन्तरराष्ट्रीय संस्थान शामिल थे. आइसीएमआर ने बोला कि दो महीने चले देशव्यापी लॉकडाउन के चलते हिंदुस्तान में कोरोना संक्रमण के चरम बिंदू को 34 से 76 दिन आगे ढकेल दिया है. बताते चलें कि आइसीएमआर ने पहले बोला था कि देश में संक्रमण के मुद्दे जुलाई के अंत तक अपने चरम पर होंगे.
मेट्रो शहरों में रेकॉर्ड मुद्दे आ रहे हालांकि, लॉकडाउन ने कोरोना महामारी के प्रसार को धीमा कर दिया है. लेकिन लॉकडाउन की पाबंदी समाप्त होने के बाद एक बार फिर से देश अब मुंबई, दिल्ली व चेन्नई में संक्रमणों में नए सिरे से वृद्धि देख रहा है. शोध के दौरान आइसीएमआर मॉडल ने पाया कि लॉकडाउन अवधि के दौरान कोविड मामलों की संख्या 69 प्रतिशत से 97 प्रतिशत तक कम हो सकती है. हालांकि जनता गाइडलाइंस का कितना पालन करती है, यह उस पर भी निर्भर करता है. वहीं, कोरोना संक्रमण के मामलों की संचयी संख्या (cumulative number) प्रतिबंधों की लंबी अवधि के दौरान नियमों का पालन करने के बावजूद अप्रभावित ही रहेगी.
प्रति हजार पर एक से ज्यादा मौत शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि हिंदुस्तान में कोरोना संंक्रमित प्रति 1000 लोागों में से एक से ज्यादा (1.6 लोगों की वार्षिक मौत दर) रोगियों की मृत्यु होने की दर सामने आई है. हालांकि राहत की बातयह है कि इस बीच आइसोलेशन वार्ड, चिकित्सकीय संसाधन जैसे आईसीयू बेड व वेंटिलेटर सितंबर के तीसरे हफ्ते तक की जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में पर्याप्त मात्रा में उपस्थित हैं. शोध में यह भी पाया गया कि लॉकडाउन के बाद 60 प्रतिशत प्रभावशीलता के साथ इमरजेंसी परिस्थितियों में जरुरत पडऩे पर नवंबर के पहले हफ्ते तक जरूरीसंसाधनों की मांग को पूरा कर लिया जाएगा.
बड़े शहर बने चिंता का कारण इस बीच स्वास्थ्य विशेषज्ञों, चिकित्सकों व सरकार की चिंता का प्रमुख कारण बड़े शहरों में तेजी से बढ़ते संक्रमण की दर व मुद्दे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता की बात यह है कि दिल्ली व मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी बुनियादी ढांचा चरमराने लगा है. जबकि महाराष्ट्र में कोविड-१९ रोगियों से निपटने के लिए बेड, डॉक्टरों व नर्सों की कमी से जूझ रहा है. दिल्ली सरकार के अनुमान के अनुसार, राजधानी को ही जुलाई के अंत तक 80 हजार बेड्स की जरूरत होगी. जबकि दिल्ली में जून के अंत तक मामलों की कुल संख्या 1 लाख तक बढऩे की आसार है. सरकार 15 हजार अस्पताल के बेड की मांग को पूरा करने की तैयारी में जुटी हुई है. ऐसी ही स्थिति तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान व यूपी की भी है.
किस प्रदेश में कितने बेड्स कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों की बात करें तो दिल्ली में ही सबसे कम बेड्स की व्यवस्था है. यहां कोरोना संक्रमितों के लिए केवल 9802 बेड्स ही आरक्षित हैं. वहीं संक्रमण के मुद्दे में चाइना को भी पीछे छोड़ देने वाले महाराष्ट्र में 17847 बेड्स, तमिलनाडु में 17,500 बेड्स, गुजरात में 23,000 व राजस्थान में 43,704 बेड्स कोरोना संक्रमितों के लिए आरक्षित हैं. वहीं विशेषज्ञों को इस बात की भी चिंता है कि प्रवासी मजदूरों के अपने गांव लौटने पर अब ग्रामीण क्षेत्रोंमें भी कोरोना का कहर देखने को मिल सकता है. नेशनल हैल्थ प्रोफाइल-2019 के आंकड़ों की मानें तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में भी खस्ता है. अगर 0.03 प्रतिशत ग्रामीण आबादी भी कोरोना संक्रमित हो जाती है तो ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में उनके लिए बेड्स की व्यवस्था नहीं है. आंकड़ोंसे यह भी पता चलता है कि 26 हजार सरकारी अस्पतालों में से सिर्फ 21 हजार ही ग्रामीण क्षेत्र में स्थित हैं बाकी के अस्पताल भी शहरी क्षेत्र में बने हुए हैं.