अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस का सबसे खतरनाक रूप खोजने का दावा किया है. अमेरिका व इटली में संक्रमितों से प्राप्त खून के नमूनों के विश्लेषण में उन्होंने सार्स-कोव-2 वायरस की जेनेटिक संरचना में आए उस छोटी परिवर्तन की पहचान कर ली है, जिससे दोनों राष्ट्रों में संक्रमण बेकाबू हो गया.
पांच गुना ज्यादा संक्रामक- -कैलिफोर्निया स्थित स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं की मानें तो जेनेटिक परिवर्तन से पनपे सार्स-कोव-2 वायरस की सबसे खतरनाक नस्ल में स्पाइक प्रोटीन की मात्रा चार से पांच गुना तक बढ़ जाती है. इससे वायरस को मानव कोशिकाओं पर डेरा जमाने में तो सरलता होती ही है, साथ ही वे अधिक समय तक उस पर टिके रहने में सक्षम भी बन जाते हैं.
प्रोटीन से बढ़ती हमलावर क्षमता- -मुख्य शोधकर्ता हैरून चो के मुताबिक सार्स-कोव-2 की सतह पर उपस्थित स्पाइक प्रोटीन 'एसीई-2 रिसेप्टर' से जुड़ने की वायरस की क्षमता बढ़ाता है. चूंकि ये रिसेप्टर फेफड़ों व रक्त धमनियों की कोशिकाओं में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, इसलिए कोरोना वायरस उन्हें सरलता से निशाना बना लेता है. अमेरिका में वायरस के इस रूप का प्रसार यूरोप से होने का अंदेशा है.
खात्मा सरल नहीं- -शोध में देखा गया कि सार्स-कोव-2 वायरस की सबसे खतरनाक नस्ल में उपस्थित स्पाइक प्रोटीन की संरचना बेहद लचीली है. इससे वायरस में पाए जाने वाले जीन इलास्टिक के रूप में कार्य करने लगते हैं. उन्हें दवाओं से तोड़ना बहुत ज्यादा कठिन बन जाता है.