नई दिल्ली, 13 जून (आईएएनएस)। भले ही कोविड-19 महामारी के मद्देनजर लागू किए गए राष्ट्रव्यापी बंद के तहत निर्धारित प्रतिबंध अब धीरे-धीरे कम कर दिए गए हों और देश सामान्य दिनचर्या में वापस आ गया हो, मगर अभी भी ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें अपने घर पहुंचने का इंतजार है।देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी कामगार ऐसे ही लोगों में से हैं। आईएएनएस ने उनमें से कुछ से मुलाकात की, जो आवागमन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से कश्मीर घाटी में लगभग तीन महीने से अटके हुए थे।
घाटी में फंसे इन मजदूरों पर तब जाकर ध्यान आकर्षित हुआ, जब उनकी दुर्दशा को उजागर करने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने उनमें से 82 लोगों को बचाने के लिए एक मिनी एयरलिफ्ट ऑपरेशन को अंजाम दिया।
कश्मीर घाटी में सामने आई चुनौतियों को याद करते हुए बिहार के रहने वाले मोहम्मद सद्दाम ने कहा, यह बहुत जटिल और तनावपूर्ण स्थिति थी। हम लॉकडाउन के पहले दिन से ही कश्मीर में फंसे हुए थे।
उन्होंने कहा, हम लॉकडाउन से कुछ महीने पहले घाटी में आए थे। हमारे आसपास का माहौल खूबसूरत जरूर था, मगर साथ ही यह परेशान करने वाला भी था। गोलियां दागे जाने और बम फटने की लगातार आवाजें आ रही थीं।
सद्दाम ने कहा, इस स्थिति में बच पाना बेहद मुश्किल लग रहा था, क्योंकि कभी-कभी हमें दिन में केवल एक बार भोजन मिलता था और किसी दिन तो एक बार भी खाना नसीब नहीं होता था।
मजदूरों का यह समूह नौकरियों की तलाश में जम्मू-कश्मीर गया था। उनकी अधिकांश बचत बहुत पहले खत्म हो गई थी। इसके बाद इन्होंने महसूस किया कि जरूरी चीजों का प्रबंध कर पाना बेहद मुश्किल है।
एक अन्य मजदूर मोहम्मद मारबोब ने कहा, हम अपनी रोटी के इंतजाम के लिए बिना किसी सुविधा के श्रीनगर में तीन महीने से अटके हुए थे। हमारी मदद करने के लिए कोई नहीं था, न तो सरकार और न ही स्थानीय लोग।
उन्होंने कहा, यह एक चमत्कार था, जो हम किसी तरह योगिता दीदी के संपर्क में आ गए। उन्होंने हमें दिलासा दिया और हमें अपने मूल स्थानों पर वापस भेजने का वादा किया। हम सभी बहुत लंबे समय के बाद काफी खुश हैं, क्योंकि ऐसा लगता है कि अब हम निश्चित रूप से अपने घरों में होंगे, हमारे प्रियजनों के बीच।
प्रवासी मजदूर ने कहा, लॉकडाउन के अलावा, कश्मीर में बहुत सारी दिक्कते हैं, चाहे वह कर्फ्यू हो या विरोध। न तो वहां कोई दुकान खुली थी और न ही राशन उपलब्ध था। जीवित रहना सबसे मुश्किल काम था। कोई नौकरी या पैसा नहीं होने के बावजूद, हम किसी तरह जीने के लिए इंतजाम कर रहे थे।
सरकार ने हालांकि महामारी के कारण हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए विभिन्न आर्थिक पैकेजों की घोषणा की हुई है, मगर जमीनी स्तर पर स्थिति गंभीर और डरावनी बनी हुई है और काफी लोग अभी भी बेरोजगार हैं और संघर्ष कर रहे हैं।
मोहम्मद मारबोब ने आईएएनएस से कहा, हमारे परिवारों ने हमें अधिकतम 500 रुपये से 1,000 रुपये तक की मदद की। लेकिन वे इस स्थिति में हमारी अधिक मदद करने के लिए समृद्ध नहीं हैं। हम रोजाना मजदूरी कर रोजाना खाने वाले लोग हैं। हम इतना नहीं कमाते हैं कि लंबे समय तक जीवित रह सकें।
जब फ्लाइट दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल (आईजीआई) एयरपोर्ट पर उतरी, तो सामाजिक कार्यकर्ता और उनकी टीम इन प्रवासियों का स्वागत करने के लिए मौजूद थी। उन्होंने मजदूरों को गमछा (तौलिया), सैनिटाइजर और मास्क प्रदान किए।
यहां से अब उन्हें उनके घरों में भेजा जाएगा।
भयाना ने आईएएनएस से कहा, लॉकडाउन के पहले दिन से ही जब हमें प्रवासी श्रमिकों के बारे में पता चला तो हम उन्हें वापस भेजने के काम में जुटे हुए हैं। हम बसों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इस बार हमने एयरलिफ्ट किया, क्योंकि वह श्रीनगर है और वहां बहुत आंतरिक जगहें हैं, जिससे वहां कोई बस और ट्रेन सुविधाएं काम नहीं करती।
भयाना ने बताया, दिल्ली से हमने बस की व्यवस्था की है, ताकि वे सीधे हवाई अड्डे से बिहार और उत्तर प्रदेश में अपने मूल स्थानों पर जा सकें।
-आईएएनएस