देश लॉकडाउन से बाहर आ रहा है, लेकिन हाउसिंग सोसाइटी के दरवाज़े घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन धोने वाली मेड के लिए अब भी बंद ही हैं. इससे दूसरों के घरों में काम करने वाली हज़ारों महिलाओं के सामने रोज़ी-रोटी का संकट बढ़ता जा रहा है.
कई हाउसिंग सोसाइटी ने शर्त रखी है कि वो काम पर लौटना चाहती हैं तो कोविड-19 निगेटिव सर्टिफिकेट दिखाएं. घरेलू कामगारों की कई यूनियन अब मेड रखने वाले लोगों से भी ऐसी ही मांग कर रही हैं.
कामगार संगठन इस तरह की सोच को ग़लत मानते हैं कि सिर्फ़ ग़रीब ही कोरोना वायरस फैला सकते हैं.
राष्ट्रीय घरेलू कामगार संगठन की राष्ट्रीय संयोजक क्रिस्ट्री मेरी बताती हैं कि कुछ सोसाइटी में टेस्ट रिपोर्ट लाने के लिए बोला जा रहा है. उसके बाद भी तभी काम की अनुमति देंगे जब मेड उनके साथ उनके घर में ही रहे. आने-जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं.
"24 घंटे किसी के घर में रहना मुश्किल है, क्योंकि उनके भी परिवार हैं. एक से ज़्यादा घरों में काम करने वाली मेड को भी मना कर रहे हैं. 60 साल से ज़्यादा उम्र के घरेलू कामगारों को तो बिल्कुल इजाज़त नहीं दे रहे हैं."
संगठनों का कहना है कि कोरोना कैरियर तो कोई भी हो सकता है. मेड थर्मल स्क्रीनिंग, लगातार हाथ धोने, दूरी बनाए रखने जैसे सुरक्षा उपायों के लिए तैयार हैं. लेकिन ज़िम्मेदारी तो दोनों पक्षों की होनी चाहिए, सिर्फ़ मेड की नहीं.
घरेलू मेड की असमंजस
40 वर्षीय आनंदी मुंबई के अंधेरी स्थिति एक सोसाइटी में काम करती थीं. आठ जून को जब अनलॉक हुआ तो उन्हें उम्मीद जगी कि शायद उन्हें भी काम पर बुला लिया जाएगा.
बात करने के लिए गईं तो वॉचमैन ने बाहर ही रोक दिया. आनंदी ने सोसाइटी के सेकेट्री से फोन पर बात की. सेकेट्री ने साफ़ कहा कि "अगर तुम्हारी वजह से मैडम लोग को कोरोना हो गया तो हम इसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे." उनके कहने का मतलब साफ़ था, कि कुछ हुआ तो इसकी ज़िम्मेदारी आनंदी के सर आएगी.
आनंदी जिस घर में काम करती हैं, वो भी चाहते हैं कि वो काम पर लौट आएं. लेकिन आनंदी से कहा गया है कि उन्हें अपनी फोटो और आईडी सोसाइटी वालों के पास जमा करानी होगी. अब आनंदी असमंजस में हैं कि वो क्या करें.
आनंदी घर में अकेली कमाने वाली हैं. बताती हैं कि दो बच्चे हैं, पति कुछ देता नहीं. 65 साल से ज़्यादा सास हैं, वो काम करती थीं. लेकिन अब उम्र की वजह से उन्हें बुलाया नहीं जा रहा.
क्या कहते हैं हाउसिंग सोसाइटी वाले
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ भारत के घरों में काम करने वाले हेल्परों की संख्या 40 लाख से ज़्यादा है. अनाधिकारिक तौर पर ये संख्या पांच करोड़ के आसपास बताई जाती है. घरों में काम करने वाले लोगों में दो तिहाई महिलाएं हैं.
घरेलू मेड और इन लोगों को काम देने वाले परिवार एक दूसरे पर निर्भर हैं. आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर लोगों के लिए ये आजीविका का एक ज़रिया है जबकि मध्यम वर्ग थोड़े पैसे ख़र्च करके आराम और सुविधा के साथ घर परिवार चलाता है.
कुछ लोग चाहते भी हैं कि उनकी मेड अब काम पर लौटें. पूर्वी दिल्ली के नवनीति अपार्टमेंट में रहने वाले अनूप ने अपनी मेड अर्शी को कुछ दिन पहले काम पर बुला भी लिया था. इसके लिए सोसाइटी प्रबंधन ने अनूप से लिखित में मांगा था कि अर्शी मास्क लगाकर आएगी, कहीं बैठेगी नहीं, वगैहरा-वगैहरा. लेकिन आठ दिन बाद ही प्रस्ताव पास कर फिर से सोसाइटी में मेड के आने पर रोक लगा दी गई.
बीबीसी ने नवनीति अपार्टमेंट के मैनेजर विष्णु शर्मा से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि सोसाइटी में एक सर्वे कराया गया था, जिसमें 80 प्रतिशत लोगों ने कहा घरेलू हेल्पर पर फ़िलहाल रोक रहे. वहीं सिर्फ 10% लोगों ने ही उनके आने का समर्थन किया.
विष्णु शर्मा ने कहा कि ज़्यादातर घरेलू हेल्पर सोसाइटी के सामने वाले इलाक़े - मंडावली और अल्ला कॉलोनी से आते हैं. "वहां कोरोना के बहुत ज़्यादा मामले आए हैं. इसलिए हमने रोक लगा रखी है. हालात सुधरेंगे तो फिर बुला लेंगे." वो बताते हैं हालांकि जो घरेलू हेल्पर 24 घंटे घरों में ही रहते हैं, उनपर मनाही नहीं है.
"मेड से कोरोना फैला तो करेंगे एफ़आईआर"
दिल्ली के न्यू राजिंदर नगर के ए, बी, सी, डी ब्लॉक आरडब्ल्यूए के उपाध्यक्ष अशोक मलहोत्रा सीधे आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि "दिल्ली में जो कोरोना फैल रहा है, वो सब इन्हीं से फैल रहा है. मुंबई में भी झोपड़-पट्टी वालों में फैला है, पॉश इलाक़ों में कहां फैला है."
वो कहते हैं, "ओल्ड राजिंदर नगर के 53 और 54 ब्लॉक में मेड से लगभग 60-70 लोगों को कोरोना हो गया. न्यू रजिंदर नगर में भी मेड से 15-20 केस हो गए हैं. अभी मेड, ड्राइवर बुलाना असुरक्षित है. इनकी एंट्री नहीं होनी चाहिए."
हालांकि मलहोत्रा कहते हैं कि उनकी सोसाइटी में मेड ना बुलाने को लेकर किसी पर दबाव नहीं है. "जो बुलाना चाहे बुला सकता है, लेकिन अगर मेड से सोसाइटी में कोरोना फैला तो एफ़आईआर कर दी जाएगी."
उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में ज़िला मेजिस्ट्रेट ने मई में ही मेड, ड्राइवर समेत घरेलू कामगारों को काम पर आने की अनुमति दे दी थी. प्रशासन ने कहा था कि अगर मेड चाहती है और उनसे काम कराने वाले परिवार भी चाहते हैं तो मेड काम के लिए आ सकती है और आरडब्ल्यूए सिर्फ़ उन्हें सलाह दे सकता है, रोक नहीं सकता.
इसके बावजूद ग़ाज़ियाबाद की अधिकांश रिहाइशी सोसायटी के आरडब्ल्यूए में मेड को आने नहीं दे रहे हैं.
तमाम आरडब्ल्यूए और हाउसिंग सोसाइटी प्रबंधन का कहना है कि मेड उनके यहां कोरोना ले आएंगी, "क्योंकि वो जिन बस्तियों से आती हैं, वहां कोरोना होने की आशंका ज़्यादा है. साफ़-सफ़ाई कम है और सोशल डिस्टेंसिंग नहीं है."
"हमें भी तो उनसे कोरोना हो सकता है - मेड"
मुंबई के चार बंगला इलाक़े से आने वाली नीता कहती हैं कि जिन घरों में वो काम करने जाती हैं, कोरोना तो उन लोगों से नीता को भी हो सकता है.
वो कहती हैं, बाहर तो वो लोग भी जाते हैं. हमें भी डर है कि हमें उनसे कोरोना हो जाएगा और ये भी सही है कि हमारी वजह से उनको भी हो सकता है. ये तो किसी को किसी से भी हो सकता है, फिर हमारे साथ ही भेदभाव क्यों?
नीता बताती हैं, "बहुत लोगों से मैं सुन रही हूं, वो काम करने आएंगे तो सबसे पहले बाथरूम जाएं. वहीं सबसे पहले नहाएं और अपने साफ़ कपड़े वहीं रखे. जिन्हें नहाकर बदलें. फिर गलव्स, मास्क लगाकर सेफ्टी से काम-काज शुरू करें."
वो कहती हैं कि कई घरों में हम सालों से काम कर रहे हैं. वो ये कहते हुए भावुक हो जाती हैं कि क्या उन्हें नहीं पता, हम साफ-सुथरे हैं, रोज़ नहाकर उनके घर जाते हैं और जाते ही सबसे पहले साबुन से हाथ धोते हैं.
घरेलू कामगारों के लिए काम करने वाले संगठन इस तरह की बातों को भेदभावपूर्ण मानते हैं.
राष्ट्रीय घरेलू कामगार संगठन की राष्ट्रीय संयोजक क्रिस्ट्री मेरी कहती हैं कि कई मेड को उन लोगों से भी कोरोना हुआ है, जहां वो काम करने जाती हैं. कई घरेलू कामगारों की ऐसे जान भी गई है. फिर भी वो काम पर जाने को तैयार हैं. वो हर तरह के सुरक्षा उपाय करने को तैयार हैं, फिर भी हाउसिंग सोसाइटी के दरवाज़ें उनके लिए खोले नहीं जा रहे.
क्रिस्टी मेरी बताती हैं कि शहरी इलाक़ों में 30 प्रतिशत यानी करीब़ 10 लाख घरेलू कामगारों के काम छिनने का ख़तरा है.
वो बताती हैं कि काम पर ना लौट पाने की वजह से घरेलू कामगार मुश्किल आर्थिक स्थितियों में हैं. उनके पास किराया देने के पैसे नहीं है, घर में राशन नहीं है, बच्चों की फीस भरने के लिए पैसे नहीं है.
पश्चिमी मुंबई के जोगेश्वरी इलाक़े में रहने वाली अमीना कहती हैं कि वो तीन घरों में काम करती थीं. उनका काम रुक गया. दो महीने से पगार नहीं मिली. सिर्फ़ एक घर से पगार मिली. उसी से जैसे-तैसे घर चला रही हैं. घर में तीन बच्चे हैं और पति का तीन साल पहले इंतकाल हो गया था.
वो बताती हैं कि उनके साथ की कई महिलाओं को तो कहीं से भी पगार नहीं मिली. उनकी एक सहेली अंधेरी की ही एक सोसाइटी में काम करती थी. काम बंद हुआ. पगार रुकी. बस्ती में बंटने वाला राशन भी नहीं मिला. जिसके बाद उनकी सहेली ने अपने बच्चों के साथ फांसी लगा ली.
हालांकि कई मेड को उम्मीद है कि उन्हें जल्दी ही काम पर बुलाया जाएगा. ग़ाज़ियाबाद की एक सोसायटी में काम करने वाली कमलेश कहती हैं कि 10-15 दिन और देखेंगे, "नहीं तो अपने घर गांव वापस लौटने का सोचेंगे. कबतक ऐसे चलता रहेगा."
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source: bbc.com/hindi