बच्चों में अक्सर अपनी बातें छिपाना, झूठ बोलना, आज का काम कल पर टालना, बहाने बनाना जैसी आदतें देखने को मिलती हैं। ज्यादातर बच्चे घर और स्कूल में अपने माता-पिता और टीचर्स से झूठ बोलते हैं। कई बार क्लास बंक करना, बीमारी का बहाना बनाकर असाइनमेंट पूरा न करना और स्कूल न जाने जैसी आदतों से पेरेंट्स परेशान रहते हैं। माता-पिता झूठ बोलने या बहाना बनाने पर बच्चों को डांटते-पीटते हैं मगर वो ये कारण नहीं जानना चाहते कि बच्चे को उनसे क्यों झूठ बोलना पड़ा। ऐसे में बच्चे धीरे-धीरे बिगड़ जाते हैं। बच्चों की बहानेबाज़ी और झूठ बोलने की आदत को इस प्रकार ठीक करें।
इस लिए झूठ बोलते हैं बच्चे
कई अभिभावक अपने बच्चों के साथ जरूरत से ज्यादा रोक-टोक करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो उनके बच्चे हाथ से निकल जाएंगे और गलत संगत में पड़ जाएंगे जबकि ऐसा नहीं है। अभिभावकों का बच्चों के साथ बात-बात पर रोक-टोक करना उन्हें झूठ बोलने के लिए मजबूर करता है।
बच्चे भी प्राईवेसी चाहते हैं। अगर वो गलत नहीं है तब उन्हें अपनी बात किसी के साथ शेयर करना या सफाई देना अच्छा नहीं लगता है लेकिन कई पेरेंट्स इस बात को समझने के बजाय अपने बच्चों की छोटी-छोटी बातों पर शक करते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें ताने मारते हैं।
बचपन से ही डांट-डपट कर रखने और हर बात पर टोकने से बच्चों के अवचेतन में मां-बाप के प्रति गुस्सा और घृणा भर जाती है। ऐसे बच्चे ज्यादातर समय मां-बाप से दूर रहना चाहते हैं और उन्हें कुछ भी बताने से घबराते हैं। वहीं दोस्तों के साथ उन्हें अपनी कोई भी बात शेयर करने में कोई परेशानी नहीं होती है क्योंकि दोस्तों के बीच उन्हें अपनापन महसूस होता है। इसलिए बच्चों को बचपन से प्यार दें और कुछ गलत करने या झूठ बोलने पर उन्हें प्यार से समझाएं। इस तरह बच्चे आपसे जुड़ाव महसूस करेंगे और अपनी बातें आपसे बताने में झिझक नहीं महसूस करेंगे।
जब अभिभावक बच्चों के साथ ज्य़ादा सख्ती बरतते हैं तो डांट या सज़ा से बचने के लिए वे ऐसे तरीके अपनाते हैं। अगर अभिभावकों को भी झूठ बोलने या बहाने बनाने की आदत हो तो उन्हें देखकर बच्चे भी ऐसा ही व्यवहार करने लगते हैं।
कैसे करें बच्चों को नियंत्रित
सबसे पहले तो आप अपने व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश करें, तभी बच्चे आपकी बात मानेंगे। बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार अपनाएं, अगर उनसे कोई गलती हो भी जाए तो डांटने के बजाय प्यार से समझाएं, ओवर रियेक्ट ना करें।
जिस वक्त बच्चा अपनी गलती मानने को तैयार न हो, तब उसे समझाने की कोशिश न करें। थोड़ी देर बाद जब वह शांत हो जाए तो उसके सामने तार्किक ढंग से अपनी बात रखें। प्यार के साथ उसे अपनी गलतियां स्वीकारना, सुधारना और माफी मांगना सिखाएं। बच्चे को ज्यादा डांटे-फटकारें नहीं। बच्चों को कभी भी मारें नहीं और न ही उनके सामने गलत भाषा का प्रयोग करें।
जब घर में माता और पिता दोनों ही कामकाजी होते हैं तो वो अपने बच्चों के साथ वक्त नहीं बिता पाते हैं। ये सच है कि वो अपने बच्चों को मेड और सभी जरूरी चीजें उपलब्ध कराते हैं लेकिन माता पिता को ये समझना चाहिए कि बच्चों को आपकी जरूरत है। इसलिए अगर आप कामकाजी हैं तब भी अपने बच्चों के साथ दिन में कम से कम 1 घंटा ज़रूर बिताएं। इस एक घंटे में अपने बच्चे से पूछे कि उसने दिनभर क्या किया या वो क्या सोच रहा है। इससे बच्चे आपके करीब आयेंगे।