बक्सर : चुनावी माहौल हो या फिर संसद व विधानसभा सत्र, विपक्ष ने हमेशा प्याज की बढ़ती कीमत को जोरदार मुद्दा बनाया। यहां तक कि स्थानीय स्तर पर भी कई नेताओं ने चौक-चौराहों पर प्याज की माला पहन सरकार की लुटिया डूबोने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कई बार तो सत्ता के निर्धारण में भी प्याज ने बढ़-चढ़कर सहभागिता सुनिश्चित कराई है।
आज की स्थिति इसके विपरीत है। खरीदार के अभाव में किसानों द्वारा उत्पादित प्याज खेतों में बर्बाद हो रहा है। किसान खून के आंसू रो रहे हैं, लेकिन उनके दर्द पर मरहम लगाने के लिए कोई रहनुमा आगे आने को तैयार नहीं हैं। काजीपुर गांव निवासी शिवमंगल यादव, महेंद्र कुशवाहा, बंसीलाल कुशवाहा, मिथिलेश कुशवाहा, रजनीकांत कुशवाहा, रामाशंकर यादव, सुरेंद्र यादव सहित कई किसानों ने बताया कि इलाके में इस साल करीब पांच सौ बीघे में प्याज की खेती हुई थी। उम्मीद थी कि इस बार प्याज की हुई बंपर उत्पादन से अच्छी खासी आमदनी होगी। इसी बीच वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। खेतों में चारों तरफ प्याज के ढेर लगे हुए हैं। लॉकडाउन के चलते बाहर से खरीदार नहीं आ रहे है। स्थानीय स्तर पर जो आ भी रहे हैं वे औने-पौने दाम लगा रहे हैं। प्
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प्याज उत्पादन में प्रति एकड़ पचास हजार रुपये खर्च
प्याज उत्पादक किसानों का कहना है कि इसकी खेती पर करीब पचास हजार प्रति एकड़ खर्च आता है। इलाके के 80 फीसद किसानों के पास अपनी जमीन नहीं होने से वे रैयतदारों से मालगुजारी पर खेत लेकर खेती करते हैं। वहीं, उत्तम किस्म के बीज व डीजल के दाम भी हर साल नई उच्चाइयों को छुता जा रहा है। ऐसी स्थिति में उत्पादित प्याज मंडी तक नहीं पहुंच पाने से किसानों को भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है।
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प्याज उत्पादक किसानों के समक्ष विकट स्थिति उत्पन्न हो गई है, फिलहाल उन्हें सरकारी स्तर पर राहत देने का कोई प्रावधान नहीं है। इस दिशा में सरकार जो फैसला लेगी, उसके तहत किसानों को लाभ मुहैया कराया जाएगा।
अरविद कुमार, प्रखंड कृषि पदाधिकारी
Posted By: Jagran
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