एंटीबॉडी सुरक्षा की गारंटी नहीं, आइए जानिए क्यों

कोरोना वायरस के विरूद्ध विकसित प्रतिरोधक क्षमता महज छह महीने तक ही टिकती है. इसके बाद शरीर में एंटीबॉडी के स्तर में कमी आने से आदमी के दोबारा संक्रमित होने का खतरा रहता है. एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी का हालिया अध्ययन तो कुछ यही बयां करता है.

शोधकर्ताओं ने लगातार 35 साल तक दस पुरुषों में सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस की चार नस्लों का प्रभाव आंका. उन्होंने पाया कि सभी प्रतिभागियों में कोरोना वायरस की प्रत्येक नस्ल से लड़ने की ताकत बहुत कम अवधि के लिए पैदा हो रही थी. छह महीने बाद उनमें कोरोना को मात देने वाले एंटीबॉडी का स्तर तेजी से घटने लगता था. 12 महीने बीतते-बीतते वे दोबारा संक्रमण की चपेट में आ जाते थे.
एंटीबॉडी सुरक्षा की गारंटी नहीं -मुख्य शोधकर्ता लीया वैन डेर होएक के मुताबिक अध्ययन से साफ है कि एंटीबॉडी जाँच में किसी आदमी में कोरोना विरोधी एंटीबॉडी मिलने का यह मतलब नहीं है कि वह वायरस से सुरक्षित है. छह से 12 महीने के भीतर जब एंटीबॉडी का स्तर घटने लगेगा व वायरस दोबारा वार करेगा तो संभव है कि आदमी फिर संक्रमित हो जाए.
हर वर्ष लगवाना होगा टीका -होएक ने दावा किया कि पूरी आबादी में एक बार टीकाकरण करने के बाद कोरोना वायरस की विभिन्न नस्लों का प्रकोप कुछ सालों के लिए थम जाएगा, यह मान लेना बहुत बड़ी खुशफहमी पाल लेने जैसा होगा. अगर लोगों को वर्ष में एक बार टीका नहीं लगाया गया तो छह से 12 महीने के भीतर वे दोबारा वायरस के शिकार हो जाएंगे.
'इम्युनिटी पासपोर्ट' पर उठाए सवाल -रीडिंग यूनिवर्सिटी में विषाणु विज्ञानी इयान जोन्स ने कोरोना के विरूद्ध सालभर ही प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के दावे के बीच 'इम्युनिटी पासपोर्ट' जारी करने की ब्रिटिश सरकार की योजना पर सवाल उठाए हैं. 'इम्युनिटी पासपोर्ट' के तहत उन लोगों को कार्य पर लौटने, आबादी में घुलने-मिलने व यात्रा की छूट देने का विचार है, जिनमें कोरोना वायरस के विरूद्ध एंटीबॉडी पैदा हुए हों.

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