मुसलमानों के लिए ईद उल-फितर रमजान के पाक महीने के अंत का प्रतीक है। पूरी दुनिया में मुसलमानों द्वारा ईद का पर्व चाँद रात में नये चाँद के दिखने के बाद मनाया जाता है। ईद-उल-फितर का मतलब होता है कि हर आदमी एक दूसरे को बराबर समझे और इंसानियत का पैगाम फैलाए। लेकिन इस साल कोरोना महामारी के चलते सभी लोग अपने-अपने घरों में ही ईद का त्योहार मनाएंगे।
कब मनाया जाता है ईद का त्योहार
यह त्योहार रमजान महीने के अगले दिन (इस्लाम कैलेंडर के मुताबिक) नए साल का स्वागत कर मनाते है। रमजान में 30 रोजों के बाद चांद देखकर ईद मनाई जाती है।
त्योहार का इतिहास
ऐसा कहा जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र युद्ध में विजय प्राप्त की थी। उनके विजयी होने की खुशी में लोगों ने ईद का त्योहार मनाना शुरू किया। ऐसी मान्यता है कि 624 ईस्वी में पहली बार ईद उल फित्र मनायी गई थी।
ऐसे मनाया जाता है ये त्योहार
इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर ईद की नमाज़ पढ़ते हैं। इस दिन पढ़े जाने वाली पहली नमाज़ को सलात अल फज़्र कहते हैं। ईद-उल-फितर के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग घरों में मीठे पकवान, सेंवईं बनाते हैं। साथ ही आपस में गले मिलकर सभी शिकवे दूर करते हैं। इस्लाम धर्म का यह त्योहार भाईचारे का संदेश देता है। ईद से पहले रमज़ानों में हर मुस्लमान एक खास रकम देते हैं जिसे जकात कहते हैं जो गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है। नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है।
अल्लाह का शुक्रिया
ईद उल फितर के मौके पर लोग अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्हें महीने भर उपवास रखने की ताकत दी।
इस साल कोरोना वायरस के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए लोग आपस में ज़्यादा नहीं मिलेंगे और अपने-अपने घरों में ही ईद की खुशियां मनाएंगे।