बिहार: दुरुस्त स्वास्थ्य सेवाओं के सरकारी दावों के बीच समय पर एम्बुलेंस न मिलने से वृद्धा की मौत

घटना पूर्वी चंपारण ज़िले की है. ग्रामीणों का कहना है कि एक साठ वर्षीय महिला के अचानक बेहोश हो जाने पर पांच घंटों तक लगातार फोन करने और अधिकारियों का चक्कर लगाने के बावजूद जिला मुख्यालय से मात्र 2 किलोमीटर दूर उनके गांव में एम्बुलेंस नहीं पहुंची. कुछ घंटों बाद महिला ने दम तोड़ दिया.

बिहार में कोरोना संक्रमण के 1,600 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं और कम से कम 10 लोगों की जान इस वायरस से जा चुकी है. टेस्टिंग की गति कम होने के बावजूद भी सरकार का दावा है कि वह पूरी सतर्कता के साथ वायरस से निपट रही है.
लेकिन पूर्वी चंपारण जिले में आपात स्थिति में समय से उचित स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने के चलते हुई एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु सरकार के दुरुस्त स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के दावे पर सवाल खड़ा करती है. 19 मई को जिले के एक गांव में समय से एम्बुलेंस न मिलने की वजह से एक महिला की मौत हो गई.
मोतिहारी जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर अमर छतौनी पंचायत के वार्ड नं 5 में रहने वाली 60 वर्षीय सलमा ख़ातून मंगलवार 19 मई को अचानक बेहोश हो गई थीं. लगभग 5 घंटे तक वे इसी हाल में थीं. इस दौरान आसपास के लोग एम्बुलेंस के लिए लगातार कॉल करते रहे, लेकिन एम्बुलेंस नहीं पहुंची. इस बीच सरकारी स्कूल के बरामदे में उन्होंने दम तोड़ दिया.
सलमा ख़ातून की कोई संतान नहीं है और उनके पति हदिश मियां का भी 5-6 साल पहले देहांत हो गया था. कुछ दिनों पहले आई आंधी में उनकी झोपड़ी गिर गई थी, जिसकी मरम्मत कराने में वो कुछ दिनों से लगी हुई थीं.
सलमा ख़ातून के पड़ोसी और दूर के रिश्तेदार साहेब आलम बताते हैं, 'उन्हें कोई बीमारी नहीं थी, ठीक से चल फिर रही थीं. उस रोज सुबह में अचानक तबियत ठीक नहीं लगी और फिर वे बेहोश हो गईं. बंदी के कारण हमें कोई सवारी नहीं मिली कि मोतिहारी लेकर जाएं और एम्बुलेंस के लिए कॉल करने पर कोई जवाब नहीं मिला.'
इस वार्ड की आशा कार्यकर्ता मधु देवी बताती हैं कि सलमा ख़ातून उनके घर अक्सर आया करती थीं. वे कहती हैं, 'मंगलवार के दिन चाची (सलमा) हमारे घर आई थीं और चाय बनाने के लिए कहा, पर घर में गैस खत्म था. इसके बाद वो चली गईं. कुछ घंटे बाद देखा कि वो बगल के स्कूल के बरामदे में लेटी हुई हैं.'
मधु देवी बताती हैं, 'आधे घंटे के बाद आसपास के लोगों ने शोर मचाया कि चाची बीमार हो गई हैं. वहां जाकर देखे तो वो बेहोश थीं और हाथ-पांव सिकोड़े हुई थीं.'
वे आगे बताती हैं, 'गांव का कोई आदमी कोरोना के डर से उनके करीब नहीं जा रहा था, तो मैंने जाकर उनका शरीर सीधा किया. हम सब लोग डर गए थे. फिर मैंने जिला कंट्रोल रूम के नंबर पर फोन किया तो उधर से जवाब मिला कि यह एम्बुलेंस का नंबर नहीं है.'
उन्होंने बताया कि किसी डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने यह नंबर मिलाया था. मधु देवी ने आगे बताया कि एम्बुलेंस के 102 नंबर पर फोन करने पर अनेक तरह के सवाल पूछे जाते हैं, जिस वजह से उन्होंने उस पर फोन लगाना ही बंद कर दिया है.
हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि अगल-बगल के लोग कई घंटे तक लगातार 102 नंबर से लेकर सदर अस्पताल और कई लोगों को कॉल करते रहे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
सलमा ख़ातून के पड़ोसी दीपक पासवान बताते हैं, 'पहले 102 नंबर पर कॉल किया. 102 हेल्पलाइन वालों ने सदर अस्पताल का नंबर दिया. सदर अस्पताल में फोन करने पर जवाब मिला कि वहां आकर हमको मरना नहीं है.'
दीपक का कहना है कि उनके साथ-साथ कई अन्य लोग भी 102 नंबर पर फोन कर रहे थे पर कोई मदद नहीं मिली. इसी वॉर्ड में रहने वाली सामपती देवी कहती हैं, 'अभी सलमा की उम्र और हालत जान जाने जैसी नहीं थी. उस दिन एम्बुलेंस के लिए इतना फोन किया गया, अगर वो सही समय से आ जाती, तो उसकी जान नहीं जाती.'
अमर छतौनी की मुखिया उमा देवी के पति सुरेश साह भी बताते हैं कि घटना वाले दिन एम्बुलेंस के लिए उन्होंने कई लोगों के चक्कर लगाए.
वे बताते हैं, 'गांव के लोगों का फोन आने के तुरंत बाद मैं ब्लॉक ऑफिस में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. श्रवण कुमार पासवान के पास गया. वहां प्रभारी साहब मौजूद नहीं थे. कुछ देर जब वे आए तो बोले कि ब्लॉक का एम्बुलेंस दूसरे मरीज को लाने लखौरा गया है, जिला सदर अस्पताल में फोन कीजिए. सदर अस्पताल के मैनेजर को फोन किया तो जवाब मिला कि उनके पास एम्बुलेंस खाली नहीं है.'
सुरेश बताते हैं कि उनके बाद प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने भी सदर अस्पताल के प्रबंधक विजय झा को फोन किया, उनको भी यही कहा गया कि अपने स्तर पर व्यवस्था कर लीजिए, हमारे पास एम्बुलेंस खाली नहीं है.
एम्बुलेंस की अनुपलब्धता का जिम्मेदार कौन?
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी श्रवण कुमार पासवान कहते हैं, 'मुझे उस औरत के बीमार पड़ने की जानकारी दोपहर 3 बजे के करीब मिली. उस समय हमारे ब्लॉक का एम्बुलेंस दूसरी जगह पर गया था इसलिए हमने सदर अस्पताल से मदद मांगी, लेकिन वहां के मैनेजर झा जी ने सीधे-सीधे इनकार कर दिया. उनका कहना था कि सदर अस्पताल का सारा एम्बुलेंस मरीजों को लेकर पटना गया हुआ है.'
पासवान बताते हैं कि उनके प्रखंड का क्षेत्र काफी बड़ा है और इतनी बड़ी आबादी के बीच उन्हें मात्र 1 एम्बुलेंस मिली है. उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर कई बार मांग करने के बाद भी कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया. वे यह भी कहते हैं कि सदर अस्पताल में 8 एम्बुलेंस हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर वे कभी काम नहीं आते.
इस मामले के बारे में जब सदर अस्पताल, मोतिहारी के प्रबंधक विजय झा से पूछा गया तब उनका कहना था कि उनके पास मात्र 5 एम्बुलेंस है. उन्होंने कहा, '60-70 लाख की आबादी वाले जिले में सदर अस्पताल के एम्बुलेंस के भरोसे काम नहीं हो सकता. प्रखंड स्तर पर भी एम्बुलेंस होते हैं, उसका इस्तेमाल करना चाहिए था.'
हालांकि झा की बात पर क्षेत्र के डॉक्टर ही सवाल खड़े करते हैं. इस घटना के बारे में जब पूर्वी चंपारण जिले के सिविल सर्जन रिज़वान अहमद से बात की गई, तो उनका कहना था, 'हमारे जिले में एम्बुलेंस की कोई कमी नहीं है. हमारे पास तो इतना एम्बुलेंस है कि दो दिन पहले ही एम्बुलेंस भेजकर आगरा से मरीजों को बुलवाया है.'
उन्होंने आगे कहा, 'संवादहीनता (कम्युनिकेशन गैप) की वजह से उक्त जगह पर एम्बुलेंस नहीं पहुंच सका होगा, इसकी जांच करेंगे.' यह पूछे जाने पर कि क्या संवादहीनता के चलते एक महिला की जान चले जाना गंभीर बात नहीं है, तब फोन कट गया. इसके बाद कई बार फोन लगाने पर उन्होंने कॉल नहीं लिया.
इस मामले में जानकारी के लिए पूर्वी चंपारण जिले के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक को भी फोन किया गया था, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. उनका बयान मिलने पर उसे रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.
ग्रामीणों को है कोरोना संक्रमण का शक
राज्य में लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के मामलों को देखते हुए ग्रामीणों में यह डर भी है कि कहीं सलमा की मौत इसी संक्रमण के चलते तो नहीं हुई है.
मृतका की रिश्तेदार और पड़ोसी रूबी ख़ातून कहती हैं, 'वे गांव में घूमती रहती थीं और इधर बाहर से कई लोग आए हैं, ऐसे में हो सकता है कि किसी के संपर्क में आने से उन्हें कोरोना हो गया हो. गांव के और लोगों को भी शक है कि कहीं कोरोना की वजह से ही उनकी मौत हो गई हो.'
लोगों में इसे लेकर दहशत भी है. अमर छतौनी पंचायत के पूर्व मुखिया संतोष कुमार बताते हैं, 'उन्हें कोरोना था कि नहीं इसका पता तो तब चलता जब जांच होता, जब जांच ही नहीं हुआ तो क्या कहा जाए!'
एक अन्य ग्रामीण सचिन कुमार बताते हैं, 'सलमा ख़ातून की मौत की ख़बर मिलने के तुरंत बाद ही स्थानीय थाने के थानाध्यक्ष अपनी टीम के साथ आए और दफनाने की प्रक्रिया शुरू करने लगे. रात 9 बजे उन्हें दफ़ना दिया गया.'
गांव के कई लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन ने पोस्टमॉर्टम कराया होता तो मौत का कारण पता चलता, लेकिन जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करा दिया गया.
नई नहीं है ऐसी घटनाएं
बिहार में एम्बुलेंस न मिलने के कारण मौत की घटनाएं नई नहीं हैं. पिछले महीने पूर्वी चंपारण जिले में ही एम्बुलेंस न मिलने की वजह से कैंसर पीड़ित एक बच्चे की मौत हो गई थी.
अप्रैल महीने में ही जहानाबाद में सदर अस्पताल ने दो वर्षीय बच्चे को पटना पीएमसीएच रेफर किया, लेकिन एम्बुलेंस न मिलने की वजह से बच्चा पटना नहीं पहुंच सका और उसकी मौत हो गई. इस मामले में जिलाधिकारी ने हेल्थ मैनेजर को सस्पेंड करते हुए दो डॉक्टरों सहित चार नर्सों पर कार्रवाई करने की अनुशंसा की थी.
बिहार में हर साल हजारों लोग उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ देते हैं. साल 2019 में नीति आयोग द्वारा राज्यों का स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया गया था, इसमें बड़े राज्यों में बिहार सबसे निचले पायदान पर रहा था.
बीते सालों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में हो रहे सुधारों को लेकर कई दावे कर चुके हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में भी राज्य से बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की खबरें लगातार आ रही हैं.
ऐसे समय में जब कोई भी सामान्य-सा दिखने वाला लक्षण एक गंभीर और लाइलाज संक्रमण हो सकता है, किसी मरीज के लिए पांच घंटो में जिला मुख्यालय से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर एम्बुलेंस का न पहुंच सकना राज्य सरकार के समुचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के दावों पर सवाल खड़े करता है.
(अभिनव प्रकाश कारवां-ए-मोहब्बत की मीडिया टीम से जुड़े कार्यकर्ता हैं. नवनीत राज जामिया मिलिया इस्लामिया में पत्रकारिता के छात्र हैं.)

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