गन्ने के खेत में काम करने वाले चालीस साल के पिंटू पंवार मार्च में लॉकडाउन लागू होने के समय पुणे में अपने माता-पिता से मिलने गए हुए थे. लॉकडाउन लगातार बढ़ने पर वे वहां से पैदल अपने गांव की ओर निकल गए, सोमवार को रास्ते के एक गांव के पास उनका शव मिला है.
औरंगाबाद: महाराष्ट्र के पुणे जिले से पैदल चलकर परभणी स्थित अपने गांव जा रहे चालीस वर्षीय एक श्रमिक की भूख और प्यास से मौत हो गई. पुलिस ने बुधवार को यह जानकारी दी है.
अंभोरा पुलिस थाने के सहायक निरीक्षक ज्ञानेश्वर कुकलारे ने बताया कि सोमवार को बीड जिले के धनोरा गांव में अपने गांव से करीब 200 किलोमीटर दूर पिंटू पवार मृत पाए गए.
अधिकारी ने कहा, 'पोस्टमार्टम होने पर पता चला कि अत्यधिक चलने, भूख और शरीर में पानी की कमी होने के कारण 15 मई के आसपास उनकी मौत हो गई थी.'
मृतक परभणी जिले के धोप्टे पोंडुल गांव के रहने वाले थे और गन्ने के खेत में काम किया करते थे. जब लॉकडाउन लागू हुआ, तब वे पुणे में अपनी बहन के घर गए हुए थे, जहां उनके माता-पिता भी रहते हैं.
उनकी बहन कावेरी ने बताया कि जब लॉकडाउन बढ़ता गया, वे बेचैन हो गए और पैदल ही गांव जाने का फैसला किया.
वे पुणे से आठ मई को निकल पड़े. 14 मई को वे अहमदनगर पहुंचे. उनके पास मोबाइल फोन नहीं था इसलिए किसी अन्य व्यक्ति के फोन से उसी दिन उन्होंने अपने घर संपर्क किया था.
एक अधिकारी ने बताया कि वहां से वे 30-35 किलोमीटर चलकर धनोरा पहुंचे और टिन के एक शेड के नीचे आराम करने लगे. उनका शव यहीं मिला.
सोमवार को वहां से गुजरने वाले राहगीरों को बदबू आई, तो उन्होंने पुलिस को इसकी सूचना दी. अधिकारी ने कहा कि पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो वहां पवार को मृत पाया.
उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम के बाद मृतक के परिजनों से बातचीत कर धनोरा ग्राम पंचायत और पुलिस ने मृतक का अंतिम संस्कार कर दिया गया है.
पिंटू की पत्नी चंद्रकला बताती हैं, 'मेरा सात साल का बेटा हर किसी से यही पूछता रहता था कि मेरे पिता कब लौटकर आएंगे, वो रिश्तेदारों को फोन करके भी यही पूछता है… उसे अभी यह सच नहीं पता है.'
उन्होंने आगे बताया, 'हम चार-पांच महीनों से अपने घर से दूर हैं. हम अपने गांव लौटने ही वाले थे. मेरे पति ने मुझसे कहा था कि वे पुणे में अपने माता-पिता से मिलकर लौट आएंगे. यही हमारी आखिरी बातचीत थी.'
वे आगे कहती हैं कि उन्हें बस अपने बेटे के भविष्य की चिंता है. कावेरी के अनुसार उन्होंने और उनके माता-पिता ने पिंटू से पैदल न जाने को कहा था.
वे कहती हैं, 'जब लॉकडाउन जारी रहा तो वो बेचैन होने लगे, वे घर जाना चाहते थे, कहने लगे कि अपने बेटे को छह महीने से नहीं देखा है. मैंने उनसे कहा भी कि मैं उनका किराया दे दूंगी लेकिन वे परभणी के मजदूरों के समूह के साथ पैदल ही जाने पर अड़ गए. मैंने और मेरे माता-पिता ने उनके बहुत हाथ-पांव जोड़े लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.'
उन्होंने आगे बताया, 'उन्होंने एक दो बार किसी और के फोन से मुझे कॉल किया था, लेकिन उन्होंने कभी नहीं बताया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है. जब मैंने खाने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि रास्ते में खाने के पैकेट मिले थे. पर मुझे लगता है उन्हें जाने नहीं देना चाहिए था…'