आज की बढ़ती आबादी, बेरोजगारी, गरीबी, अमीरी की खाई के दौर में भूख से बेहाल व्यक्ति को रोटी चाहिए। इसके लिये वह अमीरों की सेवा टहल करता है, कभी-कभी उनकी गालियां और मार तक सहता है लेकिन चूंकि नौकर भी मानव है और उसमें भी वे सभी मानवीय कमजोरियां हैं जो उसके मालिक में हैं, इसका इल्म मालिक को होना चाहिए।
वह दबा रहता है अपनी मजबूरी के कारण वरना सत्ता की भूख उसे भी कम नहीं होती। मौका मिलते ही चौधरी बनने की कोशिश हर नौकर करता है। ईगो उसमें भी है जो कहीं न कहीं संतुष्टि की खोज में रहती है। फिर वह शिक्षित नहीं होता। अच्छे बुरे का उसका भी अपना नजरिया होता है लेकिन वह हमेशा सही ही हो, यह जरूरी नहीं।
ऐसा नहीं कि सभी नौकर बुरी आदतों वाले होते हैं। कई बहुत ईमानदार और उसूलवाले भी हो सकते हैं लेकिन हर हाल में उनसे उचित दूरी रखना ही मुनासिब है। इससे बाद की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।
मतलब यह नहीं कि उनके प्रति आप बिलकुल संवेदनहीन रहकर उनसे मशीनी मानव की तरह काम लें। बेशक उनका सुख दुख कभी-कभी सुनें और अगर सहायता करने की हैसियत रखती है तो जो मदद देना चाहें दें लेकिन न उन्हें मुंह लगायें, न सर चढ़ायें कि वे आपको आपकी व्यक्तिगत बातों के लिये राय मशवरा देने लगें या आपके साथ कोई बेजा हरकत करने की उनकी हिम्मत पड़ सके।
-उषा जैन शीरीं