बच्चों की परवरिश की बात हो तो मां की जिम्मेदारी सबसे महत्त्वपूर्ण होती है. लेकिन अगर परस्पर रूप से मां व पिता की भूमिकाओं की तुलना करें तो शोधकर्ताओं का बोलना है
कि माताओं की तुलना में पिता अधिक खुश रहते हैं. अब वैज्ञानिक इस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशशि कर रहे हैं कि ऐसा किन कारणों से संभव हो पाता है. शोध के तहत वैज्ञानिकों की टीम ने 18 हजार लोगों पर शोध किया व उन कारणों को पहचानने का कोशिश किया जो पुरुषों को बच्चों की परवरिश या पिता बनने के बाद खुशी देते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्नया-रिवर साइड के मनोवैज्ञानिकों ने 18 हजार से ज्यादा लोगों पर तीन तरह के अध्ययन किए. ये रिपोर्ट हाल ही पर्सनालिटी एंड सोशल साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुई है.
पिता करते बेहतर देखभाल- शोध में बताया गया है कि मां की तुलना में पिता बच्चे की देखभाल ज्यादा बेहतर तरीका से कर पाते हैं. रिपोर्ट के नतीजों के अनुसार पिता बच्चों के साथ अच्छा समय गुजारते हैं. वे उन्हें नियंत्रित करने की बजाय उनके साथ बच्चा बनकर ही खेलते हैं जिससे बच्चे के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. ये रिपोर्ट तीन तरह के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है जिसके लिए बड़े पैमाने पर आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. पहले दो अध्ययन में पाया गया कि माता-पिता आमतौर पर बच्चों के लिए क्या सोचते हैं. पिता मां की तुलना में बच्चों को लेकर अधिक गंभीर रहते हैं. भले ही वे किसी तनाव या कठिनाई से क्यों न गुजर रहे हों. तीसरी रिपोर्ट में ये जानने की प्रयास की गई कि माता-पिता बच्चों के लिए अपने स्तर पर सबकुछ बेहतर करते हैं व उनके मन में क्या चलता है, जब वे बच्चों से बात करते हैं तो उन्हें कैसा महसूस होता है.
इसलिए पुरुष रहते ज्यादा खुश- रिपोर्ट के अनुसार जो लोग अपने बच्चों से बात करते हैं, उनके साथ खेलते हैं व बराबर समय देते हैं वे लोग अधिक खुश रहते हैं. इस कसौटी पर मां से ज्यादा पिता खरे उतरे. शोध में जब ये पता चला कि पिता बच्चे की देखभाल को लेकर अधिक सक्रिय होते हैं. पिता दिनभर कुछ भी करें पर जो खुशी उन्हें बच्चे के साथ समय बिताने व उसकी देखभाल में मिलती है उसकी कोई तुलना नहीं है. जबकि मां बच्चों की देखभाल को लेकर उतनी खुश नहीं दिखीं जितना वे दूसरे तरह के कार्य को करने पर खुश होती हैं.
भारतीय पिता बच्चों को लेकर चिंतित- अमरीका के नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्रेक गारफील्ड ने हिंदुस्तान को लेकर किए एक शोध में पाया कि प्रसव के बाद जिन बच्चों को आइसीयू या एनआइसीयू में रखा जाता है तो सबसे अधिक तनाव में बच्चे का पिता होता है. इस दौरान पिता के शरीर में तनाव पैदा करने वाले हॉर्मोन का स्तर अधिक रहता है. जब तक बच्चा अस्पताल से डिस्चार्ज न हो जाए तब तक पिता की चिंता बनी रहती है. यह रिपोर्ट उन लोगों को लेकर तैयार की गई थी जिनके बच्चे एक से 14 दिन तक आइसीयू में रहे. मुंबई की एक संस्था ने 4800 पुरुषों पर शोध में पाया कि 70 प्रतिशत पिता बच्चों का पूरा खयाल रखते हैं जबकि 65 प्रतिशत पिता दो घंटे से अधिक समय बच्चों के साथ गुजारते हैं. अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन की डाक्टर स्वाति पोपट कहती हैं कि इससे बच्चों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है व बेहतर विकास होता है.
साथ खेलें, रिश्ता होगा मजबूत- सर्वे बताते हें कि खेल से भावनात्मक ऊर्जा मिलती है. इससे बच्चे के साथ जुड़ाव गहरा होता है व आदमी अच्छा महसूस करता है. ऐसे में जो मां बच्चों के साथ खेलती नहीं हैं वे एक बार ऐसा करके देखें. उन्हें अच्छा महसूस होगा व ज्यादा खुश भी रहेंगी. इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों के साथ खेलने को बोझ न समझें. थोड़ा वक्त निकालेंगे तो आपके साथ बच्चे की भी जिंदगी बदल जाएगी क्योंकि खुशी ही ज़िंदगी की सफलता व स्वास्थ्य का राज है. खेलने का मतलब सिर्फ गेम्स नहीं होता है. इसमें कविता पढऩा व गाना गाना या बच्चे के पैरों में गुदगुदी लगाना भी शामिल है. इससे बच्चे के साथ आपका रिश्ता ज्यादा बेहतर होगा.