मघेपुरा। कोरोना ने मक्का की उपज करने वाले किसानों पर भी कहर बरपाया है। स्थिति गंभीर है। लॉकडाउन के कारण फसल नहीं बिक पा रही है। आंधी-तूफान की वजह से पहले ही किसानों को काफी फसल बर्बाद हो गई थी। रही सही कसर कोरोना ने निकाल दिया। कोसी क्षेत्र में मक्के को पीला सोना कहा जाता है। लेकिन इस बार पीला सोना ने किसानों को धोखा दे दिया।
मालूम हो कि इस क्षेत्र के किसानों का मक्का समृद्धि का आधार है। बच्चों की पढ़ाई, बिटिया की शादी, साल भर का भोजन, इलाज सहित अन्य जरूरतों का पूरा मक्के की खेती कर ही किया करते हैं। दो दशक के दौरान यहां मक्के के बेहतर पैदावार होने के कारण किसानों के घर खुशहाली भी आई थी। खासकर बाढ़ प्रभावित जिले के आलमनगर, चौसा, पुरैनी, उदाकिशुनगंज मक्के की फसल ही यहां के किसानों का मुख्य आजीविका का आधार माना जाता है। लेकिन इस बार मक्का नहीं बिक पाने और उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण यहां के किसान निराश हैं। मक्के की फसल के नुकसान झेलने को विवश किसानों निराशा है। किसानों का कहना है कि एक बीघा में फसल तैयार करने के दौरान लगभग 20 हजार रुपये लागत आता है। वहीं इस क्षेत्र के अधिकांश किसान महाजन से पूंजी उधार लेकर खेती की थी। फसल तैयार होने के बाद उसे बेचकर महाजन को चुकता करता। लेकिन लॉकडाउन के कारण फसल बिक भी नहीं पा रहा है।
ऑनलाइन शिक्षा से भविष्य संवारने की तैयारी यह भी पढ़ें
बिक्री नहीं होने से किसान हैं परेशान आलमनगर विधानसभा क्षेत्र के आलमनगर, चौसा, पुरैनी, फुलौत, सोनामुखी बाजार, खुरहान बाजार मक्का व्यवसाय का मुख्य मंडी है। जहां से प्रत्येक वर्ष कारोबार होता है। लेकिन इस बार महामारी के कारण मक्का का खरीदार नहीं आ रहे हैं। मूल्य में गिरावट को देखते हुए आलमनगर में के व्यापारी अरुण कुमार भगत, दिनेश गुप्ता, महेश भगत, महेश गुप्ता, रमेश गुप्ता, जनार्दन भगत, अरुण जायसवाल, अशोक दास ने बताया कि अगर यही परिस्थिति बना रहा तो किसानों को काफी नुकसान होगा।
Posted By: Jagran
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस