कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें जीवन को खतरा पहुंचाने की ताकत है और ये बहुत खतरनाक है। कैंसर की बीमारी तब होती है जब शरीर के भीतर किसी भी अंग में असामान्य कोशिकाओं का विकास हो जाता है और अगर इन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो ये शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकती हैं। ब्रेस्ट कैंसर तब होता है जब कैंसर पैदा करने वाले सेल्स एक गांठ या फिर मेलिग्नेंट ट्यूमर ब्रेस्ट में पैदा कर देते हैं। ये कैंसर सेल्स का समूह इसके बाद लिंफ नोड्स में (आर्मपिट्स में) और अन्य ऑर्गेन्स में रक्त कोशिकाओं के जरिए पहुंच जाता है। सूत्रों के अनुसार ब्रेस्ट कैंसर दूसरा सबसे आम कारण है पूरी दुनिया में होने वाली महिलाओं की मृत्यु का और इसके लिए कोई एक फैक्टर जिम्मेदार नहीं हो सकता है। इसलिए ये जरूरी है कि इसकी रोकथाम की जाए और जहां इसे रोकना मुश्किल हो वहां भी इसे बहुत जल्दी डाइग्नोज करना जरूरी है। यहीं पर ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग की जरूरत महसूस होती है। ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग एक ऐसा एग्जामिनेशन है जिसमें ब्रेस्ट में बन रहे किसी भी कैंसर सेल्स का पता लगाया जाता है। ये किसी भी तरह के ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण के दिखने से पहले की जाती है। हालांकि, ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग से इसे रोका नहीं जा सकता है, लेकिन जितनी जल्दी इसका पता लग जाता है उतने ही ज्यादा ट्रीटमेंट के समय मरीज के ठीक होने की गुंजाइश भी होती है। प्रारंभिक जांच से ये भी मुमकिन है कि सर्जरी के दौरान सिर्फ गांठ को हटाया जाए और पूरा ब्रेस्ट हटाने की जरूरत न पड़े। साथ ही साथ ऐसा भी हो सकता है कि ट्रीटमेंट के दौरान कीमोथेरिपी की जरूरत न पड़े (क्योंकि कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स बहुत ज्यादा होते हैं।)।ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीन उन सभी महिलाओं के लिए रिकमेंड की जाती है जो 40 साल या उससे ज्यादा उम्र की हैं। इससे कम उम्र की महिलाएं जिनकी फैमिली हिस्ट्री या पर्सनल हिस्ट्री हो ब्रेस्ट या ओवेरियन कैंसर की उन्हें भी डॉक्टर की सलाह के अनुसार ब्रेस्ट स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। स्तन कैंसर स्क्रीनिंग के लिए कई तरह की तकनीक इस्तेमाल की जाती हैं और विभिन्न प्रकार के परीक्षण होते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. मैमोग्राम (Mammogram)
मैमोग्राम में स्तनों का एक्सरे लिया जाता है। डॉक्टर इस टेस्ट के जरिए ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कहीं स्तन में किसी तरह के कैंसर का विकास तो नहीं हो रहा है। 40-55 की उम्र के बीच हर साल मेमोग्राम टेस्ट करवाना और 55-75 की उम्र में हर 1.5 साल में मेमोग्राम टेस्ट करवाना ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए सबसे अच्छा तरीका है।
2. 3डी टोमोसिंथेसिस (3D Tomosynthesis)
ये डिजिटल टोमोसिंथेसिस (मैमोग्राफी) है जो स्तन के ऊतकों (ब्रेस्ट टिशू) की 3डी तस्वीर तैयार करती है। जब ब्रेस्ट कैंसर के कोई भी लक्षण नहीं दिखते तब भी डॉक्टर इस तकनीक का इस्तेमाल करके कैंसर का पता लगा सकते हैं। ये तरीका उस समय कारगर साबित होता है जब किसी महिला के ब्रेस्ट टिशू बहुत घने होते हैं और इन्हें आम मेमोग्राम से टेस्ट नहीं किया जा सकता है। ये तकनीक उस खतरे को खत्म कर देती है यदि टेक्निकल खराबी की वजह से किसी ग्रंथी का टिशू में छोटा सा ही सही कैंसर सेल हो और वो दिखा न हो। ये सबसे अच्छी और सबसे ज्यादा संवेदनशील तकनीक है जो मौजूदा समय में उपलब्ध है।
3. ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड (Breast ultrasound)
ये तकनीक आपको आपके ब्रेस्ट की तस्वीर साउंड फ्रीक्वेंसी (ध्वनि आवृत्तियों) के जरिए देती है। इस तरह का परीक्षण एक पूरक परीक्षण के तौर पर किया जाता है जो मेमोग्राम के साथ कैंसर का पता लगाने के लिए किया जाता है।
4. ब्रेस्ट एमआरआई (Breast MRI)
एमआरआई मतलब मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग जो बहुत ही ताकतवर मैग्नेटिक वेव्स (चुंबकीय तरंगों) का इस्तेमाल कर ब्रेस्ट की तस्वीर डिटेल में देती है। इसकी सलाह तब दी जाती है जब किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क काफी ज्यादा होता है (वंशानुगत स्तन कैंसर जैसे BRCA1 म्यूटेशन कैरियर्स) या फिर ऐसी महिलाएं जिन्होंने सिलिकॉन इम्प्लांट करवा रखे हैं जिनके लिए मेमोग्राम आसानी से संभव नहीं है। ये महिला के स्तनों का विस्तृत चित्र देता है जिसे कम्प्यूटर स्क्रीन पर चेक किया जाता है।
5. ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन (Breast Self Examination)
इस तकनीक में महिलाएं खुद अपने स्तनों की जांच करना सीख सकती हैं। इंटरनेट पर इसके लिए कई वीडियो उपलब्ध हैं। हालांकि, यद्यपि इस तकनीक के पक्ष में चिकित्सा साक्ष्य स्थापित होना बाकी है, लेकिन इसे बहुत ही उपयोगी तरीका माना जाता है जो समाज में ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े खतरे और लक्षणों के बारे में लोगों को जागरुक करवाता है। 20 साल की उम्र के बाद सभी महिलाओं को महीने में एक बार ब्रेस्ट कैंसर सेल्फ-एग्जामिनेशन (पीरियड शुरू होने के दूसरे दिन) करने की सलाह दी जाती है।
6. क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन (Clinical Breast Examination)
इस तकनीक में किसी स्पेशलिस्ट ब्रेस्ट सर्जन, जनरल सर्जन, गाइनेकोलॉडिस्ट, फेमिली फिजीशियन द्वारा खुद की जांच करवाना होता है। ताकि वो किसी भी असमानता को देख सकें। 40 साल से कम उम्र की महिलाओं को ये हर तीन साल में करवाना चाहिए और 40 के बाद हर साल।
सार-
तकनीक ने कैंसर का पता लगाना आसान बना दिया है और अब ये ज्यादा तेज़ी से हो सकता है। महिलाएं कई ट्रीटमेंट्स में से अपने लिए उपयुक्त तरीका खोज सकती हैं । ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं में बहुत आम है। तो ये जरूरी है कि इसका पता सही समय पर लगाया जाए और इसे सही तरीके से ठीक करने की कोशिश की जाए। डॉक्टर मंदार नाडकर्णी (कोकीलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के ऑन्कोप्लास्टिक ब्रेस्ट सर्जन (MS, DNB,) को उनकी एक्सपर्ट सलाह के लिए धन्यवाद।