आज दुनियाभर में मदर्स डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। मां सिर्फ एक शब्द नहीं है बल्कि ममता भरा वो आंचल है, जिसमें हर कोई अपने दुख-दर्द भूल जा जाता है। मां की भूमिका हमेशा अपने बच्चों के लिए ममता भरी होती है। मगर, एक मां ऐसी भी है, जिन्हें सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े-बूढ़े भी मम्मी कहकर बुलाते हैं। हम बात कर रहे हैं रेडक्रॉस वृद्धाश्रम की अधीक्षक प्रमीला शर्मा।
12 सालों से दे रही हैं सेवाएं
रेडक्रॉस वृद्धाश्रम दिव्यांग बच्चों व बेसहारा बुजुर्गों को अपने आश्रम में पनाह देता है। प्रमीला पिछले 12 सालों से यहां रहने वाले बच्चों व बुजर्गों की एक मां की तरह देखभाल करती हैं। इसलिए आश्रम में रहने वाले मानसिक दिव्यांग बच्चों के साथ यहां रहने वाले बुजुर्ग भी उन्हें प्यार से मम्मी ही बुलाते हैं।
बड़े-बुजुर्ग भी इन्हें बुलाते हैं मम्मी
प्रमीला ने बताया कि वह 2006 में आश्रम से जुड़ी थीं। उनके माता-पिता भी यहीं उनके साथ रहते थे और उनके गुजर जाने के बाद आश्रम के सदस्य उनका परिवार बन गए। यहां 10 बुजुर्ग महिलाएं और 16 पुरुषों के साथ 4 मानसिक दिव्यांग बच्चे हैं। इसके अलावा यहां उषा किरण योजना के तहत 6 नाबालिग लड़कियां रह रही हैं। हर कोई उन्हें मम्मी कहकर ही पुकारता है।
खान-पान से लेकर हर छोटी बात का रखती हैं ध्यान
प्रमीला आश्रम में रहने वाले सभी सदस्यों के खान-पान से लेकर दवा और सभी जरूरी चीजों का एक मां की तरह ध्यान रखती है। बुजुर्गों व बच्चों का यहां ऐसा महसूस ही नहीं होता कि वो किसी आश्रम में रह रहे हैं।
ऐसे आया जीवन में बदलाव
प्रमीला के पति देवेंद्र शर्मा विद्युत वितरण कंपनी बड़वाह में तैनात थे लेकिन 18 साल पहले वह अचानक कहीं चले गए। काफी समय तक जब उनकी कोई खबर नहीं मिली तो वह अपनी बेटी विजीया को लेकर माता-पिता के पास धार आ गईं। 2006 में वे रेडक्रॉस वृद्धाश्रम की अधीक्षक बनी तो फिर यहीं की होकर रह गई। उन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चों व बुजुर्गों में लगाने का निर्णय कर लिया।