नयी दिल्ली - आम तौर पर अर्कटिक क्षेत्र के समुद्र तटों पर रहने और प्रवास के लिए विभिन्न समुद्री तटों पर जाने वाले 'ग्रे प्लॉवर' पहली बार इस साल गंगा के पानी पर अठखेलियाँ करते हुये देखे गये।
करीब 11-12 इंच लंबा और 200-250 ग्राम वजन वाला यह पक्षी आर्कटिक द्वीप और अलास्का, कनाडा तथा रूस के तटीय क्षेत्रों में रहता है। जब इन इलाकों में ठंड काफी बढ़ जाती है तो यह दुनिया के कई अपेक्षाकृत गर्म देशों के समुद्र तटों पर प्रवास के लिए आते हैं।
कर्नाटक और तमिलनाडु के तटों पर काफिले में इन पक्षियों का आना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन भीतरी मैदानी क्षेत्र में तट से दूर इन्हें पहली बार ठहराव करते हुये देखा गया है। बिहार के भागलपुर जिले में गंगा नदी में बने विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य में इन्हें इस साल मार्च में देखा गया था।
भागलपुर के जिला वन अधिकारी एस. सुधाकर ने 'यूनीवार्ता' को बताया कि आम तौर पर ग्रे प्लॉवर दक्षिणी राज्यों में आते हैं। भारत में ये रूस से आते हैं। ये तटीय इलाकों में कुछ दिन प्रवास करते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं। यह पहली बार है जब देश के भीतरी इलाकों में इन्हें देखा गया है। विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य में 06 मार्च को इन्हें देखा गया। संभवत: ये अपने प्रवास स्थान की ओर जाते समय रास्ते में यहाँ रुके थे।
दुनिया में 11 हजार से अधिक पक्षियों की अब तक पहचान की गयी है जिनमें ग्रे प्लॉवर की तरह ही करीब 1,800 पक्षी कुछ समय के लिए प्रवास पर अपने मूल स्थान से दूर जाते हैं यानी प्रवासी पक्षी है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अधीनस्थ प्रवासी जीवों से संबंधित कन्वेंशन (सीएमएस) का कहना है कि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप के कारण इन जीवों का अस्तित्व खतरे में है। इनके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल मई और अक्टूबर के दूसरे शनिवार को प्रवासी पक्षी दिवस मनाया जाता है।
सीएमएस की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल ने प्रवासी पक्षी दिवस के मौके पर कहा "प्रवासी पक्षियों का आवास समाप्त होने, जलवायु परिवर्तन, बिजली की तारों और अवैध शिकार से प्रवासी पक्षियों को खतरा है। हमें उनके और उनके प्राकृतिक आवास के संरक्षण के लिए अपने प्रयास तेज करने की जरूरत है।"
अफ्रीका-यूरेशिया प्रवासी जलपक्षी समझौता (एईडब्ल्यूए) के कार्यकारी सचिव जैकस ट्रॉविलिज ने कहा कि कोविड-19 ने हमें पक्षियों और प्रकृति के संगीत से दुबारा रूबरू कराया है और हमें आगे ऐसी दुनिया बनानी चाहिये जिसमें हमारा सहअस्तित्व हो। उन्होंने कहा "मानवजाति के समक्ष मौजूद चुनौतियों के बावजूद यह मौसम खामोशी भरा नहीं है। दुनिया के कई शहरों में कारों की आवाज से अधिक पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही है। कई पक्षी जलक्षेत्रों, जंगलों और यहाँ तक कि हमारे बगीचों में भी दुबारा दिखाई दे रहे हैं। यह दिखाता है कि प्रकृति का चक्र नियमित रूप से जारी है। अंतर यह कि अब हम उसे सुन रहे हैं। हम इस संगीत का आनंद लेने के साथ ही यह भी याद रखें कि आने वाले समय में हमें स्वस्थ और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार दुनिया का निर्माण करना है।"