हिंदी सिनेमा में दक्षिण के फिल्म निर्देशकों ने अपना झंडा शुरू से गाड़े रखा है। वह मद्रास और हैदराबाद से बंबई आते। सितारे उठाते। अपने शहरों के स्टूडियों में स्टार्ट टू फिनिश शूटिंग करते और सितारों को फिर बंबई छोड़ जाते। हिंदी सिनेमा के तकरीबन हर सुपरस्टार ने दक्षिण भारतीय फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों के साथ काम करके शोहरत और दौलत दोनों बटोरी है। ऐसे ही एक निर्देशक हुए हैं, ए भीम सिंह। ऐसा निर्देशक भारतीय सिनेमा में दूसरा मिलना मुश्किल है। थोड़ा लेट स्टार्ट हुए अपने करियर में लेकिन 30 साल में अपनी पहली फिल्म निर्देशित करने वाले भीम सिंह ने अगले 24 साल में 76 फिल्में बना डाली, 34 तमिल, 18 हिंदी, आठ तेलुगू, पांच मलयालम और एक कन्नड़ फिल्म। इन्हीं भीमसिंह की निर्देशित फिल्म नया दिन नई रात हमारी आज के बाइस्कोप की फिल्म है। लॉकडाउन में ये फिल्म आप कई वजहों से देख सकते हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा आकर्षण है, फिल्म में संजीव कुमार के किए नौ रोल।var embedId = {jw:[],yt:[],dm:[]};function pauseVideos(vid){var players=Object.keys(embedId); players.forEach(function (key){var ids=embedId[key]; switch (key){case "jw": ids.forEach(function (id){if (id !=vid){var player = jwplayer(id); if(player.getState() === "playing"){player.pause();}}}); break; case "yt": ids.forEach(function (id){if (id !=vid){id.pauseVideo();}}); break;case "dm": ids.forEach(function (id){if (id !=vid && !id.paused){id.pause();}}); break;}});}var YTevent;function autoPlayYtVideo(player) {if(typeof NHCommand != "undefined" && NHCommand.isAutoPlayAllowed && NHCommand.isAutoPlayAllowed()){player.playVideo();ytVideoAutoPlayed = true;}}var ytOnLoadFn=[];function onYouTubePlayerAPIReady(){ytOnLoadFn.forEach(function(name){window[name]();});}function onYTEmbedLoad(ytp){embedId.yt.push(ytp);ytp.addEventListener("onStateChange", function(event){if(event.data === YT.PlayerState.PLAYING)pauseVideos(ytp);});}function pause(){pauseVideos()}var p; function ytWGVWuj_55KU(){p = new YT.Player("div_WGVWuj-55KU", {height: document.getElementById("div_WGVWuj-55KU").offsetWidth * (9/16),width: document.getElementById("div_WGVWuj-55KU").offsetWidth,videoId: "WGVWuj-55KU",playerVars:{'autoplay':1,'loop':1,'mute':1}});onYTEmbedLoad(p)}ytOnLoadFn.push("ytWGVWuj_55KU");if(!window.ytVideoAutoPlayed)setTimeout(function () {autoPlayYtVideo(p);}, 2000);if(NHCommand && NHCommand.getMainVideoId){document.getElementById(NHCommand.getMainVideoId()).style.display="none";}
हिंदी सिनेमा के लिए साल 1974 बदलते वक्त का साल कहा जा सकता है। अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर पिछले साल ही हिट हो चुकी थी। लेकिन 1973 में ऋषि कपूर की फिल्म बॉबी ने कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। कमाई के मामले में दूसरे नंबर पर थी धर्मेंद्र की फिल्म जुगनू और तीसरे नंबर पर रही थी राजेश खन्ना की फिल्म दाग। अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर का नंबर इनके बाद आता है। लगातार सुपरहिट फिल्में देते रहे दिलीप कुमार की फिल्मों में अब ब्रेक आने लगा था और साल 1973 में भी उनकी कोई भी फिल्म रिलीज नहीं हुई। ए भीम सिंह को लगा कि ये अच्छा मौका है दिलीप कुमार के साथ एक प्रयोगात्मक फिल्म करने का। भीम सिंह इससे पहले दिलीप कुमार के साथ आदमी और गोपी नामक दो सुपरहिट फिल्में बना चुके थे। उनकी महमूद और ओम प्रकाश स्टारर साधू और शैतान में भी दिलीप कुमार ने एक खास भूमिका निभाई थी।
साल 1970 में दिलीप कुमार के साथ सुपरहिट फिल्म गोपी बनाने के बाद ए भीमसिंह ने अगले तीन साल में विनोद खन्ना और संजय खान के साथ सब का साथी, राजेश खन्ना के साथ मालिक और जोरू का गुलाम तथा धर्मेंद्र के साथ लोफर जैसी चर्चित फिल्में बनाईं। लेकिन, इन सबके बावजूद दिलीप कुमार ने फिल्म नया दिन नई रात में काम करने से मना कर दिया। दिलीप कुमार जान चुके थे कि बतौर हीरो उनका समय गुजर रहा है और अगर उन्होंने ये फिल्म की तो उनके खाते में एक और फ्लॉप फिल्म जुड़ जाएगी। दिलीप कुमार ने अगले तीन सालों में सिर्फ तीन फिल्में कीं। जमाना तब ऋषि कपूर की लैला मजनू पर फिदा था और दिलीप कुमार के तिहरे रोल वाली फिल्म बैराग तक फ्लॉप हुई। इसी के बाद दिलीप कुमार ने बतौर हीरो अपनी दुकान को ताला लगाया और पांच साल के ब्रेक के बाद सीधे प्रकट हुए मनोज कुमार की फिल्म क्रांति में, एक चरित्र अभिनेता के तौर पर। लेकिन, ए भीमसिंह को फिल्म नया दिन नई रात के लिए मना करते वक्त उन्होंने ये भी कहा कि मौजूदा दौर में अगर कोई ये फिल्म ढंग से कर सकता है तो वह हैं, संजीव कुमार।
हरिभाई जरीवाला उर्फ संजीव कुमार ने इस फिल्म में जो कमाल किया है, उसे जानने के लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी। हिंदी व्याकरण में जो नौ रस, श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत पढ़ाए जाते हैं, उन सबको संजीव कुमार ने नौ अलग अलग किरदारों में जीकर इस फिल्म में दिखाया। फिल्म में उनकी सहचरी थीं, जया भादुड़ी। संजीव कुमार इससे पहले कोशिश और अनामिका जैसी हिंदी सिनेमा की महत्वपूर्ण फिल्मों में जया के साथ काम कर चुके थे और गुलजार के निर्देशन में बनी जया की फिल्म परिचय में भी नजर आ चुके थे। ए भीमसिंह ने जया भादुड़ी को बताया कि फिल्म में मुख्य किरदार संजीव कुमार का है और हर किरदार की कहानी उनके होने से अपना रस प्रकट कर पाती है, वह तुरंत फिल्म करने को तैयार हो गईं।
फिल्म में जया भादुड़ी के किरदार का नाम है सुषमा। और उनके पिता के रोल में हैं ओम प्रकाश। पिता उसकी शादी करना चाहता है और बेटी घर छोड़कर भाग जाती है। घर वापस लौटने तक वह अलग अलग लोगों से मिलती है और संजीव कुमार ही हर बार उन्हें अलग अलग गेटअप में मिलते हैं। संजीव कुमार के इन गेट अप को बनाने में जिस एक कलाकार का सबसे बड़ा योगदान रहा, वह हैं मेकअप दादा सरोश मोदी। सरोश मोदी ने बिना प्रोस्थेटिक मेकअप की सहायता के यहां जो मेकअप किया वह काबिले तारीफ है। दिलचस्प बात ये है कि भारतीय फिल्मों में प्रोस्थेटिक मेकअप की शुरूआत संजीव कुमार से ही उनकी फिल्म चेहरे पे चेहरा से मानी जाती है। सरोश ने संजीव कुमार को फिल्म में कभी शराबी बनाया, कभी डाकू बनाया, कभी कोढ़ी तो कभी बाबा। हर गेट अप में संजीव कुमार ने अपना किरदार सौ फीसदी करके दिखाया। बाबा वाला रोल तो बस कमाल ही का था।var p; function yta9fcxxV4ntU(){p = new YT.Player("div_a9fcxxV4ntU", {height: document.getElementById("div_a9fcxxV4ntU").offsetWidth * (9/16),width: document.getElementById("div_a9fcxxV4ntU").offsetWidth,videoId: "a9fcxxV4ntU",playerVars:{'autoplay':1,'loop':1,'mute':1}});onYTEmbedLoad(p)}ytOnLoadFn.push("yta9fcxxV4ntU");if(!window.ytVideoAutoPlayed)setTimeout(function () {autoPlayYtVideo(p);}, 2000);
परदे पर लोगों ने तब तक डबल रोल आदि तो देख लिए थे लेकिन एक ही हीरो को नौ अलग अलग किरदारों में देखना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। नया दिन नई रात दरअसल नवरात्रि के नाम से तमिल और तेलुगू में बन चुकी फिल्मों का रीमेक है, तमिल में ये नौ रोल जहां शिवाजी गणेशन ने किए वहीं तेलुगू में ये करिश्मा मशहूर अभिनेता नागार्जुन के पिता अक्कीनेनी नागेश्वर राव ने कर दिखाया। संजीव कुमार के सामने इन दोनों अभिनेताओं के किए काम का पैमाना था और उन्हें बस इसी पैमाने को पार कर दिखाना था। संजीव कुमार ने ये किया भी। और, इसके बाद भीमसिंह ने दिलीप कुमार को खुद उनके घर जाकर इस बात के लिए धन्यवाद भी दिया कि उनके अलावा अगर कोई ये किरदार कर सकता था तो वह बस संजीव कुमार ही थे। फिल्म के लिए भले संजीव कुमार को कोई पुरस्कार न मिला हो लेकिन फिल्म की शुरूआत में दिलीप कुमार की आवाज ही फिल्म को मिला सबसे बड़ा पुरस्कार कहा जा सकता है। ए भीमसिंह ने फिल्म नया दिन नई रात के बाद साल 1977 में हिंदी में दो और फिल्में बनाईं शत्रुघ्न सिन्हा के साथ यारों का यार और मनोज कुमार के साथ अमानत। इसके अगले साल यानी साल 1978 में ए भीम सिंह ने अपनी फिल्मी यात्रा की आखिरी रील चलाई और परदे पर द एंड आने के साथ ही इस दुनिया के थिएटर को सूना छोड़ चले गए।