पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Mandir) को दुनिया का सबसे उच्चतम ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर (Shiva Temple) कहा जाता है और इसके लिए ये पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। ये मंदिर तुंगनाथ माउंटेन रेंज (Tungnath Mountain Range) में समुद्र स्तर से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण अर्जुन ने किया था जो कि पांडवों में से एक थे और जिनका विवरण हिंदू महाकाव्य महाभारत में है। तुंगनाथ का शाब्दिक अर्थ 'पीक के भगवान' है।
ऐसा है तुंगनाथ मंदिर
इस मंदिर में भगवान शिव के हाथ की पूजा की जाती है, जो कि वास्तुकला के उत्तर भारतीय शैली का प्रतिनिधित्व करती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नंदी बैल की पत्थर की मूर्ति है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का आरोह है। काल भैरव और व्यास के रूप में लोकप्रिय हिंदू संतों की मूर्तियों भी पांडवों की छवियों के साथ मंदिर में निहित हैं। इसके अलावा, विभिन्न देवी देवताओं के छोटे छोटे मंदिरों को इस मंदिर के आसपास देखा जा सकता है। भारी बर्फबारी की वजह से ये मंदिर नवंबर और मार्च के बीच में बंद रहता है। इस मंदिर को 5 हजार साल पुराना माना जाता है।
क्या है कहानी (Story of Tungnath Mandir)
इस मंदिर में पुजारी मक्कामाथ गांव के एक स्थानीय ब्राह्मण होते हैं। ये भी कहा जाता है कि मैथानी ब्राह्मण इस मंदिर में पुजारी के तौर पर काम करते हैं। सर्दियों के मौसम के दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है। इस मंदिर से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं भी मशहूर है, जिसके अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान जब पांडवों ने अपने चचेरे भाई की हत्या की थी, तब व्यास ऋषि ने पांडवों को सलाह दी थी कि उनका ये काम केवल भगवान शिव के द्वारा ही माफ किया जा सकता है। इसलिए पांडवों ने शिव से माफी मांगने का निर्णय लिया था लेकिन भगवान शिव उनसे काफी ज्यादा नाराज थे और वो पांडवों को माफ नहीं करना चाहते थे।
इसलिए पांडवों को दूर रखने के लिए, शिव ने एक बैल का रूप ले लिया था और हिमालय को छोड़ कर गुप्तकाशी में चले गए थे लेकिन पांडवों ने उन्हें पहचान कर वहां पर भी उनका पीछा किया था। लेकिन बाद में शिव ने अपने शरीर को बैल के शरीर के अंगों के रूप में पांच अलग-अलग स्थानों पर डाला, जहां पर पांडवों ने उनकी माफी और आशिर्वाद की मांग करते हुए हर एक स्थान पर भगवान शिव के मंदिरों का निर्माण किया था। तुंगनाथ को उस जगह के रूप में पहचाना जाता है जहां पर बाहू यानी की हाथ देखा गया था, कूल्हे केदारनाथ में देखा गया, रुद्रनाथ में सिर दिखाई दिया था और उनकी नाभि और पेट मध्यमाहेश्वर में सामने आए थे।
पौराणिक कथा में तो ये भी कहा गया है कि रामायण महाकाव्य के मुख्य प्रतीक भगवान राम चंद्रशेला शिखर पर ध्यान लगाते हैं जो कि तुंगनाथ के पास स्थित है। साथ ही ये भी कहा जाता है कि रावण ने यहां पर भगवान शिव की तपस्या की थी।
कैसे पहुंचे तुंगनाथ मंदिर (How to Reach Tungnath Mandir)
तुंगनाथ भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है, यहां पर पहुंचने के लिए चोपता से 4 किलोमीटर की ट्रेकिंग कर जाना होता है। इस इलाके में सर्दियों के मौसम में भारी बर्फबारी होती है। वहीं इस मौसम में भगवान शिव की प्रतिमा को 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुकुनाथ में शिफ्ट कर दिया जाता है। तुंगनाथ मंदिर के दर्शन के लिए इसके दरवाजे मई महीने में खुलते हैं और ये अक्टूबर तक खुले रहते हैं।
तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन तो किए ही जाते हैं, इसके साथ ही यहां पर ट्रेकिंग का मजा भी लिया जा सकता है और साथ ही खूबसूरत नजारें भी देख सकते हैं। ये जगह कपल, परिवार, बच्चों, विदेशियों सभी को अपनी तरफ आकर्षित करती है। यहां पर ग्रुप और सोलो दोनों तरह के यात्री आ सकते हैं। इस जगह पर अडवेंचर, कैंपिंग भी की जा सकती है।