5 मई 1956 दिन बेहद खास है। ये वो दिन था जब संगीत की दुनिया का सरताज इस दुनिया में आया था। गुलशन कुमार ने संगीत की दुनिया में जितना नाम कमाया शायद आज किसी के नसीब में न हो। इसी शोहरत की बदौलत वह कहे गए कैसेट किंग। लशन कुमार शुरुआती समय में अपने पिता के साथ जूस की दुकान चलाते थे। इसके बाद ये काम छोड़ उन्होंने दिल्ली में ही कैसेट्स की दुकान खोली जहां वो सस्ते में गानों की कैसेट्स बेचते थे। यही से शुरू हुआ वो सफर आज तक जारी है।
12 अगस्त, 1997 का दिन हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री के लिए काला दिन कहा जाता है। इसी दिन सुबह के करीब साढे आठ बजे गुलशन कुमार पूजा करने मंदिर गए हुए थे जहां गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। अंधेरी के जीतेश्वर महादेव मंदिर के सामने गुलशन कुमार को एक के बाद एक 16 गोलियां मार दी गईं। उनकी जान तुरंत चली गई। मौत से पहले गुलशन कुमार ने सुबह सात बजे एक प्रोड्यूसर को फोन किया था।
क्या हुआ था उस दिन इंडिया टुडे की एक स्टोरी के मुताबिक उस दिन 42 साल के गुलशन कुमार हाथ में पूजा की सामाग्री लिए, माला जपते हुए मंदिर की ओर से आ रहे थे। मंदिर गुलशन कुमार के घर से करीब एक किलोमीटर से भी कम की दूरी पर था। गुलशन कुमार मंदिर में पूजा करके बाहर निकल रहे थे तभी उन्हें अपनी पीठ पर बंदूक की नाल महसूस हुई। उन्होंने सामने एक शख्स को हाथ में बंदूक लिए देखा।
जैसे ही गुलशन कुमार कुछ कह पाते। बंदूक से उन पर 16 राउंड फायरिंग कर दी गई। उनकी गर्दन और पीठ में 16 गोलियां लगी थीं। गुलशन कुमार के ड्राइवर अपने मालिक को बचाने के लिए हत्यारों पर कलश फेंकते रहे लेकिन हत्यारें नहीं रुके। उन्होंने ड्राइवर के पैर पर भी गोली चलाई, जिससे वो वहीं जख्मी हो गया। देखते ही देखते उनकी जान चली गई।
जानकारी के मुताबिक अबु सलेम ने गुलशन कुमार को मारने की जिम्मेदारी दाऊद मर्चेंट और विनोद जगताप नाम के शार्प शूटरों को दी थी। 9 जनवरी 2001 को विनोद जगताप ने कुबूल किया कि उसने ही गुलशन कुमार को गोली मारी। साल 2002 को विनोद जगताप को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। विनोद जगताप अभी भी जेल में ही है, लेकिन दाऊद मर्चेंट 2009 में परोल पर रिहाई के दौरान फरार हो गया और बांग्लादेश भाग गया था। पुलिस ने इस मामले में संगीतकार नदीम को अभियुक्त बनाया था। मुंबई पुलिस ने अपनी जांच के बाद कहा था कि हत्या के लिए फिल्मी हस्तियां और माफिया के लोग जिम्मेदार थे।