कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सुझाए जा रहे तमाम नुस्खों में से एक ये भी है कि अपने हाथ नियमित रूप से साफ करें। मगर, आप ये जान कर हैरान रह जाएंगे कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा नियमित रूप से हाथ साफ नहीं करता। यहां तक कि बहुत से लोग हाजत के बाद भी हाथों को साबुन से नहीं धोते। अमरीकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज के एंकर पीट हेगसेथ अपने विवादों की वजह से ज्यादा चर्चित रहे हैं। लेकिन, हेसगेथ ने पिछले साल ये कह कर हंगामा बरपा दिया था कि मुझे याद नहीं पड़ता कि पिछले दस सालों में मैंने कभी अपने हाथ धोए।पीट हेसगेथ के इस बयान पर बहुत से लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी। किसी को घिन आई। और बहुत से लोगों ने तो इस पर लेख भी लिख मारे कि एक दशक तक हाथ न धोने के बाद आपके हाथों में क्या क्या हो सकता है। लेकिन, ऐसा करने वाले पीट हेसगेथ अकेले सेलेब्रिटी नहीं। 2015 में अमरीकी अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस ने कह कर बवाल खड़ा कर दिया था कि वो बाथरूम जाने के बाद कभी भी अपने हाथ नहीं धोतीं।
उसी साल, अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के उत्तरी कैरोलिना राज्य के एक सीनेटर ने कहा कि रेस्टोरेंट में काम करने वालों पर बार-बार हाथ धोने का दबाव बनाना नियमों का दुरुपयोग है। हो सकता है कि 10 साल तक हाथ न धोने वालों की तादाद कम ही हो। जो लोग शौच के बाद नियमित रूप से हाथ धोते हैं, उन्होंने देखा होगा कि उनके आस-पास बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो शौच के बाद भी हाथ नहीं धोते। साल 2015 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में करीब 26.2 फीसदी लोग, मल त्याग के बाद साबुन से हाथ नहीं धोते।लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के विशेषज्ञ रॉबर्ट औंगर कहते हैं कि, 'शौच के बाद भी हाथ न धोना एक आम आदत है। आपको पता होना चाहिए कि हम लोग करीब 25 साल से लोगों को इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। लेकिन, अभी भी इस नियम का पालन करने वालों की तादाद बहुत कम है।'
इसकी एक बड़ी वजह ये मानी जाती है कि दुनिया में बहुत से लोगों के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। जैसे कि साबुन और पानी। दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में केवल 27 प्रतिशत लोगों के पास ये सुविधाएं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब तीन अरब लोग ऐसे हैं, जिनके पास हाथ धोने के लिए साबुन और पानी की बुनियादी सुविधा नहीं है।मगर, हाथ न धोने की गंदी आदत का ताल्लुक सिर्फ संसाधनों की उपलब्धता की कमी से नहीं है। जिन देशों में पानी और साबुन दोनों ही पर्याप्त से भी ज्यादा मात्रा में उपलब्ध है। वहां भी आधे लोग ही टॉयलेट जाने के बाद उनका इस्तेमाल करते हैं। इन आंकड़ों के बाद तो शायद आप ये सोचें कि कोहनी छू कर ही अभिवादन करने को कोरोना काल के बाद भी स्थाई तरीका बना दिया जाना चाहिए।
ये आंकड़े तब और हैरान करते हैं, जब आपको ये पता चलता है कि मानवता के इतिहास में हाथ धोने की आदत का आविष्कार, इंसानों की जान बचाने का सबसे कारगर नुस्खा साबित हुआ है। आज दुनिया के कई देशों, जैसे कि ब्रिटेन में इंसानों की औसत उम्र अगर 80 बरस है। जबकि 1850 में ब्रिटेन के लोगों की औसत उम्र चालीस वर्ष हुआ करती थी। ये वही दौर था, जब हाथ धोने के फायदों का सबसे पहले प्रचार शुरू हुआ था। 2006 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, अगर आप नियमित रूप से अपने हाथों को अच्छे से साफ करते हैं, तो इससे आपको सांस की बीमारियां होने की आशंका 44 प्रतिशत से घट कर केवल 6 फीसद रह जाती है।कोविड-19 की महामारी के प्रकोप के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन देशों में हाथों को नियमित रूप से धोने की संस्कृति है, वहां पर इसका संक्रमण कम हुआ है। आखिर क्या कारण है कि हम में से कई लोग ऐसे हैं, जो हाथ साफ करने को लेकर इतने सजग रहते हैं कि इसके लिए ऊंची कीमत पर भी सैनिटाइजर खरीदने का हौसला रखते हैं। वहीं, बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें साबुन से हाथ धोने तक में परेशानी है। अब अगर नए वायरसों के प्रकोप और टीवी के रिमोट पर मल लगे होने जैसे उदाहरण भी उन्हें हाथ धोने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहे, तो फिर उन्हें किस तरह अपनी इस बुरी आदत से छुटकारा पाने के लिए राजी किया जा सकता है?
ऐसा लगता है कि सिंक तक रुक कर हाथ धोने की आदत न होना सिर्फ आलस नहीं है। ये लोगों की सोच से लेकर, अति आत्मविश्वास तक पर निर्भर करता है। फिर उन्हें किन हरकतों से घिन आ सकती है। और अन्य मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं, जो लोगों को साफ सफाई पसंद या इनसे परहेज करने वाला बनाते हैं। इन छुपे हुए कारणों का पता लगाने में जुटे विशेषज्ञों को लगता है कि वो इनके जरिए लोगों को साफ सफाई रखने के लिए राजी कर सकेंगे।रॉबर्ट औंगर कहते हैं कि विकसित देशों में लोग हाथ न धोने की बुरी आदत के बावजूद बीमार होने से बच जाते हैं। अगर आप इसके कारण बीमार पड़ते भी हैं, तो कई दिनों बाद। तब तक लोगों के जहन से ये खयाल निकल जाता है कि हाथ न धोने और बीमारी के बीच ताल्लुक है। रॉबर्ट का कहना है कि, 'कोरोना वायरस के संक्रमण की बात करें तो भी इससे संक्रमित होने और इसके लक्षण सामने आने के बीच पांच छह दिनों का फासला होता है। ऐसे में साफ सफाई न रखने और संक्रमण के बीच संबंध के बारे में सोच पाना मुश्किल होता है।'
अति आत्मविश्वास से बचें हाथ न धोने की आदत के पीछे एक वजह, लोगों का अति आत्मविश्वास भी होता है। बहुत से लोगों को ये लगता है कि उन्हें तो कुछ नहीं होगा। वो बीमार नहीं होंगे। संक्रमित नहीं होंगे। यहां तक कि मैना और चूहों में भी जोखिम लेने का अति आत्मविश्वास देखा गया है। इसी भरोसे की वजह से ही लोग धूम्रपान करते रहते हैं। या फिर क्रेडिट कार्ड से जम कर खरीदारी करते जाते हैं। 2009 में जब स्वाइन फ्लू का प्रकोप हुआ था, तो बहुत से बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों पर हुए एक सर्वे में पता चला कि उन छात्रों को ये भरोसा था कि उन्हें ये बीमारी नहीं होगी। इसीलिए वो हाथ नहीं धोते थे। अक्सर नर्सों और डॉक्टरों में भी अति आत्मविश्वास की ये आदत देखी गई है।
सामाजिक सरोकार भी अहम हैं तमाम देशों की संस्कृतियों में भी हाथ धोने को लेकर नियमित जागरूकता का अलग अलग प्रभाव देखने को मिलता है। फ्रांस में 63 देशों के 64 हजार लोगों पर हुए एक अध्ययन में शामिल चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और नीदरलैंड के आधे से कम लोगों ने कहा कि वो नियमित रूप से साबुन से हाथ धोते हैं। जबकि, सऊदी अरब में 97 फीसद लोग शौच जाने के बाद साबुन से हाथ नियमित रूप से धोते हैं। महिलाओं और पुरुषों में भी इस आदत को लेकर फर्क दिखता है। महिलाएं साफ सफाई को लेकर ज्यादा सचेत होती हैं।
तार्किक बनाम प्रयोगात्मक सोच गंदगी और साफ सफाई के पीछे का मनोविज्ञान इसलिए भी समझना जरूरी है क्योंकि इस पर जिंदगियां निर्भर हैं। बहुत से स्वास्थ्य कर्मियों में ये बुरी आदत होती है कि वो हाथ नहीं धोते। जबकि उन्हें पता होता है कि इसकी वजह से संक्रमण होता है। फिर भी, वो नियमित रूप से हाथ धोने से परहेज करते हैं।इसके पीछे एक और कारण हो सकता है और वो है कर्तव्य को लेकर ईमानदारी। ब्राजील में हुआ एक अध्ययन बताता है कि जो लोग काम प्रति ईमानदार हैं, वो नियमित रूप से हाथों को साफ करते हैं। साफ सफाई को लेकर लोगों को प्रेरित करने में एक और चीज काम आ सकती है। वो है घृणा। गंदी आदतों के प्रति नफरत पैदा करके लोगों को साफ सफाई के लिए प्रेरित करना आसान है।
खुद को साफ सुथरा रखें कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के बाद, पिछले कुछ हफ्तों में दुनिया भर में सफाई को लेकर जागरूकता अभियान चलाए गए हैं। इनमें सेलेब्रिटी से लेकर सरकारी और निजी संगठन तक शामिल रहे हैं। इंटरनेट पर ऐसे वीडियो और मीम की भरमार है।इसके बाद लोगों में हाथ धोने को लेकर जागरूकता बढ़ी है। लेकिन, ये कब तक कायम रहेगी। कहना मुश्किल है। रॉबर्टर औंगर कहते हैं कि, 'अभी तो लोग कोरोना वायरस के डर से साफ सफाई रख रहे हैं। लेकिन, वो ऐसा कब तक करते रहेंगे, ये कह पाना मुश्किल है।'केवल समय ही ये बताएगा कि हम हाथों को नियमित रूप से धोने की इस आदत को आगे भी बनाए रखेंगे। लेकिन, अब कम से कम कोई सेलेब्रिटी इस बात का शोर तो नहीं मचाएगा कि वो हाथ नहीं धोता।