लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बढ़े हैं। कई इंटरनैशनल न्यूज मीडिया द्वारा इस बात पर प्रकाश डाला जा रहा है कि कई देशों में लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा और तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। इस बारे में हमने सायकॉलजिस्ट से जानने का प्रयास किया...
लगभग दोगुना हो गई हैं शिकायतें
-क्लिनिकल सायकॉलजिस्ट इरा गुप्ता का कहना है कि पिछले दिनों जिस तरह की रेकॉर्ड शिकायतें वीमेन हेल्प सेल के पास आर रही हैं, उनके आंकड़ों पर नजर डालें तो ये मामले सामान्य दिनों की तुलना में करीब डबल हो गए हैं।
-घरेलू हिंसा के साथ ही तलाक लेने की स्थितियां और अर्जियां बढ़ रही हैं। ऐसे में हमें समझने की आवश्यकता है कि आखिर हम अपने बिखरते रिश्तों को कैसे संवार सकते हैं। क्योंकि रिश्तों को संभालने के लिए कभी देर नहीं होती!
इतनी तरह से होता है वॉयलेंस
-हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं होती। बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी होती है। जरूरी नहीं है कि हर घर में महिला या पुरुष के साथ शारीरिक रूप से ही मारपीट की जाए या उसे चोट पहुंचाई जाए।
-बल्कि कड़वे और आहत करनेवाले शब्दों और व्यवहार से भी लोगों को पीड़ा का सामना करना पड़ता है। इन मामलों में हिंसा की शिकार आमतौर पर महिलाएं होती हैं। लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि ऐसा सिर्फ महिलाओं के साथ ही होता है।
गांव और शहर का अंतर
-घरेलू हिंसा के मामलों में भी गांव और शहर के परिवेश का अंतर देखने को मिलता है। एक तरफ जहां गांवों में शारीरिक हिंसा के केस अधिक सामने आते हैं। वहीं शहरों में मानसिक हिंसा के केस अधिक देखे जाते हैं।
-इस अंतर की सबसे बड़ी वजह शिक्षा और आस-पास का माहौल अधिक होता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं माना जा सकता कि जिनके साथ शारीरिक हिंसा हो रही है, अत्याचार सिर्फ उन्हीं पर हो रहा है।
-ऐसा भी नहीं है कि घरेलू हिंसा के मामले शहरों में अधिक होते हैं या गांव में। ऐसे मामले दोनों ही परिवेश में देखने को मिलते हैं और समान रूप से देखने को मिलते हैं।
लॉकडाउन में क्यों बढ़े हैं केस?
-अब सवाल यह उठता है कि आखिर लॉकडाउन के दौरान एकाएक इतने केस क्यों बढ़ गए हैं? तो इसकी एक बड़ी वजह है अनिश्चितता।
-आमतौर पर गृहस्थी का खर्च उठाने की जिम्मेदारी पुरुषों की होती है। लॉकडाउन के दौरान बदले आर्थिक समीकरणों के बीच इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि इस जॉब की अनिश्चितता ने पुरुषों और महिलाओं दोनों के अंदर ही असुरक्षा की भावना बढ़ा दी है।
-असुरक्षा की यह भावना लोगों को उत्तेजित कर रही है। उनके अंदर क्रोध बढ़ रहा है, जो घर में रहने के दौरान होनेवाले छोटे-छोटे घटनाक्रमों में हिंसा का रूप ले रहा है। यह एक मानसिक और भावनात्मक समस्या का दौर है।
बढ़ रहा है तनाव
-लॉकडाउन के कारण अनिश्चितता है, जॉब जाने का डर है, आर्थिक नुकसान का डर और असुरक्षा है। ये सभी चीजें लोगों में चिंता और तनाव बढ़ने का कारण बन रही हैं।
-क्योंकि परिवार में महिलाएं एक सॉफ्ट टारगेट होती हैं तो हिंसक प्रवृत्ति के चलते या आपा तुरंत आपा खो देनेवाले पुरुष अपना गुस्सा निकालने के लिए उन्हें आसान टारगेट मान लेते हैं।
-यह मानसिकता आमतौर पर पारिवारिक माहौल और परवरिश पर निर्भर करती है। हिंसा का एक तरीका घर की चीजें फेंकना और तोड़ना भी होता है। इसके पीछे महिलाओं के अंदर डर पैदा करने की सोच होती है।
बढ़ रहा है थकान का स्तर
- शहरों में ज्यादातर घरों में मेड होती हैं। लेकिन इस समय एक तो काम अधिक है और उस पर मेड भी नहीं आ पा रही हैं। तो महिलाओं को उनके शरीर की आवश्यकता के अनुसार आराम नहीं मिल पा रहा है। थकान भी व्यक्ति का मूड खराब करती है।
- महिलाओं को ना तो पूरा आराम मिल रहा है और ना ही अपना स्पेस मिल पा रहा है। ऐसी स्थितियां उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर दुखी और परेशान बना रही हैं।
सपॉर्ट करने की परंपरा नहीं है
-सामाजिक स्तर पर देखें तो हमारे यहां आज भी महिलाओं के काम में हाथ बंटाना पुरुषों को कम ही पसंद है। ज्यादातर लोगों का मानना होता है कि घर का काम सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी है।
-इससे महिलाएं पूरे समय काम में लगी रहती है। हर समय और लगातार एक महीने से अधिक वक्त से यही स्थिति बनी हुई है। ऐसे में जिन बातों को अनदेखा कर देती थीं, अब उन पर रिऐक्ट भी कर देती हैं।
-अगर ऐसे में घर के पुरुष उनकी समस्या को नहीं समझते हैं तो यहीं से कलह शुरू हो जाती है। जो कई बार हिंसा और पारिवारिक तनाव में बदल जाती है।
-इस समय परिवार की जिम्मेदारी है कि उनके गुस्से को शांत करने का प्रयास करें और काम में उनका हाथ बटाएं। ताकि वे भी अपने लिए कुछ समय निकालकर आराम कर पाएं।
वर्क फ्रॉम होम की समस्या
-जो महिलाएं लॉकडाउन के दौरान वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं। उनके ऊपर काम का दबाव कई गुना बढ़ गया है। ऑफिस का काम, घर का काम और काम करने का माहौल ना मिल पाने कारण उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की समस्याएं हो रही हैं।
यह है समाधान का तरीका
-अब तक हमने बात की कि आखिर घरेलू हिंसा के केस क्यों बढ़ रहे हैं। अब हमें जानना होगा कि आखिर इनका समाधान क्या है। तो सबसे पहले तो यह जान लें कि अपको मानसिक रूप से मजबूत बनना है।
-सभी स्थितियों को देखते हुए, अपने आपके लिए समय निकालें। मन को शांत रखने का प्रयास करें। इसमें मेडिटेशन और पूजा-पाठ करना आपको सहायता देगा।
-अगर आप हिंसा का सामना कर रही हैं तो वीमेन हेल्प लाइन नंबर और ऐसे रिश्तेदारों के नंबर अपने पास हर समय रखें, जो आपकी सहायता कर सकते हैं।
झिझक को दूर करना होगा
- बुरा करनेवाला जितना बड़ा अपराधी होता है, उस गलत व्यवहार को बिना विरोध किए सहनेवाला भी उतना ही बड़ा अपराधी होता है। इसलिए इस पीड़ा को सहती ना रहें बल्कि आवाज उठाएं।
- यदि लगातार तनाव और चिंता के कारण आप खुद से कुछ नहीं सोच-समझ पा रही हैं तो सायकाइट्रिस्ट्स या सायकॉलजिस्ट्स की सहायता ले सकती हैं। ये आपको आपकी स्थितियों के हिसाब से सही निर्णय लेने में मदद करेंगे।
-ये आपको डोमेस्टिक वायलेंस काउंसलिंग देंगे। इससे आप अपनी स्थितियों को बहुत बेहतर तरीके से समझ पाएंगी और उन रास्तों पर गौर कर पाएंगी, जो आपको खुशियों की तरफ ले जानेवाले हैं।