नीट परीक्षा मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए आयोजित किया जाता है। हर साल लाखों बच्चे इस एडमिशन एग्जाम के जरिए देश के भिन्न-भिन्न सरकारी कॉलेज में एडमिशन लेते है। पहले निजी कॉलेज और कुछ युनिवर्सिटी अपने अलग प्रवेश परीक्षा आयोजित करते थे पर अब सभी कॉलेज के लिए नीट परीक्षा अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मेडिकल के स्नातक, परास्नातक और डेंटल कोर्स के लिए होने वाली राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के नियम सहायता प्राप्त व गैर सहायता प्राप्त दोनों असल्पसंख्यक संस्थानों और निजी शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होगी क्योंकि इसमें उनके अधिकारों का कोई हनन नहीं है।
निजी कॉलेज के लिए नियम सामान्य
कोर्ट ने कहा, एक समान प्रवेश परीक्षा (नीट) तर्कसंगत है और इसका इसका मकसद मेडिकल शिक्षा में पनप रहीं तमाम खामियों और मेरिट में अंक प्राप्त करने वाले छात्रों से कैपिटेशन फीस लेकर उन्हें प्रवेश देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के साथ शिक्षा में शोषण तथा इसके व्यवसायीकरण को रोकना है।
पीठ ने कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद कानून के प्रावधान और नियम असांविधानिक नहीं है और न ही वे सहायता प्राप्त व सहायता नहीं पाने वाले अल्पसंख्यक संस्थानों को संविधान के विभिन्न प्रावधानों में प्रदत्त अधिकारों का हनन करते हैं।
पीठ ने कहा, 'स्नातक और स्नातकोत्तर मेडिकल तथा डेटल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नीट के एक समान परीक्षा कराने से संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(जी) और अनुच्छेद 25,26 और 29(1) व 30 के तहत गैर सहायता प्राप्त व सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थाओं के अधिकारों का हनन नहीं होता है।'
न्यायालय ने कहा कि नीट की परीक्षा के आयोजन के नियमों से धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा शासित संस्थाओं के अधिकारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं है और इसका मकसद समूची व्यवस्था को सड़ा रही तमाम गड़बड़ियों को निकाल बाहर करना है।
शीर्ष अदालत में इस मुद्दे पर याचिका दायर करने वाली शिक्षण संस्थाओं में क्रिश्चियन मेडिकल कालेज, वेल्लोर, मणिपाल विश्वविद्यालय, एसआरएम मेडिकल कालेज अस्पताल और कर्नाटक प्राइवेट मेडिकल एंड डेंटल कॉलेज एसोसिएशन शामिल थे।