शरीर की खोई ताकत को जागरूक करता है गिलोय

भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्वति में गिलोय को एक जरूरी जगह प्राप्त है. गिलोय में उपस्थित गुणों के चलते इसे छोटे से लेकर बड़े रोग में औषधि के रूप में कार्य में लिया जाता है. हालांकि इसके इस्तेमाल को लेकर आपको सावधानी बरतनी चाहिए. गिलोय कहां व किस आधार पर उगा है यह भी इसके प्रयोग को विशेष बनाता है. आइए यहां जानते हैं कि गिलोय को किन रोगों में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है व किस तरह के गिलोय का किस रोग में इस्तेमाल किया जाता है:

प्रयोग विधि पोषक तत्त्व : लोकमान्यता है कि गिलोय जिस पेड़ के पास मिलती है व यदि उसे आधार बना ले तो उसके गुण इसमें आ जाते हैं. लेकिन हर कोई गिलोय उत्तम नहीं. बिना सहारे उगी गिलोय और नीम चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि है. इसकी छाल, जड़, तना व पत्तों में एंटीऑक्सीडेंट्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन व अन्य न्यूट्रिएंट्स होते हैं. फायदे : प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मशहूर है. संक्रामक रोगों के अतिरिक्त बुखार, दर्द, मधुमेह, एसिडिटी, सर्दी-जुकाम, खून की कमी पूरी करने, कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के अतिरिक्त रक्त शुद्ध करने और शारीरिक और मानसिक कमजोरी दूर करती है.
गिलोय बेल के रूप में और इसका पत्ता पान के पत्ते की तरह दिखता है. आयुर्वेद में इसे अमृता, गुडुची, चक्रांगी आदि नाम से भी जाना जाता है.
गिलोय के पत्ते को साबुत चबाने के अतिरिक्त इसके डंठल के छोटे टुकड़े का काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं. इसे अन्य जड़ीबूटी के साथ मिलाकर भी इस्तेमाल करते हैं. गिलोय का सत्व 2-3 ग्राम, चूर्ण 3-4 ग्राम व काढ़े के रूप में 50 से 100 मिलीलीटर लिया जा सकता है.
छोटे बच्चों को विशेषज्ञ के निर्देशानुसार ही यह दें. यदि किसी रोग (मधुमेह, स्कीन संबंधी ब्लड प्रेशर, बुखार, प्रेग्नेंसी और अन्य ) के लिए नियमित दवा ले रहे हैं तो इस्तेमाल से पूर्व विशेषज्ञ से पूछ लें वर्ना अन्य दवा के साथ मिलकर शायद यह कार्य न करे. - वैद्य शंभू शर्मा, वनौषधि विशेषज्ञ

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