World Book Day 2020: हमारी सच्ची साथी हैं किताबें, पढ़ने के हैं कई फायदे, जानें इस दिवस का इतिहास

सबसे अच्छा मित्र कौन है, इस सवाल पर बड़े-बुजुर्गों और आध्यात्मिक गुरुओं से लेकर शिक्षाविदों तक का जवाब होता है- पुस्तकें। किताबें हमें केवल देती ही हैं, हमसे लेती नहीं। जानकारियां, शिक्षा, ज्ञान, बुद्धि विकसित करने के अलावा यह हमें जीवन जीने का सलीका सिखाती हैं। आदमी को सच्चे मूल्यों में आदमी बनाने में इसकी बड़ी भूमिका होती हैं। आज यानी 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस है और इसलिए हम इसे मनाने के पीछे के इतिहास से लेकर इसके विभिन्न पहलुओं पर बात कर रहे हैं और साथ ही एक शिक्षक, लेखक और पाठक के नजरिए से पुस्तक की प्रासंगिकता भी बता रहे हैं।

सबसे पहले जानते हैं, विश्व पुस्तक दिवस के पीछे के इतिहास के बारे में। दुनिया में पहला विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल, 1995 को मनाया गया था। यह तारीख यूनेस्को ने तय की थी। यह विश्व के महान लेखकों को याद करने का दिवस है। विश्वविख्यात लेखक विलियम शेक्सपीयर का निधन साल 1616 में 23 अप्रैल को ही हुआ था, जबकि साल 1926 में स्पेन के विख्यात लेखक मिगेल डे सरवांटिस का भी निधन इसी दिन हुआ था।
गुलाब की जगह बांटी किताबें 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाने का विचार स्पेन की एक परंपरा से आया, जहां हर साल 23 अप्रैल को 'रोज डे' मनाया जाता है। लोग इस दिन प्यार का इजहार करते हुए एक-दूसरे को गुलाब फूल देते हैं। साल 1926 में जब मिगेल डे सरवांटिस का निधन हुआ तो उनकी याद में लोगों ने गुलाब की जगह किताबें बांटीं। स्पेन में यह परंपरा जारी रही और इस दिन विश्व पुस्तक दिवस मनाने का विचार आया। ब्रिटेन और आयरलैंड में चूंकि 23 अप्रैल को सेंट जॉर्ज दिवस होता है, इसलिए वहां मार्च के पहले गुरुवार को विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है।
खबरों के मुताबिक, स्पेन में दो दिनों तक रीडिंग मैराथन का आयोजन किया जाता है और समापन समारोह में एक लेखक को प्रतिष्ठित मिगेड डे सरवांटिस पुरस्कार दिया जाता है। वहीं, स्वीडन में शिक्षण संस्थानों में इस दिन लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित कराई जाती है। दुनिया के अलग-अलग देशों में इस दिन को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कई जगहों पर संस्थाएं नि:शुल्क किताबें बांटती है।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में शिक्षक प्रो. अरुण भगत करते हैं कि लॉकडाउन पीरियड में युवाओं, छात्रों को समय का सदुपयोग करना चाहिए और किताबें पढ़नी चाहिए। पाठ्यपुस्तकों के अलावा राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना से जुड़ी पुस्तकें पढ़नी चाहिए। भारत के महापुरुषों, स्वतंत्रता सेनानियों, दार्शनिकों, साहित्यकारों, चिंतक और विचारकों की जीवनी भी पढ़नी चाहिए। वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के शिक्षक डॉ. प्रकाश उप्रेती और दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के शिक्षक डॉ. रुद्रेश नारायण मिश्रा के मुताबिक किताबों को पढ़ने से ज्यादा उन्हें गुनना चाहिए और किताबों से मिली सीख हमें अपने जीवन में उतारनी चाहिए। पुस्तकें पढ़ने को हमें अपने नियमित कर्म और अभ्यास में शामिल करना चाहिए।

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